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अपराध

हिरासत में मौत पर रिटायर्ड अफसरों की मुख्यमंत्री को चिट्ठी

समीरात्मज मिश्र
१९ मार्च २०१९

बिहार में हिरासत में हुई मौतों के मामले में विभिन्न राज्यों में आला पुलिस अधिकारी रह चुके कई लोगों ने चिंता जताई है और इस मामले में फौरन कार्रवाई करने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखा है.

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Indien Symbolbild Polizeigewalt
सांकेतिक तस्वीरतस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran

राज्यों के पुलिस महानिदेशक रह चुके आठ आईपीएस अफ़सरों ने पुलिस के ‘पूछताछ के तरीकों' और ‘हिरासत में होने वाली मौतों' पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने पुलिस की ऐसी कार्रवाइयों को बेहद गंभीर और ख़तरनाक बताया है. पत्र में इन अधिकारियों ने ऐसे मामलों में दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की भी अपील की है. अपील करने वालों में पंजाब के डीजीपी रह चुके जूलियो रिबेरो, बीएसएफ के महानिदेशक रह चुके प्रकाश सिंह, केरल से पीकेएच ठकरान और जैकब पुन्नूज, हैदराबाद से कमल कुमार, महाराष्ट्र से संजीव दयाल, असम से जयंतो एन चौधरी और मेघालय से एन रामचंद्रन शामिल हैं.

बिहार के सीतामढ़ी जिले में गत सात मार्च को दो मुस्लिम युवकों की हिरासत में मौत हो गई थी. आरोप लगे थे कि पुलिस ने इस दौरान उन्हें शारीरिक प्रताड़ना दी जिसके चलते उनकी मौत हो गई. गुफरान आलम और तस्लीम अंसारी नाम के इन दोनों युवकों को पुलिस ने चोरी और हत्या के कथित जुर्म में गिरफ्तार किया था. इन पूर्व अधिकारियों ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा है, "इस तरह की घटनाएं पुलिस व्यवस्था और उसकी कार्यप्रणाली पर संदेह खड़ा करती हैं. सरकार को चाहिए कि पीड़ित परिवारों को तुरंत सुरक्षा प्रदान करे और मौतों की जांच करके दोषी लोगों पर कार्रवाई करे ताकि लोगों का विश्वास कानून-व्यवस्था पर बना रह सके.”

मानवाधिकार प्रशिक्षण पर जोर

इस पत्र में ये भी कहा गया है कि सरकार को पुलिस कर्मियों को पर्याप्त प्रशिक्षण और जमीनी स्तर पर विभिन्न परिस्थितियों से निपटने का भी प्रशिक्षण देना चाहिए. साथ ही अभियुक्तों और अपराधियों से कैसे बर्ताव करना चाहिए, उन्हें इसका भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इससे पहले, इस मामले में कुछ रिटायर्ड प्रशासनिक अधिकारियों ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था और पीड़ित परिवारों को अन्य प्रकार के सहयोग के अलावा कानूनी सहायता मुहैया कराने की भी मांग की थी. हालांकि इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.

Indien Nitish Kumar nach den Wahlen in Bihar
मुख्यमंत्री नीतीश कुमारतस्वीर: picture-alliance/AP Photo/A. A. Siddiqui

मृतकों के परिवार ने दोनों को ​हिरासत में प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है. उनका कहना है कि प्रताड़ना के चलते ही दोनों की मौत हुई है. राज्य के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडे ने मीडिया को बताया कि इस मामले में थाना इंचार्ज समेत पांच पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई है. उन्होंने बताया कि इन सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ है. सभी को निलंबित भी कर दिया गया है लेकिन पांचों पुलिसकर्मी अभी तक फ़रार हैं.

गुफरान और तस्लीम को 6 मार्च को रमदीहा गांव से बाइक चोरी और अपने मकान मालिक की हत्या के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था. परिवार वालों के मुताबिक स्थानीय पुलिस रात को आई और दोनों को उनके घरों से उठाकर ले गई. दोनों एक ही गांव के रहने वाले थे. हिरासत में मौत को बाद जब उनके शवों को दफनाने के लिए साफ किया जा रहा था तब परिजनों को उनके शरीर पर चोट के निशान दिखे और उन्होंने उसका वीडियो बना लिया.

पुलिस हिरासत में मौत

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इन दोनों के शरीर पर कील ठोंके जाने के निशान मिले हैं. उनके परिजन इन निशानों पर सवाल उठा रहे हैं और इसी वजह से उन्हें इन दोनों की हत्या किए जाने की आशंका है. कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश में भी ताबड़तोड़ होने वाले एनकाउंटर्स पर सवाल उठे थे. इन एनकाउंटर्स पर मानवाधिकार आयोग ने तो नोटिस जारी ही किया था राज्य के कई रिटायर्ड पुलिस अधिकारियों ने भी इस तरह की पुलिस कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. यहां सबसे गंभीर सवाल ये है कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों में शायद ही किसी को सजा मिलती हो.

मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2010 से 2015 के बीच भारत में पुलिस हिरासत में तकरीबन 600 लोगों की मौत हुई है, लेकिन किसी भी मामले में किसी पुलिसकर्मी को कोई सजा नहीं मिली. 114 पन्नों की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पुलिस हिरासत में होने वाली मौतों को अक्सर बीमारी, भागने की कोशिश, खुदकुशी और दुर्घटना की वजह से होने वाली मौत बता दिया जाता है. रिपोर्ट में सरकारी आंकड़ों के हवाले से दावा किया गया है कि 2015 में पुलिस हिरासत में हुई 97 मौतों में से 67 में पुलिस ने या तो संदिग्ध को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश ही नहीं किया या फिर संदिग्ध की गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर ही अभियुक्त की मौत हो गई.