रिटायर नहीं हो रहे हैं आनंद
१६ सितम्बर २०१२भले ही आनंद शतरंज के विश्व चैंपियन हों लेकिन उनकी आधी उम्र के नॉर्वे के 21 वर्षीय मैगनस कार्लसन इस वक्त दुनिया के पहले नंबर के खिलाड़ी बन चुके हैं. नौवें नंबर पर खड़े यूक्रेन के वासिली इवानचुक ही एकमात्र खिलाड़ी हैं, जो उम्र में आनंद से जरा बड़े हैं. आनंद से जब पूछा गया कि क्या वह रिटायरमेंट के बारे में सोच रहे हैं, तो उन्होंने कहा, "मैं कैसे रिटायर हो सकता हूं."
लगभग दो दशक के करियर के दौरान आनंद ने दुनिया के बड़े बड़े शतरंज खिलाड़ियों को पराजित किया है. उनका मानना है कि इस्राएल के बोरिस गेलफांद इन सबसे सबसे बड़े शतरंज खिलाड़ी थे. इस साल गेलफांद को हरा कर आनंद ने वर्ल्ड चैंपियनशिप जीती है. तय समय तक दोनों खिलाड़ी बराबर पर जमे थे, इसके बाद टाई ब्रेकर में मुकाबले का फैसला हो पाया.
आनंद का कहना है, "एक लिहाज से मैं बोरिस गेलफांद को प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मानता हूं. वह एक पेशेवर और नियम से खेलने वाले खिलाड़ी हैं. इस चैंपियनशिप पर जितना मेरा अधिकार था, उतना ही उनका भी था. यह मुकाबला मेरी अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा साबित हुई."
आनंद 18 साल की उम्र में 1988 में ही ग्रैंड मास्टर बन गए. उनका कहना है कि रोज नई बातें सीखने की उनकी ललक ही है, जिसने उनके करियर को इतना लंबा किया है. उन्होंने कहा, "सबसे पहले तो एक राज है. और वह यह कि आपको शतरंज खेलने रहना होगा. मैं लगातार खेल की नई बारीकी सीखता रहता हूं. और अब तक मैंने उन सभी चुनौतियों का सामना ढंग से किया है, जो मेरे सामने आई हैं."
अपनी फिटनेस के बारे में आनंद का कहना है कि वह खाने में बहुत ज्यादा सख्त नहीं हैं लेकिन इतना ध्यान जरूर रखते हैं कि रोजाना जिम चले जाएं, "मैं अपनी फिटनेस को लेकर सजग हूं. मैं हर रोज जिम जाता हूं और कोशिश रहती है कि मेरी फिजिकल फिटनेस बनी रहे. इसके बिना शतरंज का दबाव नहीं झेला जा सकता है."
आनंद के नाम पांच विश्व चैंपियनशिप के अलावा छह शतरंज ऑस्कर भी हैं. फिर भी उन्हें वह रुतबा हासिल नहीं, जो भारत में क्रिकेट खिलाड़ियों को होता है. आनंद इसे बुरा नहीं मानते, "मैं इस बारे में कभी नहीं सोचता. मेरा काम शतरंज खेलना है क्योंकि मैं इससे प्यार करता हूं. मैं जो हासिल कर सकता हूं, वह हासिल करने की कोशिश करता हूं."
आनंद की तुलना सीधे तौर पर क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर से की जा सकती है. दोनों की उम्र में ज्यादा फर्क नहीं और दोनों ने अपना करियर भी लगभग एक साथ ही शुरू किया था. अगर उपलब्धियों के हिसाब से देखा जाए, तो आनंद अपने खेल में सचिन से बेहतर ही साबित हो सकते हैं, कमतर नहीं. यहां तक कि खेलों का सबसे बड़ा भारतीय पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न भी पहली बार 1991 में उन्हें ही मिला. लेकिन क्रिकेट के दीवाने देश में सचिन को लेकर जो जुनून है, आनंद को लेकर उसके आस पास भी नहीं.
लंबे समय तक स्पेन में रहने के बाद आनंद अपने शहर चेन्नई लौट आए हैं. उनका कहना है कि वह यूरोप को मिस करते हैं, "स्पेन तो मेरी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बन गया था. लेकिन भारत लौट कर भी अच्छा लग रहा है कि मैं अपने परिवार के साथ हूं. मैं अभी भी साल में कम से कम दो बार स्पेन जरूर जाता हूं और उसके संपर्क में रहता हूं."
एजेए/एएम (पीटीआई)