1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

लीबियाई विद्रोहियों का नस्लवादी चेहरा

७ सितम्बर २०११

कर्नल मुअम्मर गद्दाफी के पतन के बाद लीबिया की राजधानी त्रिपोली में जनजीवन सामान्य होने का दावा किया जा रहा है. लेकिन कई हिस्सों से अब नस्लवाद की रिपोर्टें आ रही हैं. बिना आरोपों के अश्वेत लोगों को कैद किया गया है.

https://p.dw.com/p/12TyH
Tripolis Gewalt gegen Schwarze Copyright: DW/ Karlos Zurutuza, Tripolis Sept. 2011
नस्लवादी हिंसातस्वीर: DW

रिपोर्टों के मुताबिक राजधानी त्रिपोली और उसके आस पास के इलाकों में ही कई अश्वेत लोगों को नस्लवादी हिंसा का शिकार होना पड़ा है. नस्लवाद झेलने वाले लीबिया के ही नागरिक है. त्रिपोली के जेनाब मुहम्मद ने डॉयचे वेले से बातचीत की और बताया, "बीती रात वे लोग मेरे दो भाइयों को उठाकर ले गए और जेल में डाल दिया. हमारा अपराध सिर्फ यही है कि हम अश्वेत हैं."

त्रिपोली के पूर्व स्पोर्ट्स क्लब का नजारा भी नाटकीय ढंग से बदल चुका है. सोमवार को वहां नावें और निजी याट्स नहीं दिखीं. पूर्व स्पोर्ट्स क्लब में बड़ी संख्या में कैदी और उनका इंतजार करते रिश्तेदार दिखे. नस्लवाद का आलम यह रहा कि सभी कैदी अश्वेत थे जो त्रिपोली के पुराने कस्बे मेदिना के निवासी हैं.

Tripolis Gewalt gegen Schwarze Copyright: DW/ Karlos Zurutuza, Tripolis Sept. 2011
सामान्य नहीं जनजीवनतस्वीर: DW

विद्रोहियों के स्थानीय नेता नस्लवाद के आरोपों का खंडन करते हैं. अब्दुलहामिद अब्दुलहाकिम ने डॉयचे वेले से कहा, "इनमें से कोई भी लीबिया का नहीं है. कैद में रखे गए सभी लोग विदेशी हैं. हमारे लोगों को मारने के लिए इन्हें गद्दाफी भाड़े पर लेकर आए. ऐसे लोगों के साथ हम क्या करें."

जेनाब मुहम्मद कहते हैं, "वह (अब्दुलहाकिम) कह रहे हैं कि हम लीबिया के नहीं हैं, यह झूठ है. मैं चाड में पैदा हुआ और 20 साल पहले सेबाह आया. मेरे पास लीबिया का पासपोर्ट भी है."

घर से खाना लेकर आई और फिर जेल के बाहर धूप में खड़े होकर अपने पति की रिहाई की इंतजार कर रही त्रिपोली निवासी सलवा एसा ने कहा, "हमारी मुख्य समस्या हमारा रंग है."

चार दशक के शासन के दौरान गद्दाफी ने विदेशी कामगारों के लिए लीबिया के दरवाजे खोले. तेल उद्योग में काम करके बेहतर जिंदगी बसर करने की आशा लगाए हजारों लोग पड़ोसी देशों से लीबिया आए. इनमें से ज्यादातर सस्ते मजदूर थे. गद्दाफी के शासन में इनसे खूब काम लिया गया. अब इन्हें स्थानीय लोगों की नरफत का शिकार होना पड़ रहा है.

डॉयचे वेले किसी तरह एक कैदी से बात करने में सफल रहा. अबीकी मार्टेंस ने कहा, "मैं पिछले साल घाना से यहां आया. मेरे भाई ने कहा कि यहां सड़कों की सफाई करके की नौकरी पाना आसान है. यहां देखा तो लगा कि यहां सड़कों की सफाई अश्वेत ही करते हैं. मैं कसम खाकर कहता हूं कि मैंने इस देश में कभी अपने पास हथियार नहीं रखा."

Tripolis Gewalt gegen Schwarze Copyright: DW/ Karlos Zurutuza, Tripolis Sept. 2011
परेशान लोगतस्वीर: DW

एक 22 साल का हथियारबंद लड़का खुद को जेल का इंचार्ज बताता है. खुद को विद्रोहियों की नेशनल ट्राजिंशन काउंसिल का सब इंस्पेक्टर बताने वाला यह युवक कहता है, "इन लोगों को गिरफ्तार नहीं किया गया है. हम इन्हें तब तक यहां रखेंगे जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती. जो किसी तरह की हिंसा में शामिल नहीं हैं उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा, जो हिंसक गतिविधियों में शामिल पाए गए उन्हें जदैडा जेल भेजा जाएगा."

बीते हफ्ते त्रिपोली में अधिकारियों ने कहा कि शहर भर से करीब 5,000 लोग गिरफ्तार किए गए हैं. लोगों को क्यों गिरफ्तार किया गया है यह सवाल न मानवाधिकार संगठन पूछ रहे हैं और न ही आम नागरिकों को बचाने के नाम पर वहां पहुंची नाटो सेनाएं. गद्दाफी का शासन क्रूर कारनामों से भरा रहा. लेकिन नई शुरुआत की बात कर रहे विद्रोहियों की शुरुआत नस्लवाद छीटों के साथ होगी, ऐसी उम्मीद किसी ने नहीं की थी.

रिपोर्ट: कार्लोस जुरुटुत्जा, त्रिपोली/ओ सिंह

संपादन: महेश झा

 

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी