भारत की यात्रा में क्या लक्ष्य लेकर आ रही हैं जर्मन चांसलर
३१ अक्टूबर २०१९जर्मन चांसलर के साथ जर्मनी के बड़े कारोबारियों का एक प्रतिनिधिमंडल भी भारत जा रहा है. मैर्केल के साथ 12 मंत्री भी भारत जा रहे हैं जो अपने भारतीय समकक्षों के साथ आपसी संबंधों को मजबूत बनाने के लिए नए क्षेत्रों की पहचान करेंगे.
इस यात्रा के दौरान मैर्केल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगी. उनकी बातचीत के एजेंडे में कारोबार, निवेश, कृषि और उच्च तकनीक जैसे विषयों पर बातचीत होगी. दोनों पक्षों के बीच टिकाऊ विकास, शहरी परिवहन और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस से जुड़े कई करार पर दस्तखत होने हैं.
मैर्केल की भारत यात्रा से कुछ ही दिन पहले जर्मन संसद ने भारत और जर्मनी के बीच संबंधों को मजबूत करने की मांग रखते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था. संसद में इस मसले पर चर्चा के दौरान जर्मन विदेश मंत्री हाइको मास ने भारत को दक्षिण एशिया में "स्थिरता का स्तंभ" कहा था. मास ने कहा, "यूरोपीय नजरिए से एशिया नीति को जरूरत से ज्यादा चीन तक सीमित करना खतरनाक होगा, खासतौर से तब जबकि हमारे पास भारत के रूप में एक सहयोगी है जो हमारे मूल्यों और लोकतंत्र की हमारी समझ के ज्यादा करीब है."
'स्वाभाविक साझेदार'
सत्ताधारी क्रिश्चियन डेमोक्रैट यूनियन यानी सीडीयू और उसकी बावेरियाई सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन के संयुक्त संसदीय दल के उप नेता योहान वाडेफुल का कहना है, "जर्मनी में हम लोग और यूरोप में भी चीन पर ज्यादा ध्यान देते हैं, जबकि भारत के महत्व को कम कर के आंकते हैं." वाडेफुल ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि भले ही यूरोप को चीन के साथ कारोबारी समझौते से फायदा है, बीजिंग दुनिया में 2049 तक एक प्रभावशाली तकनीकी और आर्थिक ताकत बनने का लक्ष्य लेकर चल रहा है. इसका मतलब है कि चीन यूरोप के लिए एक बढ़ती हुई आर्थिक चुनौती है.
वाडेफुल का कहना है, "यूरोप और एशिया का कोई भी देश जो अपने खिलाफ चीन को रोकना चाहता है, वह अकेले अपने दम पर ऐसा नहीं कर सकता," यही वजह है कि हम "बहुपक्षवादियों का एक गठबंधन" बनाना चाहते है जिसमें "साझा मूल्य" भी हों. वाडेफुल के मुताबिक, "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत इस बड़े गठबंधन के भीतर जर्मनी का एक स्वाभाविक साझीदार है."
वाडेफुल ने नेविगेशन की आजादी के मसले की भी बात की. उन्होंने कहा कि जर्मनी "खुले और मुक्त भारत प्रशांत महासागर" के लिए प्रतिबद्ध है. वाडेफुल का कहना है कि यह भारत के साथ सिर्फ एकजुटता का मसला नहीं है बल्कि यह खुले समुद्र को लेकर एक बड़ी चिंता से भी जुड़ा है. उन्होंने होरमुज की खाड़ी, दक्षिण और पूर्व चीन सागर जैसे प्रमुख मुद्दों की बात की. उनका कहना है कि ये मुद्दे दुनिया के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं और भारत और जर्मनी को मिल कर इनका समाधान करना चाहिए.
विशाल बाजार
बीते दशकों में जर्मनी और भारत के बीच कारोबार और निवेश काफी तेजी से बढ़ा है. जर्मनी यूरोपीय संघ में भारत का सबसे अहम और दुनिया में छठा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. दोनों देशों के बीच सामान और सेवाओं का कारोबार सालाना करीब 18 अरब यूरो का है. इतना ही नहीं, जर्मनी भारत में सातवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है.
जर्मनी के लिए भारत एक विशाल बाजार है और जर्मन कंपनियों के लिए कारोबार के बड़ी संभावना. जर्मन कंपनियों के लिए बाजार के रूप में भारत का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है क्योंकि यूरोपीय अर्थव्यवस्था को अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी विवाद, ब्रेक्जिट को लेकर अनिश्चितता और यूरोपीय संघ की चीजों पर अमेरिकी टैक्स की वजह से मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं.
आपसी निवेश
इस बीच भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत को 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है जो फिलहाल 2.7 ट्रिलियन डॉलर की है. इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए विदेशी निवेश बेहद जरूरी है और साथ ही भारत को उत्पादन का बड़ा केंद्र बनाना होगा. यह दोनों काम नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताओं में हैं क्योंकि उनके सामने देश की बढ़ती आबादी के लिए रोजगार का संकट भी है.
हालांकि भारत विदेशी कारोबारियों के लिए एक मुश्किल बाजार रहा है, इनमें यूरोपीय और जर्मन कारोबारी भी शामिल हैं जो वहां काम कर रहे हैं. ज्यादातर देश अत्यधिक लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और बुनियादी सुविधाओं की कमी को समस्या बताते हैं. वाडेफुल का कहना है, "हम अपने भारतीय साझीदारों को जरूर बताते हैं कि जर्मन और यूरोपीय कारोबार के रास्ते में अब भी क्या बाधाएं हैं." इसके साथ ही वाडेफुल ने "आपसी निवेश को बढ़ाने" की जरूरत पर बल दिया.
जर्मन सांसद ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि भारत सरकार विदेशी निवेश के मार्ग में आ रही बाधाओं को हटाने की कोशिश कर रही है. वर्ल्ड बैंक की व्यापार करने की सहूलियत बताने वाली रैंकिंग में भारत 14 स्थानों की छलांग लगा कर 63वें रैंक पर पहुंच गया है.
हालांकि भारत की अर्थव्यवस्था फिलहाल बहुत अच्छी नहीं चल रही है. साल के मध्य में इसकी विकास दर 8 फीसदी थी जो पिछली तिमाही में घट कर 5 फीसदी रह गई. सेंट्रल बैंक ने 2019-20 के विकास के अनुमान को 6.9 फीसदी से घटा कर 6.1 फीसदी कर दिया है.
जानकारों के मुताबिक लंबे समय के लिए अर्थव्यवस्था की संभावना इस बात पर निर्भर करेगी कि मोदी सरकार मुश्किल लेकिन जरूरी संरचनात्मक सुधारों को लागू करने में कितने सफल हो पाती है. इनमें देश के जटिल श्रम कानून, जमीन की मिल्कियत के नियम और मुश्किल में घिरी सरकारी कंपनियों के मसले शामिल हैं.
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