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हम दोनों भी अब रंगीन अवतार में

५ फ़रवरी २०११

क्लासिक फिल्मों को रंगीन किया जाए या नहीं, इसे लेकर विश्व सिनेमा के दर्शक दो भागों में बंटे हैं. जब बरसों पहले चार्ली चैप्लिन की क्लासिक फिल्मों को रंगीन करने के लिए कुछ लोग आए, तो उनके प्रशंसकों ने भारी विरोध किया.

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कम नहीं हुआ है देव आनंद का उत्साहतस्वीर: Girish Srivastava

नतीजा यह रहा कि चार्ली चेप्लिन की फिल्में अपनी श्वेत-श्याम छवियों में आज भी सबका मनोरंजन कर रही हैं. भारत में दो साल पहले सत्यजीत रे की फिल्मों पाथेर पांचाली, अपराजितो और अपूर संसार को रंगीन करने का प्रस्ताव एक कंपनी ने रखा, तो बांग्ला प्रशंसकों के अलावा देश भर के बुद्धिजीवी दर्शकों ने राय मोशाय की विश्व प्रसिद्ध क्लासिक फिल्मों से छेड़छाड़ नहीं करने के लिए बाकायदा आंदोलन जैसा चलाया. यह मामला यही बंद हो गया.

मार्केटिंग और टेक्नालॉजी की ताकतें समय-समय पर दबाव बनाती रहती हैं. इसी के परिणाम में 2004 में कमर्शियल सिनेमा की सुपरहिट फिल्म मुगल-ए-आजम (1960) को रंगीन कर जब दोबारा रिलीज किया गया तो पुरानी और नई पीढ़ी ने उसका तहेदिल से स्वागत किया. रंगीन मुगल-ए-आजम को भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छी कामयाबी मिली. इसी की देखादेखी बीआर चोपड़ा ने अपनी सुपरहिट फिल्म नया दौर (1957) को दो साल पहले रंगीन कर रिलीज किया तो फिल्म बॉक्स ऑफिस पर पिट गई.

देव आनंद की हम दोनों

जैसा की सभी लोग जानते हैं कि सदाबहार अभिनेता देव आनंद की 1961 में निर्मित फिल्म हम दोनों लेटेस्ट तकनीक के साथ रंगीन होकर हाल ही प्रदर्शित हुई है. देव साहब की नई फिल्म चार्जशीट भी रिलीज के लिए तैयार है, लेकिन उसके पहले उन्होंने हम दोनों को रिलीज किया. एक भव्य प्रीमियर शो आयोजित कर उन्होंने बॉलीवुड के तमाम दिग्गज कलाकारों को इसमें बुलाया. पुरानी पीढ़ी के धर्मेन्द्र से लेकर युवा कलाकर रणबीर कपूर तक इसमें नजर आए.

देव आनंद ने अपने एक बयान में कहा है कि मुगल-ए-आजम तथा नया दौर को रंगीन करते समय टेक्नालॉजी नई थी. उसके बाद इसमें इतने सुधार हुए हैं कि हम दोनों फिल्म देखते समय दर्शकों को यह अहसास कतई नहीं होगा कि वे पुरानी ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म का रंगीन संस्करण देख रहे हैं. उन्हें सिनेमास्कोप, डॉल्बी डिजिटल साउण्ड के साथ एक फ्रेम में रंगों के पैसठ हजार शेड्‌स का आभास होगा. ऐसा लगेगा कि हम दोनों अभी-अभी बनी है और पर्दे पर नई नवेली फिल्म की तरह आई है.

गोल्ड स्टोन का साथ

अमेरिकन कम्पनी गोल्ड स्टोन के साथ देव आनंद का एक करार हुआ है. उसी के अंतर्गत हम दोनों को रंगीन बनाया गया है. इसके विश्व व्यापी प्रदर्शन और भारत में प्रदर्शन का जो लाभ होगा, वह अनुपातिक दृष्टि से गोल्ड स्टोन और नवकेतन बैनर में बांटा जाएगा. यानी देव साहब के लिए यह कहीं से भी घाटे का सौदा नहीं है.

देव साहब फरमाते हैं कि हम दोनों का कथानक पुराना कतई नहीं है. इसमें दिखाया युद्ध मॉडर्न है. जो प्रेम कहानी है वह मॉडर्न है. साहिर साहब के गीत आज भी लगातार सुने जा रहे हैं. लता मंगेशकर एवं आशा भोसले ने जिस मेलोडी के साथ गाया है वह भी लाजवाब है. और सबसे बड़ी बात यह है कि देव साहब की जिंदगी की जो फिलासफी है- 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया' इस फिल्म में अपने मौलिक रूप से उभर कर दर्शकों के दिल-दिमाग में उतर जाती है.

हम दोनों का तीसरा पहलू

फिल्म हम दोनों के बारे में कुछ अंदर की बातें जानना निश्चित रूप से दिलचस्प होगा. इस फिल्म की कहानी निर्मल सरकार ने लिखी है, लेकिन स्टोरी आइडिया को देव के छोटे भाई विजय आनंद ने डेवलप कर अपने अनुसार बनाया है. फिल्म का निर्देशन विजय आनंद का है, लेकिन स्क्रीन पर नाम अमरजीत का दिया गया है. वह इसलिए कि अमरजीत लंबे समय से नवकेतन बैनर के स्वामीभक्त सेवक रहे हैं. उन्हें आगे बढ़ाने के लिए दोनों आनंद भाइयों ने यह दोस्ती निभाई है. हिन्दी सिनेमा के इतिहास में पचास तथा साठ का दशक इस तरह के उदाहरणों से भरा हुआ आदर्श समय रहा है.

हम दोनों के सिर्फ पांच

फिल्म के प्रमुख कलाकारों तथा तकनीकी सहयोगियों में से सिर्फ पांच इस दुनिया में जीवित हैं. नायक देव आनंद के अलावा दोनों नायिकाएं नंदा और साधना तथा दोनों गायिकाएं लता और आशा रंगीन शो के प्रीमियर में उपस्थित रहने वाले हैं. लेखक, पटकथाकार, निर्देशक, गीतकार और संगीतकार अब जीवित नहीं हैं. देखना है, नई पीढ़ी के दर्शक इसका कैसा स्वागत करते हैं. पुरानी पीढ़ी के दर्शकों का फिल्म को समर्थन मिलेगा, इसमें संदेह नहीं है.

रिपोर्टः समय ताम्रकर (सौजन्यः वेबदुनिया)

संपादनः ए कुमार

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