"यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िन्दगी"
१२ फ़रवरी २०१०किस्मत होती है कि नही, इस बारे में कहना संभव नही है लेकिन अगर आप पान खाते है, तो खाइए क्या पता आपकी किस्मत पान की दुकान पर खुल जाए.
भारत में हिन्दी सिनेमा के मशहूर अभिनेता प्राण कृष्ण सिकंद की किस्मत भी पान की दुकान पर पान खाते समय ही खुली थी. 12 फरवरी को पुरानी दिल्ली में जन्में प्राण आज 90 वर्ष के हो गए.
प्राण की किस्मत लाहौर की हीरा मंडी में पान की दुकान पर लेखक और फिल्म निर्माता वली मुहम्मद वली के रूप में पीछे पड़ी. ये किस्मत कभी उनकों गलियों मे ढूंढती तो कभी सिनेमाहाल में मिल जाती . आखिरकार प्राण को पहली फिल्म यमला जट करनी पड़ी. ये एक पंजाबी फिल्म थी. प्राण का इस फिल्म में कॉमेडी रोल था. प्राण को इस फिल्म में मेहनताने को लेकर काफी कशमकश थी क्योंकि इस फिल्म को करने से पहले प्राण अपने फोटोग्राफी के पेशे से 200 रू प्रतिमाह सन् 1940 के दौर में कमाते थे, जबकि प्राण को इस फिल्म के लिए प्रतिमाह 50 रूपये का मेहनताना मिल रहा था. वली मुहम्मद वली साहब ने प्राण के पान चबाने के स्टाइल और बोलती आंखो को देखकर उनको ये रोल सौंपा था.
प्राण सिगरेट के धुएं से गोल-गोल छल्ले बनाने में माहिर थे. फ़िल्म निर्देशकों ने इसका ख़ूब इस्तमाल किया. वह पहले शॉट में प्राण को दिखाते ही नहीं थे बल्कि शॉट हिरोईन पर पड़ने वाले सिगरेट के छल्लों से शुरू होता और फिर क्लोज़ अप प्राण पर जाता.
प्राण ने शीश महल, आन-बान, हलाकू, व राजतिलक जैसी कॉस्ट्यूम ड्रामा फिल्में भी की. साथ ही कुछ परीकथाओं में भी हाथ आजमाया जैसे सिंदबाद-द सेलर, अलिफ लैला, डॉटर ऑफ सिंदबाद. प्राण ने देवानंद के साथ पहली बार ज़िद्दी फिल्म में काम किया. इस फिल्म में प्राण को अच्छी हिंदी बोलने का अभ्यास खुद देवानंद ने करवाया था. लेकिन एक बात रोचक है कि देवानंद, दिलीप कुमार और राजकपूर की तिकड़ी ने कभी साथ काम नही किया था. फिल्म शहीद में केहर सिंह और उपकार में मंलग चाचा की भूमिका उनके करियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई.
अमिताभ और प्राण ने साथ मिल कर अमर ,अकबर, एंथोनी, कसौटी, मजबूर, ऑन, कालिया,नसीब, नास्तिक, शराबी, अंधा कानून , इनक़लाब आदि फिल्में की. प्राण ने 346 से अधिक फिल्मों में काम किया है. उनकी फिल्म वसन्त सेना , लालकिला ,ताला चाबी पूरी नहीं हो पायी. उन्हें जब 2000 में सहस्रसाब्दि का खलनायक अवार्ड स्टारडस्ट ने दिया तो उन्होनें इसे अपने जीवन भर का सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण अवार्ड बताया. प्राण साहब किस्मत को बखूबी मानते है इसलिए उन्होनें कहा कि
खुदा तौफ़ीक देता है जिन्हें, वो ये समझते हैं
के खुद अपने ही हाथो से बना करता हैं तक़दीरें
सचिन यादव, हिन्दी पत्रकारिता, भारतीय जनंसचार संस्थान
नई दिल्ली.