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पिछले साल भारत की संसद में बस 15 बिल पास

२२ नवम्बर २०११

भ्रष्टाचार विरोधी कानून पास करने के दबाव के बीच भारतीय संसद के अहम शीतकालीन सत्र का पहला दिन विपक्षी दलों के हंगामे की भेंट चढ़ गया. इन हंगामों और सरकार की नीतियों का असर है कि पिछले साल बस 15 बिल ही पास हो सके.

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तस्वीर: UNI

मंगलवार को संसद के अहम शीतकालीन सत्र की कार्रवाई जैसे ही शुरू हुई विपक्ष ने हंगामा खड़ा कर दिया. नतीजा दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित करना पड़ा. संसद में मंगलवार को खाद्य सुरक्षा के लिए गरीबों को खाने पीने की चीजों में सब्सिडी देने और खनन से जुड़े एक बिल पर चर्चा करनी थी जिसमें स्थानीय लोगों को मुनाफे में हिस्सा देने की बात है. सत्र शुरू होने से पहले संसद के बाहर प्रधानमंत्री ने पत्रकारों से कहा, "विपक्ष जिन मुद्दों को उठाना चाहता है हम उन सब पर चर्चा करने के लिए तैयार हैं. हमें उम्मीद है कि सदन की कार्रवाई आराम से चलेगी."

विपक्ष के आरोप

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों से परेशान हैं. अर्थव्यवस्था की सुस्त पड़ती रफ्तार और बढ़ती महंगाई से चिंतित प्रधानमंत्री किसी तरह से विकास की रफ्तार को दोबारा पटरी पर लाना चाहते हैं. मनमोहन सिंह की दूसरी पारी का करीब आधा सफर तय हो चुका है और वो दिखाना चाहते हैं कि सुधारों का अभी लंबा रास्ता बाकी है.

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तस्वीर: dapd

प्रधानमंत्री जो भी कहें, पिछले साल संसद के कामकाज की रफ्तार का रिकॉर्ड बता रहा है कि आगे का रास्ता कितना मुश्किल है. 2010 में संसद का पूरा शीतकालीन सत्र स्थगित होते होते खत्म हो गया और कोई काम नहीं हो सका. पिछले सत्र में 10 बिल पास हुए और उससे पहले के सत्र में केवल पांच. भ्रष्टाचार निरोधी बिल का तो बड़ा शोर है, इसके अलावा विदेशी निवेश, रिटेल, विमानन और पेंशन से जुड़े बिल अटके पड़े हैं जिनकी कहीं चर्चा नहीं हो रही. औद्योगिक समूहों और कारोबारियों ने सरकार से मांग की है कि वह सुधारों को तेजी से लागू करे जिससे कि यह धारणा मजबूत होने से रोकी जा सके कि सरकार की सुस्त रफ्तार आर्थिक विकास की राह में बाधाएं खड़ी कर रही है. छोटे और विवादरहित बिलों को भी पास कराने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही है.

अन्ना की आंच

अगस्त में अन्ना हजारे के आंदोलन की गर्मी ने सरकार को ऐसा झुलसाया कि जलन अब भी महसूस हो रही है. अन्ना ने चेतावनी दी है कि अगर 21 दिसंबर तक लोकपाल बिल पास न हुआ तो आंदोलन फिर जोर पकड़ेगा. एक तरफ अन्ना का आंदोलन है तो दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के मामले और अर्थव्यवस्था की गिरती रफ्तार ऐसे में प्रधानमंत्री क्या क्या संभालें. अक्टूबर में महंगाई की दर दोगुनी हो गई जबकि बाजार की ऐसी उम्मीदें नहीं थी. महंगाई को काबू मे करने के लिए रिजर्व बैंक ने पिछले साल मार्च से लेकर अब तक 13 बार ब्याज की दरों में इजाफा किया लेकिन सब बेकार.

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तस्वीर: AP

शीतकालीन सत्र में क्या कुछ हो पाएगा यह बहुत कुछ विपक्ष के रवैये पर भी निर्भर करता है जिसकी कमान भारतीय जनता पार्टी के हाथ में है. बीजेपी ने पहले ही एलान कर दिया है कि वह गृह मंत्री पी चिदंबरम को संसद में बोलने नहीं देगी. 2008 में हुए टेलिकॉम घोटाले में पी चिदंबरम की भूमिका भी संदेह के घेरे में है. चिदंबरम तब भारत के वित्त मंत्री थे. भारत के बड़े कारोबारियों में से एक सुनील भारती मित्तल ने पिछले हफ्ते अपने एक खुले पत्र में लिखा था, "भारत पर बाहर से कोई हमला नहीं हुआ है, लेकिन निश्चित रूप से ऐसी स्थिति है जैसे अंदर से ही कोई संकट खड़ा हो गया हो. यह वक्त की मांग है कि विपक्षी पार्टियां राजनीति से ऊपर उठ कर सरकार का साथ दें और राष्ट्रीय महत्व के कुछ बिलों को पास करने के उनके कर्तव्य को पूरा करने में मदद करें."

रिपोर्टः डीपीए,एएफपी/एन रंजन

संपादनः महेश झा

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