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माइका खदानों में अवैध खनन रोकने में प्रशासन क्यों नाकाम?

२९ नवम्बर २०१९

झारखंड राज्य का कोडरमा जिला माइका खनन के लिए दुनिया भर में मशहूर है लेकिन एक और कड़वा सच यह भी है कि खदान में काम करना कई बार जानलेवा साबित होता है.

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Indien Kinderarbeit Kinder arbeiten am Nehru Stadion in Neu Delhi
तस्वीर: Getty Images/D. Berehulak

झारखंड के कोडरमा में माइका की खदान में काम करने के दौरान ऋतिका मुर्मू की भाभी और सहेली की मौत हो गई थी. उसके बाद से 15 वर्षीय ऋतिका ने ठान लिया कि वह खनिज उठाने खदान कभी नहीं जाएगी और ना ही किसी और को वहां जाने देगी. ऋतिका के मुताबिक, "मैं माइका उठा रही थी तभी खदान का मलबा गिर गया, मैं चीखते हुए बाहर की तरफ भागी." उस घटना को याद करते हुए ऋतिका बताती हैं कि कैसे उसकी दोस्त की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि भाभी की मौत अस्पताल में इलाज के दौरान हो गई. ऋतिका कहती हैं, "मैं दोबारा वहां नहीं जाऊंगी, कभी नहीं, मैं दूसरे बच्चों से भी यही बात कहती हूं."

झारखंड राज्य के अमझर गांव में हुए हादसे पर हालांकि ऋतिका बात करना चाहती थी लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली. इनमें ऋतिका के भाई मोतीलाल मुर्मू भी शामिल थे जिनकी पत्नी की हादसे में मौत हो गई थी. पूर्वी भारत के इस हिस्से में माइका की अवैध खनन ही अक्सर आय का एकमात्र जरिया है. इस साल अवैध खनन के दौरान दो मौत के मामलों के बावजूद प्रशासन इस पर कार्यवाही नहीं कर रहा है. 2016 में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन ने खुलासा किया था कि बच्चे अवैध खदान में मर रहे हैं लेकिन उनकी मौत छिपाई गई, परिवार को "ब्लड मनी" देकर चुप करा दिया गया और उन्हें माइका निकालने को कहा जाता रहा.

माइका का इस्तेमाल मेकअप उत्पाद, कार पेंट और इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों में होता है. दो महीने के भीतर 7 बच्चों की मौत के खुलासे के बाद इन राज्यों से माइका लेने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इस बात के लिए प्रतिबद्धता जताई कि वह अपनी सप्लाई चेन को स्वच्छ करेगी. प्रशासन भी इस क्षेत्र को कानूनी दायरे में लाने और नियमित करने का दावा करता है. इस साल थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन दोबारा झारखंड के दो माइका बहुल जिले कोडरमा और गिरिडीह पहुंचा, तो पाया कि वहां खनन का काम धड़ल्ले से जारी है और अवैध खदानों में लोग काम कर रहे हैं. पुलिस रिकॉर्ड, स्थानीय अखबार की रिपोर्ट्स और निजी संस्थानों के इंटरव्यू, अधिकारियों और चश्मदीदों से बात करने पर पता चला कि वहां 2018 से माइका की खदानों में 19 मौतें हुईं, लेकिन सिर्फ 6 मौतों की रिपोर्ट अधिकारियों से की गई. मरने वालों में तीन बच्चे भी शामिल थे. इस क्षेत्र के सुर्खियों में आने के चलते अब अधिक बच्चे स्कूल जाने लगे हैं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पुलिस का कहना है कि गांववाले हादसों की रिपोर्ट इसलिए नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें गिरफ्तारी का डर रहता है, साथ ही उन्हें पता है कि यह अवैध काम है.

झारखंड सरकार का कहना है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 2018 में पांच बच्चों की मौत का आंकड़ा दर्ज किया जबकि इस साल एक भी मामला नहीं दर्ज हुआ. इसी साल कोडरमा के पुलिस अफसर तमिल वाणन को माइका खदान में एक शव मिलने की सूचना मिली, जब तक उनकी टीम वहां पहुंची शव को हटा दिया गया और गांववालों ने कहा कि कोई मौत नहीं हुई. ऐसे में पुलिस टीम के पास जांच करने का कोई सबूत नहीं था. पुलिस का कहना है कि लोगों को पता है कि यह काम अवैध है और ऐसे में कार्रवाई हो सकती है इसलिए लोग पुलिस तक मामला नहीं पहुंचा रहे. झारखंड सरकार के साथ मिलकर बाल मजदूरी के खिलाफ काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रंस फाउंडेशन (केएससीएफ) के गोविंद खनल के मुताबिक, "मौत या हादसे की रिपोर्ट नहीं करना दर्शाता है कि लोग डरते हैं कि कहीं उनकी एकमात्र आय का जरिया ना बंद हो जाए. हम उन बच्चों को लेकर चिंतित हैं जो अब भी माइका खदान में जाते हैं."

