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शिक्षा

बर्लिन यूनिवर्सिटी क्यों कर रही है अपने छात्र संघ पर मुकदमा?

महेश झा
६ अगस्त २०१८

बर्लिन की हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी का छात्र संघ अपने पदाधिकारियों का पूरा नाम बताने को तैयार नहीं. यूनिवर्सिटी के अधिकारियों को भी नहीं. यूनिवर्सिटी प्रशासन अब उनका नाम जानने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा रहा है.

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Berlin Humboldt-Universität entscheidet über Islam-Institut
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kumm

यूनिवर्सिटी प्रशासन और छात्रों के प्रतिनिधियों का विवाद अब गहरा गया है. जर्मनी में छात्र संगठन स्वायत्त होते हैं. वे संविधान और नियमों के आधार पर अपना चुनाव और प्रशासन खुद करते हैं. पदाधिकारियों का पद अवैतनिक होता है, लेकिन छात्र संघ की जिम्मेदारियां बड़ी हैं और उनका बजट भी लाखों यूरो में होता है.

छात्र संघ की न्यायिक निगरानी  की जिम्मेदारी यूनिवर्सिटी की है, लेकिन अब यूनिवर्सिटी का कहना है कि पदाधिकारियों का नाम जाने बिना वह इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर सकती. इसलिए उसने पदाधिकारियों का पूरा नाम जानने के लिए बर्लिन की प्रशासनिक अदालत में जाने का फैसला किया है. हुम्बोल्ट यूनिवर्सिटी के छात्र संघ में 16 विभाग हैं और उसका वार्षिक बजट 7,80,000 यूरो है.

किसी भी दूसरे छात्र संघों की तरह जर्मन विश्वविद्यालयों के छात्र संघों का, जिन्हें जर्मन में अखिल छात्र आयोग या एस्टा कहा जाता है, काम छात्रों का यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी के बाहर प्रनिधित्व करना है. लेकिन चूंकि इसका गठन सरकारी फैसलों के आधार पर किया गया है, इसे छात्रों की संसद माना जाता है और ये छात्रों के हितों के लिए काम करती है.

इसमें छात्रों को कानूनी और सामाजिक मामलों में सलाह, होस्टल या रिहाइश की सलाह, किफायती बस और ट्रेन टिकट के लिए संबंधित कंपनियों से करार, विदेशी और अल्पसंख्यक छात्रों की मदद जैसे काम शामिल हैं. हर छात्र संघ में इन कामों के लिए विभिन्न विभाग होते हैं. यूनिवर्सिटी एडमिशन के समय हर छात्र से स्टूडेंट यूनियन के लिए भी फीस लेती है, लेकिन उसे खर्च करने की जिम्मेदारी पूरी तरह छात्र संघों की होती है.

पिछले समय में जर्मन छात्र संघों को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा है. छात्र संघों के चुनाव हर साल होते हैं और चुनाव में लोगों की दिलचस्पी घटी है, दस प्रतिशत से ज्यादा स्टूडेंट वोट में हिस्सा नहीं लेते. इसके अलावा वित्तीय कुप्रबंधन के आरोप भी लगते रहते हैं क्योंकि प्रतिनिधियों के बदल जाने के कारण कंट्रोलिंग ठीक से नहीं हो पाती. छात्र संघों का नेतृत्व आम तौर पर वामपंथी है, इसलिए दक्षिणपंथी छात्र ग्रुप उस पर राजनीतिक प्रतिनिधित्व का मतादेश न होने के बावजूद राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने का आरोप लगाते हैं.

बर्लिन की यूनिवर्सिटी का झगड़ा भी राजनैतिक पृष्ठभूमि से जुड़ा है. अति दक्षिणपंथी  एएफडी के विधायक मार्टिन ट्रेफ्त्सर ने बर्लिन की सरकार से शहर की तीन यूनिवर्सिटियों के छात्र प्रतिनिधियों के नाम पूछे. फ्री यूनिवर्सिटी और टेक्निकल यूनिवर्सिटी ने तो डाटा सुरक्षा का हवाला देकर नाम देने से मना कर दिया, हुम्बोल्ट ने अपने छात्र प्रतिनिधियों से कहा कि सार्वजनिक पद पर रहने वाला अपना नाम नहीं छुपा सकता.

छात्र प्रतिनिधियों की दलील है कि वे अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को अपना नाम नहीं बताना चाहते क्योंकि उन्हें उनसे गाली गलौज का डर है. उनकी एक दलील ये भी है कि पूरा नाम बताने की शर्त होने पर और कम लोग छात्र संघ के काम में दिलचस्पी लेंगे. हुम्बोल्ट की चांसलर सबीने कुंस्ट इस दलील से सहमत हैं, लेकिन वे छात्र संघ के काम में ज्यादा पारदर्शिता चाहती हैं.

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