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सीआईए और गद्दाफी की खुफिया एजेंसी के बीच गहरे रिश्ते

३ सितम्बर २०११

अपदस्थ लीबियाई सरकार के दफ्तरों में मिली फाइलों से अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और कर्नल गद्दाफी की खुफिया एजेंसी के बीच गहरे रिश्तों का पता चला है. मीडिया की खबरों से ये जानकारी सामने आई है.

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तस्वीर: dapd

पूर्व अमेरिकी राषट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के शासन के दौरान अमेरिका की सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी संदिग्ध आतंकवादियों को लीबिया लेकर आती थी. लीबिया के खुफिया अधिकारी संदिग्धों से सीआईए के सुझाए सवालों के आधार पर पूछताछ करते थे. अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लीबिया की एक्सटर्नल सिक्योरिटी एजेंसी के दफ्तरों से मिले दस्तावेजों के हवाले से यह खबर छापी है.  

रिपोर्ट के मुताबिक 2004 में सीआईए लीबिया में अपना स्थाई ठिकाना बनाने के लिए आई थी. इस बारे में जर्नल को सीआईए के वरिष्ठ अधिकारी स्टीफन काप्पेस का लिखा एक नोट मिला है. काप्पेस ने ये नोट लीबियाई खुफिया एजेंसी के प्रमुख को लिखा. उस वक्त मूसा कुसा लीबिया की खुफिया एजेंसी के प्रमुख थे. जर्नल के मुताबिक दोनों अधिकारियों के बीच रिश्ते कितने गहरे थे इसका अंदाजा इस बात से भी लग जाता है कि नोट की शुरुआत "डियर मूसा" लिख कर की गई है और अंत में "स्टीव" का दस्तखत है.

जर्नल ने एक अमेरिकी अधिकारी की तरफ से उसका नाम लिए बगैर लिखा है कि उस वक्त लीबिया पश्चिमी देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों में जमी बर्फ को पिघलाने की कोशिश में था. इस अधिकारी ने कहा है, "संदर्भों को ध्यान में रखें तो याद आएगा कि 2004 तक अमेरिका ने लीबियाई सरकार को ये समझाने में कामयाबी हासिल कर ली थी कि वो परमाणु हथियार के कार्यक्रम को छोड़ दे और उन आतंकवादियों को रोकने में मदद करे जो अमेरिकी लोगों को अमेरिका में और बाहर निशाना बना रहे हैं.

ये दस्तावेज ह्यूमन राइट वॉच के शोधकर्ताओं को लीबियाई सरकार के दफ्तरों की छानबीन के दौरान मिले. उन लोगों ने ही इनकी कॉपियां अखबार वालों को दी हैं. 

अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने कम से काम आठ बार संदिग्ध आतंकवादियों को पूछताछ के लिए लीबिया भेजा. ऐसा तब किया गया जबकि पूरी दुनिया में लीबिया की छवि कैदियों को प्रताड़ित करने वाले देश की रही. इसके बदले वहां के विपक्षी नेता अबू अब्दुल्लाह अल सादिक को लीबिया भेजने का वादा किया गया. सीआईए के एक अधिकारी ने 2004 के मार्च के महीने में लीबियाई खुफिया एजेंसी को लिखा, "हम दोनों देशों की सेवा के लिए इस रिश्ते को पक्का करने के लिए प्रतिबद्ध हैं" इसके साथ ही वादा किया गया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सादिक को ढूंढने के लिए पूरी कोशिश करेगी. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि उसे दस्तावेजों से पता चला है कि सादिक, आब्देल हकीम बेलहाज का नाम था जो अब लीबियाई विद्रोहियों का सैनिक कमांडर है.

इस बीच ब्रिटिश अखबार द इंडिपेंडेंट ने कहा है कि कूसा के दफ्तर से मिले कुछ गोपनीय दस्तावेजों से पता चला है कि ब्रिटेन ने निर्वासन में रह रहे गद्दाफी के कुछ विरोधियों के बारे में लीबियाई जासूसों को जानकारी  दी. इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के दफ्तर ने इस बात का अनुरोध किया था कि 2004 में लीबियाई राजधानी त्रिपोली में कर्नल गद्दाफी के साथ होने वाली बैटक टेंट में होनी चाहिए. अखबारों में छपी इन खबरों पर अमेरिका या ब्रिटेन के अधिकारियों की तरफ से अब तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

ब्रिटिश अखबार का कहना है कि इन दस्तावेजों ने ब्रिटेन और अमेरिका के मूसा और गद्दाफी के साथ रिश्तों पर सवाल उठाए हैं. इस दौरान पश्चिमी देश कूटनीतिक रूप से अलग थलग पड़े लीबिया को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे थे. लीबिया में विद्रोह का बिगुल बजने के बाद इसी साल मार्च में मूसा भाग कर ब्रिटेन पहुंचे और गद्दाफी से रिश्ता तोड़ने का एलान कर दिया. मूसा पर मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के आरोप हैं. इसके बावजूद उन्हें कतर जाने दिया गया.

अखबार ने जानकारी दी है कि इन दस्तावेजों में कुछ पत्र और फैक्स ऐसे हैं जिनमें ऊपर लिखा है "ग्रीटिंग फ्रॉम एमआई-6" एमआई-6 ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी है. इनमें क्रिसमस के मौके पर ब्रिटेन के एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी की तरफ से भेजा गया कार्ड भी है. अखबार ने अमेरिकी सरकार के खुफिया दस्तावेज के रूप में चिन्हित किए एक पत्र का भी जिक्र किया है जिसमें लिखा है कि अमेरिका सरकार अल कायदा से जुड़े लीबियाई लड़ाकों के गुट के सदस्य शेख कूसा को लीबियाई कैद में सौंपने के लिए तैयार है.

इसी तरह का एमआई-6 का एक और दस्तावेज है जिसमें लीबियाई पासपोर्ट पर सफर कर रहे एक संदिग्ध के बारे में जानकारी मांगी गई है. दस्तावेजों से ये भी पता चला है कि गद्दाफी की तरफ से महाविनाश के हथियारों को छोड़ने के बारे में दिया गया बयान ब्रिटिश अधिकारियों की मदद से तैयार किया गया था.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः ओ सिंह

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