ब्लॉग: इंडोनेशिया के राष्ट्रपति के पास यह आखिरी मौका है
१९ अप्रैल २०१९इंडोनेशिया में जोकोवी के नाम से लोकप्रिय जोको विडोडो ने फिर कर दिखाया. अगर शुरुआती नतीजों के रुझान को मानें तो उन्होंने 2019 का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है. ईमानदारी से कहें तो जोकोवी की जीत को लेकर कोई हैरानी नहीं है. चुनाव से पहले हो रहे सभी सर्वे उनकी जीत की भविष्यवाणी कर रहे थे. लेकिन 2017 में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के बाद से हमने सीखा है कि उन वोटरों को कम करके नहीं आंकना चाहिए जो आखिर वक्त पर तय करते हैं कि किसे वोट देना है.
इंडोनेशिया में 2019 के चुनाव का नतीजा कुछ भी हो सकता था, दोनों ही पक्ष इस बात को जानते थे. चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में जोकोवी ने ऐन वक्त पर फैसला करने वाले वोटरों का दिल जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया.
मिसाल के तौर पर, अंतरिम प्रेजीडेंशियल डिबेट से पहले जोकोवी ने अपनी रॉक स्टार वाली छवि को दिखाया और इंडोनेशिया के सबसे बड़े स्टेडियम में उनके सामने लाल और सफेद कपड़ों में उनके बेशुमार समर्थक थे. उनकी इस परफॉर्मेंस ने लोगों को जोकोवी के करिश्मे की याद दिलाई जिसके दम पर वह 2014 में पहली बार राष्ट्रपति बने थे.
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2014 के चुनाव के दौरान जोकोवी को युवा वोटरों का जबर्दस्त समर्थन मिला था और उन्हें 'इंडोनेशिया का बराक ओबामा' कहा गया. उन्हें युवाओं के प्रतिनिधि के तौर पर देखा गया. उन्हें ऐसे बाहरी व्यक्ति के तौर पर देखा गया जिसका संबंध इंडोनेशिया की सत्ता के गलियारों से नहीं था. इसी छवि ने उन्हें पहली बार राष्ट्रपति की कुर्सी दिलाने में मदद की.
लेकिन इस बार हमारे सामने एक अलग जोकोवी हैं. अब वह ऐसे व्यक्ति नहीं रहे जो उम्मीद की मशाल थामे हुए है. अपने पहले कार्यकाल में वह इंडोनेशिया के एलीट वर्ग के हितों की रक्षा करते दिखे, जिससे उनके समर्थक बहुत खफा हुए.
मारुफ अमीन को उपराष्ट्रपति पद उम्मीदवार बनाने के जोकोवी के फैसले से भी बहुत से लोग हैरान थे. मारुफ वही व्यक्ति हैं जिनकी वजह से जोकोवी के दोस्त और जकार्ता के पूर्व गवर्नर बाकुसी त्जाहाजा पुरनामा को 2017 में ईशनिंदा के आरोप में जेल जाना पड़ा.
इसलिए 2014 में जोकोवी के वोटर रहे बहुत से लोग अमीन को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने से निराश थे. यह जोकोवी की सुधारवादी और धार्मिक आजादी की वकालत करने वाली छवि के उलट था. इस कदम से जोकोवी ने चुनाव जीतने के लिए अपने मूल्यों से समझौता किया.
निश्चित रूप से जोकोवी ने कुछ अच्छा काम भी किया है. उन्होंने कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक पूरे किए. इस साल जकार्ता में पहली भूमिगत ट्रेन सेवा शुरू हुई. साथ ही स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम और कैश ट्रांसफर कार्ड को भी नहीं भूलना चाहिए.
आखिरी मौका
इंडोनेशिया के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पांच साल के दो कार्यकाल से ज्यादा पद पर नहीं रह सकते. इसका मतलब है कि यह जोकोवी का आखिरी कार्यकाल होगा. ऐसे में जोकोवी के पास अपने पांच साल पहले किए गए अपने वादों को पूरा करना का मौका है. लेकिन उनके पास समय ज्यादा नहीं है और लोगों के पास भी ज्यादा संयम नहीं है.
जोकोवी ने जब राष्ट्रपति के तौर पर अपना कार्यकाल शुरू किया था तो सबसे पहले उन्होंने नशीले पदार्थों का कारोबार करने वाले आठ अपराधियों की मौत की सजा के फरमान पर हस्ताक्षर किए थे. उन्होंने विदेशी नेताओं और यूरोपीय संघ की तरफ से ऐन वक्त पर की गई सभी अपीलों को खारिज कर दिया था. उन्होंने मौत की सजाओं का यह कहते हुए बचाव किया कि दोषी करार दिए गए लोगों को इसीलिए राष्ट्रपति की माफी नहीं मिल सकती क्योंकि इंडोनेशिया ड्रग इमरजेंसी का सामना कर रहा है.
उन्होंने यह भी वादा किया था कि वे 1965 और 1966 में हुए गृह युद्ध में बड़े पैमाने पर मारे गए लोगों के मुद्दे पर भी ध्यान देंगे. लेकिन इंडोनेशिया की बाकी सरकारों की तरह, जोकोवी के प्रशासन ने इसे ना सिर्फ अनदेखा किया बल्कि नरसंहार की गंभीरता को भी कमतर करने की कोशिश की.
जोकोवी बाकुसी त्जाहाजा पुरनामा के मुद्दे पर भी चुप रहे, जिन्हें ईशनिंदा के संदेहास्पद आरोपों में जेल भेज दिया गया. जोकोवी के कार्यकाल में ही इंडोनेशिया के सुरक्षा बलों ने एलजीबीटी और धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ कार्रवाई की. इंडोनेशिया में ऐसे बहुत से मानवाधिकार के मुद्दे हैं जिन पर जोकोवी को ध्यान देना चाहिए. बताया जाता है कि चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में उनके ज्यादातर आलोचक भी शांत रहे, ताकि उनकी जीत में अड़चनें ना पड़ें.
अगर ये सच है तो इसमें इंडोनेशिया के लोगों की यह उम्मीद झलकती है कि जोकोवी 2024 में राष्ट्रपति पद छोड़ने से पहले अपने सभी वादों को पूरा करेंगे. यह आखिरी मौका है. उनके पास अब खोने को कुछ नहीं है. यही जोकोवी की विरासत हो सकती है.
विडी लेगोवो सिपेरर डॉयचे वेले में इंडोनेशियाई सेवा की प्रमुख हैं