विश्व विजेता आनंद को मात
२२ नवम्बर २०१३आनंद ने शतरंज की बिसात पर लगभग उसी वक्त कदम रखे थे, जब क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर का पदार्पण हुआ था और समझा जाता है कि उनका सूरज भी सचिन के साथ ही डूब रहा है. हालांकि आनंद ने संन्यास जैसी कोई बात तो नहीं कही है, लेकिन आने वाले वक्त में उनकी वापसी की उम्मीदें कम ही रह गई हैं.
यूं तो शतरंज की दुनिया में चेन्नई के आनंद लगभग दो दशक तक छाए रहे. लेकिन पिछले सात साल उन्होंने घातक तेवर दिखाए. तीखे आक्रामक चाल चलने वाले आनंद अपने सीधे सादे व्यक्तित्व से सबको धोखा दे बैठते. वह लगातार विश्व चैंपियनशिप जीतते चले आ रहे थे और एक वक्त तो अजेय लगने लगे थे.
करामाती कार्लसन
हालांकि पिछले कुछ महीने में उनके खेल में कमजोरी नजर आने लगी और इसी दौरान नॉर्वे का करामाती युवक मैग्नस कार्लसन विश्व शतरंज की क्षितिज पर चमकीला तारा बन कर उभरा. ताबड़तोड़ चालें चलने वाले कार्लसन ने 13 साल में ग्रैंडमास्टरी हासिल की और सबसे कम उम्र के पहले नंबर के शतरंज खिलाड़ी बने. चेन्नई में विश्व चैंपियनशिप की 10वीं बाजी में आनंद को बराबरी पर रोकने के साथ ही उन्होंने आनंद की बादशाहत तोड़ दी.
रूस के गैरी कास्परोव ने बरसों पहले ही कार्लसन पर भरोसा जता दिया था. कास्परोव ने कभी कार्लसन को मार्गदर्शन भी दिया है और आज जब 30 नवंबर को कार्लसन अपना 23वां जन्मदिन मनाने जा रहे हैं, वह कास्परोव के रिकॉर्ड को तोड़ने में बस कुछ हफ्तों से चूक गए. 1985 से 1993 तक शतरंज की बादशाहत करने वाले कास्परोव कार्लसन को "सुपर टैलेंट" कहते हैं. अमेरिका के बॉबी फिशर (1975) के बाद वह पश्चिमी दुनिया के पहले खिलाड़ी हैं, जिन्होंने शतरंज के विश्व चैंपियनशिप पर कब्जा किया. इस बीच शतरंज की दुनिया पर रूस या भारत का राज रहा.
उम्र सबसे बड़ी चुनौती
चेन्नई में वर्ल्ड चैंपियनशिप शुरू होने से पहले ही कार्लसन को खिताब का दावेदार माना जा रहा था और कहा जा रहा था कि विश्वनाथन आनंद पर उम्र का असर दिखने लगा है. शतरंज के जानकार मानते हैं दौड़ भाग नहीं करने के बाद भी इस खेल में मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए तेज तर्रार और ताजा दिमाग होना जरूरी है. 43 साल के आनंद के सामने अपने से आधे उम्र के कार्लसन के खिलाफ खेलना आसान नहीं था. खास कर तब, जब पिछले तीन साल से नॉर्वे के इस खिलाड़ी ने दुनिया भर के शतरंज दिग्गजों को पानी पिला रखा है और छह महीने पहले आनंद को भी मॉस्को में चुटकियों में परास्त कर दिया था.
अपनी बहन के साथ पहली बार बिसात पर बैठने वाले कार्लसन इतनी जल्दी इन ऊंचाइयों को छू लेंगे, किसी को अंदाजा नहीं था. हालांकि अमेरिका की ग्रैंड मास्टर सूजन पोलगर का कहना है, "मैग्नस अलग तरह के खिलाड़ी हैं और उनका खेलने का तरीका बिलकुल अलग है."
आनंद हार चुके हैं. अब कार्लसन से भी बड़ी चुनौती उन्हें उनकी उम्र दे रही है. अगला विश्व चैंपियनशिप खेलना पक्का नहीं है. हो सकता है कि धीरे धीरे वह बाजी और बिसातों से किनारा कर लें. लेकिन शतरंज की दुनिया को खुशी होगी कि उनकी जगह एक करामाती खिलाड़ी ले रहा है. ठीक वैसे ही, जैसे सचिन के विदा होते होते विराट कोहली और रोहित शर्मा पकड़ बना चुके थे.
एजेए/एमजी (एएफपी)