समानांतर सिनेमा के दूत थे मृणाल सेन
३१ दिसम्बर २०१८सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्में बनाने वाले मृणाल सेन में आजीवन कुछ नया करने की छटपटाहट रही. वर्ष 2002 में अपनी आखिरी बांग्ला फिल्म 'आमार भुवन' (मेरी धरती) का निर्देशन करने वाले सेन को उसके बाद भी सही पटकथा की तलाश थी. लेकिन उनकी यह तलाश पूरी नहीं हो सकी और अपनी हिंदी फिल्म 'एक दिन अचानक' की तर्ज पर 95 साल की उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया.
अपने जीवन की तरह मौत में यह फिल्मकार क्रांतिकारी बना रहा. मृणाल सेन की इच्छा के अनुरूप न तो उनके शव पर फूल मालाएं चढ़ाई गईं और न ही सरकार या किसी संस्था की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित की गई. अब कोलकाता के एक शवगृह में रखे सेन के पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए अमेरिका से अपने पुत्र के लौटने का इंतजार है. उनके निधन पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत हिंदी और बांग्ला फिल्मोद्योग के तमाम लोगों ने गहरा शोक जताया है.
अपनी 16 फिल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले सेन को सामाजिक यथार्थ को परदे पर उतारने में माहिर माना जाता था. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उनकी एक अलग पहचान थी. वर्ष 1982 में उनकी बांग्ला फिल्म 'खारिज' को 1983 के फ्रांस के कान फिल्मोत्सव में ज्यूरी का अवार्ड मिला था.
मृणाल सेन ने अपनी पहली फीचर फिल्म 'रातभोर' वर्ष 1955 में बनाई थी. उनकी अगली फिल्म 'नील आकाशेर नीचे' ने उनको पहचान दी और तीसरी फिल्म 'बाइशे श्रावण' ने उनको अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. सेन की ज्यादातर फिल्में बांग्ला भाषा में ही हैं. जाने-माने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती ने मृणाल सेन के निर्देशन में बनी मृगया फिल्म से ही अपना करियर शुरू किया था. उस फिल्म में अभिनय के लिए मिथुन को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था.
सत्यजित रे और ऋत्विक घटक के साथ बांग्ला सिनेमा की त्रिमूर्ति कहे जाने वाले सेन की पहली हिंदी फिल्म भुवन शोम ने भारतीय फिल्म जगत में एक क्रांति ला दी थी. उसके बाद ही समांतर सिनेमा नाम से यथार्थपरक फिल्मों का एक नया युग शुरू हुआ. अपने छह दशक लंबे निर्देशन करियर में सेन ने बांग्ला और हिंदी की अनगिनत फिल्मों का निर्देशन किया था.
सेन अपनी तमाम फिल्मों में स्थापित सामाजिक मान्यताओं व परंपराओं को चुनौती देते रहे. उन्होंने बंगाल में नक्सल आंदोलन के दौरान होने वाले सामाजिक और राजनीतिक बदलावों को 'इंटरव्यू, कलकत्ता 71' और 'पदातिक' नामक अपनी तीन फिल्मों की सीरिज में बेहद खूबसूरती से समेटा था.
सेन ने एक बार कहा था कि अगर कोई चीज उन्हें हरदम जीवंत बनाए रखती है, तो वह है अधिक से अधिक फिल्में बनाने की इच्छा. कई बेहतरीन फिल्में बनाने वाले इस वयोवृद्ध फिल्मकार ने कुछ साल पहले अपने एक इंटरव्यू में मौजूदा दौर की फिल्मों के गिरते स्तर पर निराशा जताई थी. मृणाल सेन मानते थे कि आस्कर सिनेमाई श्रेष्ठता का पैमाना नहीं है और महान फिल्मकारों को कभी इन पुरस्कारों से नवाजा नहीं गया.
यह बात शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि सेन ने अपना करियर मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर शुरू किया था. इसके बाद उन्होंने कोलकाता के एक फिल्म स्टूडियो में साउंड टेक्नीशियन के तौर पर काम शुरू किया. यहीं से उनके लिए फिल्मी दुनिया के दरवाजे खुले थे. खुद सेन भी मानते थे कि वह संयोग से ही फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में आए थे.
14 मई 1923 को फरीदपुर (अब बांग्लादेश में) जन्मे सेन उच्च-शिक्षा के लिए कोलकाता महानगर में आए थे. यहां कलकत्ता विश्वविद्यालय से फिजिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक कंपनी में मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर नौकरी शुरू की थी.
इस नौकरी की वजह से उनको ज्यादातर महानगर से बाहर रहना पड़ता था. इसी के चलते उन्होंने यह नौकरी छोड़ कर फिल्म स्टूडियो में साउंड टेक्नीशियन के तौर पर नौकरी शुरू की. छात्र जीवन में वे वामपंथी विचारधारा से काफी प्रभावित थे. हालांकि उन्होंने कभी औपचारिक तौर पर पार्टी की सदस्यता नहीं ली. वे लंबे अरसे तक इप्टा से जुड़े रहे. उम्र के ढलते दौर में उनकी पहचान वामपंथी फिल्मकार के तौर पर बनी थी. हालांकि सिंगूर और नंदीग्राम में जमीन अधिग्रहण के दौरान हुए आंदोलन के दौराव वे तत्कालीन वाममोर्चा सरकार के खिलाफ दूसरे बुद्धिजीवियों के साथ सड़क पर भी उतरे थे. सेन वर्ष 1998 से 2003 तक राज्यसभा में भी रहे.
आखिरी बार वर्ष 2002 में 'आमार भुवन' बनाने वाले सेन ने निर्देशन का दामन नहीं छोड़ा था. लेकिन उन्हें सही पटकथा का इंतजार था. इस फिल्मकार ने वर्ष 2009 में अपने आखिरी इंटरव्यू में कहा था, "मैं बीते सात साल से रोज सुबह उठने पर नई पटकथा लिखने के बारे में सोचता हूं. लेकिन पता नहीं सही कहानी कब मिलेगी?” सेन ने कहा था कि वह ऐसी बहुत सी चीजें करना चाहता हूं जो अब तक नहीं कर सके हैं. सेन ने कहा था, "मैं जब अपनी नई फिल्म को देखता हूं तो वह पिछली फिल्मों की नकल लगती है. मुझे लगता है कि इससे बेहतर कर सकता था. काश अपनी जिंदगी को दोबारा जी सकता और अधिक फिल्में बना सकता.”