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क्यों आज भी कोयले पर चल रहे हैं नई दिल्ली के आस पास संयंत्र

२ जनवरी २०२०

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कोयले से चलने वाले 11 संयंत्रों को उत्सर्जन को कम करने वाले उपकरण लगाने के लिए कहा गया था. इसकी अंतिम तिथि बीत चुकी है और ये संयंत्र वैसे के वैसे चल रहे हैं.

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Deutschland | Kohlekraftwek Frimmersdorf
तस्वीर: imago images/Martin Wagner

साल 2019 के खत्म होने के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में चल रहे 11 संयंत्र फिर से समीक्षा के घेरे में आ गए हैं. कोयले से चलने वाले इन संयंत्रों को चेतावनी दी गई थी कि अगर इन्होंने साल के अंत तक सल्फर ऑक्साइड से होने वाले उत्सर्जन को कम करने वाले उपकरण नहीं लगाए तो इन्हें बंद कर दिया जाएगा. लेकिन नए साल की शुरुआत हो चुकी है और ये संयंत्र अभी तक वैसे ही चल रहे हैं. नई दिल्ली के आस पास बिजली के संयंत्र चलाने वाली कंपनियों के कम से कम तीन वरिष्ठ अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि उन्हें अभी तक इस बारे में कोई निर्देश नहीं मिले हैं कि उपकरण लगाए बिना वो पहले की ही तरह संयंत्रों को चला सकते हैं या नहीं. इन 11 संयंत्रों में से सिर्फ एक ने उपकरण लगवाया है.

पहले इन संयंत्रों को बंद करने की आखिरी तिथि 31 दिसंबर 2017 ही थी, पर बाद में इसे आगे बढ़ा दिया गया था. इससे फेफड़ों की बीमारी पैदा करने वाले और वायु की गुणवत्ता को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषण से लड़ने वाली एजेंसियों की चुनौती बढ़ गई थी. भारत के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने इन संयंत्रों को निर्देश ना मानने पर बंद करने की चेतावनी दी थी. अब जब आखिरी तिथि बीत चुकी है तो सीपीसीबी का अभी तक इस विषय पर कोई बयान नहीं आया है. समाचार एजेंसी के बार बार फोन करने और टेक्स्ट संदेश भेजने पर भी सीपीसीबी के अधिकारियों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. 

Indien Chhattisgarh  Kraftwerk
तस्वीर: Ravi Mishra/Global Witness

पिछले महीने समाचार एजेंसी रायटर्स ने खबर दी थी की भारत में कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों में से आधे और कोयले से चलने वाले अन्य संयंत्रों में से 94 प्रतिशत संयंत्र आखिरी तिथि तक उत्सर्जन कम करने वाला उपकरण लगा पाने की स्थिति में नहीं लग रहे हैं. पहली जनवरी को राजधानी दिल्ली में वायु गुणवत्ता का सूचकांक "गंभीर" स्तर पर था, जैसा कि इस बारे जाड़े में अधिकतर दिनों पर रहा. यह स्वस्थ लोगों के लिए भी एक संभावित खतरा है.

ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में दोनों ऊर्जा संयंत्र चल रहे थे, जबकि उन्हें दी हुई 31 दिसंबर तक की मियाद खत्म हो चुकी है. पंजाब में वेदांता कंपनी की तलवंडी साबो पावर लिमिटेड (टीएसपीएल) की इकाइयां और रोपड़ और भटिंडा में सरकारी संयंत्र  बिजली बना रहे थे.

Indien Chhattisgarh Kraftwerk
तस्वीर: Ravi Mishra/Global Witness

उत्तरी हरियाणा में बिजली बनाने वाली सरकारी कम्पनी एचपीजीसीएल में प्रबंधक निदेशक मोहम्मद शायिन ने बताया कि जिन इकाइयों में पहले से निर्धारित रख-रखाव चल रहा है उन्हें छोड़ कर बाकी सभी इकाइयां चल रही हैं. उन्होंने यह भी कहा कि एचपीजीसीएल ने केंद्रीय एजेंसियों से निवेदन किया है कि उत्सर्जन की अंतिम तिथि को बढ़ा दिया जाए. वेदांता और लार्सन एंड टूब्रो (एल एंड टी) जैसी निजी कंपनियों ने भी अंतिम तिथि को बढ़ाने के ही पक्ष में बात रखी. 

एल एंड टी के स्वामित्व वाली नाभा पावर ने कहा कि "सीपीसीबी द्वारा अंतिम तिथि बढ़ने में हुई देर की वजह से उसे अपनी दोनों इकाइयां बंद करने पर मजबूर होना पड़ रहा है." वेदांता ने भरोसा जताया है कि एजेंसियां "विचारशील रुख अपनाएंगी." कंपनी का यह भी कहना था, "अगर हमें सीपीसीबी या पर्यावरण मंत्रालय से निर्देश आएंगे तो हम संयंत्र को बंद कर देंगे."

सीके/आरपी (रायटर्स)

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