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पार्ट टाइम खेती से सुधरेगी किसानों की हालत?

१३ नवम्बर २०१७

भारत में खेती बाड़ी को घटती आमदनी और कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या के संकट से कैसे उबारा जाए. कुछ जानकार कहते हैं कि खेती को पार्ट टाइम काम के तौर पर करना एक समाधान हो सकता है.

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तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोगों की रोजी रोटी का जरिया जमीन ही है, लेकिन एक किसान परिवार के लिए खेती बाड़ी से होने वाली आमदनी 1980 के दशक के मुकाबले घट कर एक तिहाई रह गयी है. विकास अर्थशास्त्री माइकल लिप्टन कहते हैं, "पार्ट टाइम खेती करने की बहुत गुंजाइश है. इसका मतलब है कि अगर कहीं और अवसर दिखायी दें तो खेती करने वालों को वहां चले जाना चाहिए. और जब खेती के लिए अच्छी संभावनाएं हो तो उन्हें वापस आ जाना चाहिए."

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दक्षिण भारत के शहर हैदराबाद के दौरे पर पहुंचे ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स में प्रोफेसर लिप्टन मानते हैं कि जमीन से ही चिपके रहने की बजाय किसानों के लिए पार्ट टाइम खेती करना ही अच्छा रहेगा.

पिछले दस साल में भारत में हजारों किसानों ने आत्महत्या की है जिसका मुख्य कारण कर्ज ना चुका पाना था. भारत के किसान आम तौर पर मॉनसून पर निर्भर होते हैं. अगर अच्छी बारिश ना हो तो अच्छी फसल की उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. इसके अलावा कई बार फसल का अच्छा दाम न मिल पाने के कारण भी उन्हें घाटा उठाना पड़ता है.

मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तलिमनाडु में इस साल किसानों ने व्यापक विरोध प्रदर्शन किये जिसके बाद उन्हें कर्ज माफी का आश्वासन मिला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले पांच सालों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात करते हैं.

शोध संस्थान मैककिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट का कहना है कि 2011 से 2015 के बीच कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर 2.6 करोड़ कम हुए हैं. भारत में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले हर दस में सात लोगों के पास या तो जमीन नहीं है और अगर है तो वह ढाई एकड़ से कम है.

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बिना जमीन वाले किसान न तो सरकार से लोन हासिल कर सकते हैं और न ही उन्हें फसल बीमा जैसी सुविधा मिलती है. लेकिन एचएसबीसी इंडिया की एक रिपोर्ट कहती है कि भूमिविहीन किसान जमीन वाले किसानों से ज्यादा कमा लते हैं क्योंकि वे बीच में जाकर दूसरी नौकरियां भी करते हैं. ऐसे लोग ग्रामीण इलाकों में चलने वाली परियोजनाओं में काम कर लेते हैं जिनमें सड़क या फिर दूसरे निर्माण कार्य शामिल हैं.

एचएसबीसी इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी कहते हैं, "अच्छे मॉनसून के बाद मजदूरों की मांग बढ़ जाती है. इसी के कारण मेहनताना भी बढ़ जाता है और इससे भूमिविहीन किसानों को फायदा होता है. वहीं जमीन वाले किसान आमदनी के लिए सिर्फ खेती पर निर्भर होते हैं और जब फसल का अच्छा दाम नहीं मिलता तो उनके लिए मुश्किलें बढ़ जाती हैं."

एके/आईबी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)