Indien Kinderarbeit Junge arbeitet in einer Kohlemine bei Lad Rymbai
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Berehulak

खतरे में जिंदगी

भारत माइका के सबसे बड़े उत्पादकों में से है. एक समय में देश में माइका की 700 खदानें थी जिसमें 20 हजार मजदूर काम करते थे, लेकिन 1980 वन संरक्षण अधिनियम के कारण अधिकतर खदानें बंद हो गईं. माइका का विकल्प तैयार हो जाने के बाद इस उद्योग पर भी असर पड़ा और कड़े नियम के चलते खदानें बंद होती चली गईं. चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी और विश्व भर में प्राकृतिक सौंदर्य उत्पादों की बढ़ती मांग की वजहों से गैरकानूनी रूप से कारोबार दोबारा बढ़ने लगा. बंद खदानों में लोग अवैध रूप से खनन करने लगे. इस कारण माइका का काला बाजार खड़ा हो गया. झारखंड सरकार की कोशिश इस समस्या से निपटने की है. वह कई विकल्पों पर काम कर रही है, जिनमें स्कूलों में बच्चों का अधिक से अधिक दाखिला कराना, लोगों को वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराना या फिर माइका खदानों को कानूनी रूप से संचालित करना शामिल है.  "  

महिला, बाल विकास और सामाजिक सुरक्षा विभाग के सचिव अमिताभ कौशल के मुताबिक, "माता-पिता के पास वैकल्पिक आजीविका नहीं होने के कारण वे अपने बच्चों को माइका खदानों में काम करने के लिए भेजते हैं. "कौशल कहते हैं कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रंस फाउंडेशन ने 2016 से अबतक 2500 बच्चों को माइका खदान से बाहर लाकर उन्हें स्कूलों में दाखिला कराया है. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने दो माइका ब्लॉक को अवैध खनन से मुक्त कराकर निजी खनन कंपनियों को नीलाम किया. 

Indien Frauen in Kohlenbergbau in Jharkhand
लोगों के पास रोजगार का विकल्प नहीं.तस्वीर: AP

राज्य के खान और भूतत्व विभाग के सचिव अबु बकर सिद्दीकी के मुताबिक, "हम इस सेक्टर को दोबारा जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं, खनन को कानूनी करना चाहते हैं. कई लोगों की जिंदगी इसी पर निर्भर है." सामाजिक कार्यकर्ता सरकारी सुधारों की गति को लेकर चिंतित नजर आते हैं. 2016 में पेरिस स्थित रेस्पॉन्सिबल माइका इनिशिएटिव (आरएमआई) के तहत भारतीय माइका खदानों में 2021 तक बाल मजदूरी को समाप्त करने का वादा किया गया था. आरएमआई ने कॉरपोरेट सदस्यों से इस साल अब तक 1.33 मिलियन अमेरिकी डॉलर ही इकट्ठा की हैं जो कि 2019 के लक्ष्य से 20 फीसदी कम है. इस कोष के जरिए माइका बेल्ट में पड़ने वाले 80 गांवों में योजनाएं चलाई जाती हैं, योजना बिहार के नवादा और झारखंड के कोडरमा और गिरिडीह के गांवों में चलती हैं. आरएमआई के 60 सदस्यों में कॉस्मेटिक कंपनी लॉरियल और जर्मनी की दवा कंपनी मर्क शामिल हैं जबकि सिर्फ एक ही इलेक्ट्रॉनिक कंपनी फिलिप्स इसका सदस्य है. 

गांव की महिलाएं खनन कर निकाले गए माइका को जहां 10 रुपये प्रति किलो की दर से बेचती हैं वहीं बाजार में इसकी असली कीमत कई गुना अधिक है. माइका बीनने वाली सुनीता देवी कहती हैं, "हमारे त्योहार, कपड़े और हमारी जिंदगी माइका के ही ईद गिर्द घूमती है. हम इसके बिना क्या कर सकते हैं. यहां कोई रोजगार का विकल्प नहीं है." 25 साल के मोहम्मद बिलाल अंसारी कहते हैं, "कुछ महीने पहले मेरे पिता की माइका खदान में मौत हो गई, मैंने इसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई. माइका ही हमारी नियति है. यही हमारा काम है."

एए/आरपी (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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