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समाज

बिजली सब्सिडी का फायदा किसे मिल रहा है?

हृदयेश जोशी
६ अक्टूबर २०२०

आंकड़े बताते हैं कि भारत में पिछले वित्त वर्ष में 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी बिजली उपभोक्ताओं को दी गई लेकिन सवाल है कि इसका फायदा किसे मिल रहा है?

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Symbolbild Grüne Glühbirne Umwelt   Energie ökologisch neu denken
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Gann

बिजली सब्सिडी भारत में राजनीतिक रूप से हमेशा एक संवेदनशील मुद्दा रहा है. इसीलिए अकसर सब्सिडी में कटौती या इसमें किसी ढांचागत बदलाव के लिए सरकारें अनमनी रहती हैं. यह सवाल अकसर उठता है कि क्या सब्सिडी का अक्षम और अकुशल ढांचा ही बिजली क्षेत्र में घाटे के लिए जिम्मेदार है और यदि ऐसा है तो इस घाटे में इसका कितना हिस्सा है. यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि देश में पूरा बिजली सेक्टर घाटे में है और ज्यादातर वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के कर्ज बढ़ते जा रहे हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े?

पावर सेक्टर में सबसे कमजोर लिंक वितरण कंपनियों या डिस्कॉम को माना जाता है जिसका काम पावर कंपनियों से खरीदकर उपभोक्ताओं तक बिजली पहुंचाना है लेकिन डिस्कॉम लगातार घाटे में रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल फरवरी 2019 में देश की 58 वितरण कंपनियों का कुल कर्ज ही 41,881 करोड़ रुपये था. केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह के मुताबिक साल 2018-19 में वितरण कंपनियों को 27,000 करोड़ का घाटा हुआ. 

जानकार कहते हैं कि वितरण कंपनियों के इस घाटे में बिजली सब्सिडी एक बड़ा कारण है. पावर सेक्टर में काम कर रही पुणे स्थित एनजीओ प्रयास की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बिजली सब्सिडी डिस्कॉम की कुल राजस्व जरूरतों का 10% से 30% तक हैं. रिपोर्ट कहती है कि देश के पांच राज्यों में तो यह सब्सिडी सालाना 11% की दर से बढ़ रही है. बिजली सब्सिडी कृषि और घरेलू उपभोक्ताओं के साथ पावर व हैंडलूम जैसे कुटीर उद्योगों और ग्राम पंचायतों को दी जाती है. इसके अलावा कई राज्यों में इंडस्ट्री और व्यवसायों को भी बिजली सब्सिडी दी जा रही है. साल 2019 में देश में कुल बिजली सब्सिडी 1,10,391 करोड़ रुपये थी.

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सब्सिडी का फायदा अमीरों को

दिल्ली स्थित इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और अमेरिका स्थित जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय से जुड़े इनिशिएटिव फॉर सस्टेनेबल एनर्जी पॉलिसी (आईएसईपी) का ताजा सर्वे कहता है कि जो लोग अपेक्षाकृत अमीर हैं, उन्हें गरीबों के मुकाबले सब्सिडी का दोगुना फायदा मिल रहा है. झारखंड में कराए इस सर्वे के नतीजे बताते हैं अमीरों को सब्सिडी के 60% फायदे मिल रहा है और गरीबों को केवल 25% लाभ मिल रहा है. झारखंड में बिजली सब्सिडी एक रुपये से सवा चार रुपये प्रति किलोवॉट घंटा है. बिजली सब्सिडी मूलरूप से दो बातों पर निर्भर है. पहली यह कि वह किस आर्थिक-सामाजिक वर्ग के उपभोक्ता को मिल रही है और दूसरी ये कि परिवार का कुल बिजली खर्च कितना है. रिपोर्ट की सहलेखक और आईआईएसडी की शोधकर्ता श्रुति शर्मा के मुताबिक अमीर अधिक बिजली खर्च कर सकते हैं, इसलिए उन्हें सब्सिडी का अधिक फायदा मिल रहा है.

शर्मा कहती हैं, "झारखंड में जो मॉडल है उसके मुताबिक जो परिवार हर महीने 800 यूनिट बिजली खर्च कर रहा है वह उस परिवार के मुकाबले चार गुना अधिक फायदा बटोर सकता है जिसका खर्च 50 यूनिट से कम है.” इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले शोधकर्ता कहते हैं चूंकि देश के बहुत से राज्यों में बिजली दरें और सब्सिडी का ढांचा झारखंड जैसा ही है, इसलिए इससे व्यापक तस्वीर समझी जा सकती है. जानकार कहते हैं कि स्पष्ट आंकड़ों का अभाव सब्सिडी का ढांचा तय करने की राह में एक बड़ी बाधा है.

