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समाज

शहरों में बैठकर कैसे सुलझेंगे किसानों के मसले

अपूर्वा अग्रवाल
७ अक्टूबर २०१८

कृषि क्षेत्र से जुड़े स्टार्टअप एक के बाद एक बाजार में आ रहे हैं. निवेशक भी इन पर खूब दांव लगा रहे हैं, लेकिन क्या आलीशान दफ्तरों में बैठकर काम करने वाले ये नए कारोबारी ग्रामीण इलाकों में कृषि क्षेत्र की सूरत बदल पाएंगे?

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Indien Dorf Geschichte
तस्वीर: DW/S.Waheed

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में चाहे कृषि का हिस्सा कम हो रहा हो लेकिन तकनीकी स्टार्टअप्स अब इस क्षेत्र में तेजी से अपना दखल बढ़ा रहे हैं. पिछले कुछ सालों में टेक-स्टार्टअप ने देश की कृषि व्यवस्था में हाथ आजमाना शुरू कर दिया है. तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी एक्सेंचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में "डिजिटल एग्रीकल्चर सर्विसेज" का बाजार साल 2020 तक 4.55 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का दावा किया है, जिसके बाद से इस बाजार में और भी तेजी आई है.

निवेशकों की रुचि

पुणे का स्टार्टअप एग्रोस्टार किसानों को कच्चा माल खरीदने के लिए एक मोबाइल प्लेटफार्म देता है. मार्च 2017 में एग्रोस्टार को निवेश कंपनी एक्सेल से 1 करोड़ डॉलर की दूसरे राउंड की फंडिंग मिली थी. मोबाइल के जरिए किसान इस कंपनी से बीज, खाद, कीटनाशक जैसी चीजें खरीद सकते हैं. महिंद्रा एंड महिंद्रा ने भी खेती-किसानी में इस्तेमाल होने वाली मशीनरी को ऑनलाइन बेचने वाले किसान मोबाइल मंडी प्राइवेट लिमिटेड नाम से शुरू हुए स्टार्टअप मित्रा में बड़ा निवेश किया है. भारत के डेयरी उत्पादों के लिए काम करने वाले स्टार्टअप स्टेलाअप्स में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने बड़ा निवेश किया है. स्टार्टअप्स से जुड़े ये नए कारोबारी मानते हैं कि इस क्षेत्र में बड़े मौके हैं, जहां पर काम किया जा सकता है.

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तस्वीर: DW/S.Waheed

स्टार्टअप के लिए मौके

एग्रो स्टार्टअप टेक फॉर श्योर के सहसंस्थापक श्लोक जोशी बताते हैं कि इस क्षेत्र में दो तरह की सप्लाई चेन होती है. पहली सप्लाई चेन किसानों और मंडी के बीच काम करती है. वहीं दूसरी चेन छोटे दुकानदारों जिसमें से अधिकतर किसान होते हैं उन्हें बड़े खरीददारों से जोड़ती है. दोनों ही सप्लाई चेन में खामियां हैं. जोशी का स्टार्टअप दूसरी चेन मतलब छोटे दुकानदारों को बड़ी कंपनियों से जोड़ने पर काम करता है. उन्होंने बताया, "निचले स्तर पर किसानों और दुकानदारों की सबसे बड़ी समस्या है जानकारी का अभाव. गांव के छोटे दुकानदारों तक सही जानकारी नहीं पहुंचती, यहां तक कि कई बार उन्हें सही दाम भी नहीं पता चलते और वे औने-पौने दाम पर माल बेच देते हैं." जोशी कहते हैं, "सरकारी जानकारी भी इन छोटे दुकानदारों को नहीं मिलती, लेकिन सिर्फ जानकारी देना ही हमारा मकसद नहीं है. बल्कि हमारा उद्देश्य है कि मोबाइल ऐप के जरिए ट्रांजेक्शन बढ़ाया जाए, ताकि सप्लाई चेन की खामियों से निपटा जा सके."

कितनी कारगर तकनीक

अब सवाल उठता है कि क्या ये स्टार्टअप और तकनीक देश में कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदल सकते हैं. देश के अधिकतर स्टार्टअप शहरों में केंद्रित हैं. इनके संस्थापकों से लेकर निवेशक, अमूमन शहरी पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं ऐसे में कृषि की समस्या को कितना समझा जा सकेगा, इस पर विशेषज्ञों को संशय बना रहता है. जोशी मानते हैं, "कुछ हद तक ये बात सही भी है लेकिन कुछ संस्थापक ऐसे भी हैं जिन्होंने जमीनी स्तर पर काम भी किया है. हमने भी अपनी कंपनी शुरू करने से पहले गांवों में दो साल तक काम किया."

तकनीक जागरुकता को बढ़ाए जाने पर वैज्ञानिक भी जोर देते हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर अतर सिंह कहते हैं कि देश के कृषि क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या है जागरुकता की कमी, वहीं दूसरी समस्या है तकनीकी कौशल का अभाव. सिंह के मुताबिक, "जो भी रिसर्च देश में चल रही है उसको जमीनी स्तर पर लागू करना एक चुनौती है. जलवायु परिवर्रतन और सूखे के बारे में हम किसानों को बताते हैं कि क्या तकनीक उन्हें अपनानी चाहिए, कैसे वे उत्पादन और आर्थिक स्तर पर लाभ कमा सकते हैं पर सारी बातें को वे लागू नहीं कर पाते." स्टार्टअप को लेकर सिंह कहते हैं, "इन नए स्टार्टअप का बहुत फायदा अभी नहीं होगा क्योंकि सिर्फ 10-15 फीसदी लोगों में ही जागरुकता है. अभी इसका लाभ न मिले लेकिन भविष्य में ये जरूर कारगर होंगे."

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