दूसरी बार इंडोनेशिया के राष्ट्रपति बनेंगे जोकोवी
१७ अप्रैल २०१९17 अप्रैल को मतदान संपन्न होने के कुछ ही घंटे बाद इंडोनेशिया में एग्जिट पोलों और क्विक काउंट ने राष्ट्रपति जोको विडोडो (जोकोवी) की जीत का एलान कर दिया. आधिकारिक रूप से नतीजे अभी नहीं आए हैं.
इंडोनेशिया के पिछले चुनावों में क्विक काउंट के नतीजे हमेशा सटीक बैठे हैं. क्विक काउंट प्रक्रिया के दौरान पोलिंग स्टेशनों से सैंपल जुटाए जाते हैं और उन्हीं के आधार पर नतीजों का अंदाजा लगाया जाता है. क्विक काउंट और आधिकारिक नतीजों में ज्यादा से ज्यादा एक फीसदी का अंतर आता है. इस लिहाज से देखा जाए तो जोकोवी को करीब 55 फीसदी वोट मिलने जा रहे हैं. उनके प्रतिद्ंवद्वी प्रबोवो सुबिआंतो को 45 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. करीब 10 फीसदी के अंतर को पाटना प्रबोवो के लिए काफी मुश्किल है.
क्विक रिजल्ट का एलान करने वाली एजेंसी पोलट्रैकिंग के डायरेक्टर हांता युडा कहते हैं, "मैं जोकोवी की जीत की भविष्यवाणी करता हूं."
57 साल के जोकोवी का कहना है कि वह क्विक काउंट के एलान से वाकिफ हैं. उन्होंने अपने समर्थकों से संयम रखते हुए आधिकारिक नतीजों का इंतजार करने की अपील की है. शांति और अमन की अपील करते हुए जोकोवी ने कहा, चुनाव बीत चुका है, "अब हमें अपनी एकजुटता बरकरार रखनी है."
वहीं प्रबोवो ने एग्जिट पोल्स और क्विक काउंट के नतीजों को साजिश बताया है. प्रबोवो के मुताबिक गैर आधिकारिक नतीजों के जरिए जोकोवी के पक्ष में माहौल बनाने को कोशिश की जा रही है. दूसरी बार राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखने वाले प्रबोवो का दावा है कि वो आधिकारिक नतीजों में 55.8 फीसदी वोट हासिल करेंगे. प्रबोवो ने 2014 में भी जोकोवी के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था. उन चुनावों में बेहद करीबी मुकाबले में जोकोवी की जीत हुई.
लेकिन पांच साल बाद हुए इन राष्ट्रपति चुनावों में जीत का अंतर बढ़ गया है. इंडोनेशिया के ज्यादातर ओपिनियन पोल ने चुनाव से पहले ही जोकोवी की बड़ी जीत का एलान किया था. सर्वेक्षणों में साफ कहा गया था कि इस बार हार जीत का फासला कम से कम 10 फीसदी रहेगा.
इंडोनेशिया में चुनाव आयोग ने पहली बार पूरे देश में एक ही दिन राष्ट्रपति, संसदीय और स्थानीय चुनाव आयोजित किए हैं. इंडोनेशिया में राष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है. देश के संविधान के मुताबिक कोई नेता अपने जीवनकाल में अधिकतम दो बार ही राष्ट्रपति बन सकता है.
26.4 करोड़ की आबादी वाला इंडोनेशिया, भारत और अमेरिका के बाद दुनिया का तीसरा बड़ा लोकतांत्रिक देश है. 2019 के राष्ट्रपति चुनावों के दौरान देश में 19.3 करोड़ मतदाता थे. भारत की तरह इंडोनेशिया भी कई धर्मों, संस्कृतियों और भाषाओं वाला देश है. दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में हिंदू और बौद्ध धर्म का भी गहरा प्रभाव दिखता है.
इन चुनावों में देश की धार्मिक सहिष्णुता भी प्रमुख मुद्दा रही. पिछले कुछ समय से इंडोनेशिया में इस्लामिक ताकतें मजबूत हो रही हैं. मजहबी ताकतों ने जोकोवी को अक्षम मुसलमान बताया. छोटे से फर्नीचर कारोबार से राजनीति में आने वाले जोकोवी ने कट्टरपंथी ताकतों को बेअसर करने के लिए प्रमुख उलेमा मारुफ अमीन को अपना प्रमुख साथी बनाया. इस कदम से जोकोवी की उदारवादी और प्रगतिशील समर्थक आहत भी हुए. प्रबोवो ने ऐसी राजनीति की आलोचना करते हुए सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार का वादा किया था. लेकिन पूर्व सेनाध्यक्ष के ऐसे वादों पर शक भी जताया जा रहा था. 1990 के दशक में उनकी अगुवाई में सेना पर मानवाधिकार उल्लंघन, लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं के अपहरण के आरोप भी लगे. प्रबोवो इन आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
1998 तक तानाशाही शासन में रहा इंडोनेशिया बीते दो दशकों से लोकतंत्र की राह पर है. राजधानी जकार्ता के कुलीन वर्ग से कोई ताल्लुक न रखने वाले जोकोवी ऐसे पहले नेता है जो राष्ट्रपति बने हैं. उनका दूसरा कार्यकाल इंडोनेशिया की अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करेगा. अनुमानों के मुताबिक 2030 तक इंडोनेशिया दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो जाएगा.
(इन हिंदू नामों का दीवाना मुस्लिम देश इंडोनेशिया)
ओएसजे/एनआर (एएफपी, एपी)