देश के तमाम राज्यों ने सब्सिडी के अलग-अलग ब्रैकट तय किए हैं. दिल्ली और पंजाब में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त है तो हरियाणा में 150 यूनिट बिजली फ्री दी जाती है. झारखंड में भी 200 यूनिट तक बिजली फ्री है और उसके बाद खर्च बढ़ने के साथ सब्सिडी के स्लैब तय किए गए हैं. 800 यूनिट मासिक से अधिक बिजली इस्तेमाल करने वालों को भी 1 रुपये प्रति किलोवॉट-घंटा के हिसाब से सब्सिडी मिल रही है. राज्य में नब्बे प्रतिशत परिवारों का औसत मासिक खर्च 200 यूनिट से अधिक नहीं है. इससे सवाल उठता है कि क्या सब्सिडी को बेहतर तरीके से लागू नहीं किया जा सकता.

जानकारों की राय

कोयला और बिजली क्षेत्र के जानकार और दिल्ली स्थित वसुधा फाउंडेशन के सीईओ श्रीनिवास कृष्णास्वामी कहते हैं कि बिजली खपत का हिसाब, बिलिंग और सब्सिडी एक पेचीदा मुद्दा है और यह कहना बहुत उचित नहीं होगा कि आर्थिक रूप से सक्षम हर उपभोक्ता को सब्सिडी का नाजायज फायदा मिल रहा है.

कृष्णास्वामी के मुताबिक, "जैसे जैसे बिजली की खपत बढ़ती है वैसे वैसे सब्सिडी कम होती जाती है और टैरिफ बढ़ता है. हमने इस बात की गणना की है कि वितरण कंपनियों को हर यूनिट के लिए 6 से 6.50 खर्च करने पड़ते हैं. अब अधिक खपत वाले बहुत सारे उपभोक्ताओं के लिए आप औसत बिजली खर्च की गणना करेंगे तो पाएंगे कि उन्हें बिजली इससे ऊंची दर पर मिल रही है. इसलिए सब्सिडी का फायदा अमीर को जाता है यह लॉजिक हर जगह नहीं चलता.”

उधर पावर सेक्टर के जानकार सौरभ कहते हैं कि कई बार डिस्कॉम सब्सिडी के बहाने अपनी अक्षमता और कमियों को छुपाती हैं. आईआईएसडी के ताजा सर्वे का हवाला देते हुए सौरभ कहते हैं कि अगर 79% घरों में मीटर लगा है और केवल 57% लोगों को बिल भेजा जा रहा है, तो "इनएफिशेनसी” को समझा जा सकता है. वह कहते हैं कि अगर बिल ही 60 प्रतिशत से कम लोगों को जा रहा है तो कलेक्शन और भी कम होगा. 

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समस्या का हल क्या है?

सब्सिडी रोजगार को बढ़ावा देने और सामाजिक दायित्व के तहत जरूरी है. जानकार कहते हैं कि बिजली की चोरी और ट्रांसमिशन लॉस को कम करना जरूरी है. खुद सरकार मानती है कि ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन में 18% से अधिक घाटा होता है और उसका लक्ष्य इस घाटे को 15% से कम करना है. सौरभ के मुताबिक प्रीपेड मीटर और सब्सिडी का डीबीटी (डायरेक्ट बैनेफिट ट्रांसफर) के तहत खाते में ट्रांसफर एक प्रभावी उपाय है.

केंद्र सरकार ने बिजली सब्सिडी को उपभोक्ता के खाते में सीधे ट्रांसफर करने का प्रस्ताव रखा है जिसे अभी लागू किया जाना बाकी है. सौरभ के मुताबिक, "प्रीपेड मीटर लगेंगे तो उपभोक्ता पहले भुगतान करेगा. इन मीटरों में खर्च का सही-सही ब्यौरा होगा. जब उपभोक्ता मीटर को रीचार्ज करे तो उसके खाते में सब्सिडी का पैसा डाल दिया जाए. चूंकि मीटर प्रीपेड हैं तो इससे सरकार की काफी मैन पावर बचेगी जिसे दूसरे कामों में लगाया जा सकता है. जिन जगहों में प्रीपेड मीटर नहीं हैं वहां स्टाफ जाकर बिजली बिल पहले जमा कर सकता है और बिल के हिसाब से  सब्सिडी अकाउंट में ट्रांसफर की जा सकती है.”

उधर श्रुति शर्मा कहती है कि प्रीपेड स्मार्ट मीटर और डीबीटी समस्या के हल का एक अहम हिस्सा है लेकिन किसी न किसी स्तर पर सब्सिडी को व्यवहारिक बनाना होगा नहीं तो यह मुहिम कामयाब नहीं होगी. उनके मुताबिक "अगर आप प्रीपेड मीटरिंग और डीबीटी के साथ टारगेटिंग और टैरिफ को व्यवहारिक नहीं बनाएंगे यानी अधिक आय वाले की सब्सिडी कम नहीं करेंगे, तो यह डायरेक्ट ट्रांसफर भी काम नहीं करेगा. इसलिए किसी एक सुधार से बात नहीं बनेगी और इन सारे सुधारों को साथ-साथ लागू करना होगा.”

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