1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

भारत में बाल मजदूरी पर बनी फिल्म बताएगी 'कड़वा सच'

१३ नवम्बर २०१९

कालीन की फैक्ट्री में काम कराने के लिए एक बच्चे की तस्करी पर बनी फिल्म भारत के ग्रामीण इलाकों में दिखाई जाएगी. मकसद है लोगों को जागरुक करना.

https://p.dw.com/p/3SvdP
Indien Kinderarbeit
फाइल तस्वीर: imago/imagebroker

इस फिल्म के जरिए ऐसे परिवारों के बीच जागरुकता फैलाई जाएगी, जो अक्सर मानव तस्करों के निशाने पर रहते हैं. झलकी फिल्म 9 साल की ऐसी बच्ची पर आधारित है जो अपने छोटे भाई की तलाश में दर-दर भटकती है. लड़की के माता-पिता उसके भाई को बिना इच्छा के तस्कर को बेच देते हैं. फिल्म झलकी के बारे में डायरेक्टर ब्रह्मानंद सिंह ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से कहा, "हम बाल मजदूरी पर जागरुकता फैलाने के लिए बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचना चाहते हैं."

Kinder in indischen Steinbrüchen
तस्वीर: picture-alliance/dpa

बंधुआ बाल मजदूरी पर फिल्म

सिंह ने कहा कि यह फिल्म नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाने वाले कैलाश सत्यार्थी  के जीवन से प्रेरित है. राष्‍ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्‍यूरो (एनसीआरबी) द्वारा पिछले महीने जारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 में मानव तस्करी के तीन हजार मामले दर्ज किए गए थे, इससे पूर्व के साल में इस तरह के 8000 मामले दर्ज किए गए थे. ग्रामीण इलाकों में मानव तस्कर गरीब, महिलाएं और बच्चों को शहर में अच्छी नौकरी का लालच देकर उन्हें आधुनिक युग की बंधुआ मजदूरी में धकेल देते.

स्टार्ट अप कंपनी पिक्चर टाइम ग्रामीण इलाकों में इस फिल्म का प्रदर्शन करेगी. पिक्चर टाइम ग्रामीण इलाकों में एयर कंडीशन थिएटर के माध्यम से फिल्म का प्रदर्शन करती है और यह एक तरह का अस्थायी थिएटर होता है. कंपनी ने एक टिकट की कीमत 50 रुपये रखी है.

सिनेमा के जरिए संदेश

सिंह कहते हैं, "पिक्चर टाइम की पहुंच ग्रामीण इलाकों तक है जहां सिनेमा घर मौजूद नहीं है. हम इस फिल्म का प्रदर्शन कर सकते हैं और लोगों को जागरुक कर सकते हैं." कैलाश सत्यार्थी की संस्था भी ग्रामीण इलाकों में इस फिल्म को दिखाएगी, जहां तस्कर गरीब और भोल भाले लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं. भारत के कुछ पिछड़े राज्य जैसे छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड से सबसे अधिक बच्चों की तस्करी सेक्स या बाल मजदूरी के लिए होती है लेकिन वहां कुछ ही सिनेमा घर मौजूद हैं. पिक्चर टाइम के संस्थापक सुशील चौधरी कहते हैं, "झलकी एक महत्वपूर्ण फिल्म है और इसे जगह-जगह दिखाई जानी चाहिए." पिक्चर टाइम ने मासिक धर्म पर बनी फिल्म पैडमैन और खुले में शौच पर बनी फिल्म टॉयलट एक प्रेम कथा भी इसी तरह से पिछले कुछ सालों में प्रदर्शित की है.

रिपोर्ट: थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन

__________________________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी