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नेपाल में संवैधानिक संकट  

२१ दिसम्बर २०२०

नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली द्वारा संसद को भंग करने के कदम को उनके विरोधियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी है. याचिकाकर्ताओं ने इसे एक संवैधानिक तख्ता-पलट बताते हुए, अदालत से स्थगन आदेश की मांग की है.

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Nepal Khadga Prasad Sharma Oli in Kathmandu
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Wire/Pacific Press/N. Maharjan

ओली ने रविवार को संसद भंग करने की और फिर से आम चुनाव करवाने की घोषणा की थी. उसके बाद उनकी सरकार के कम से कम सात मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने ओली के कदम को उन्हें 2017 में मिले "लोकप्रिय जनमत" का उल्लंघन बताया. सड़कों पर ओली के पुतले भी जलाए गए.

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता भद्रकाली पोखरेल ने बताया कि तीनों याचिकाओं को "दर्ज करने की प्रक्रिया चल रही है." दिनेश त्रिपाठी याचिकाकर्ताओं में से एक हैं. उन्होंने रॉयटर्स को बताया, "संविधान के तहत, प्रधानमंत्री के पास संसद को भंग करने का कोई विशेषाधिकार नहीं है. यह एक संवैधानिक तख्ता-पलट है. मैं कोर्ट से स्थगन-आदेश की मांग कर रहा हूं."

ओली के मंत्रिमंडल की सलाह पर रविवार को राष्ट्रपति ने घोषणा की कि 30 अप्रैल और 10 मई 2021 को अगले आम चुनाव होंगे. तय समयसीमा के हिसाब से चुनाव 2022 में होने थे. प्रधानमंत्री अपनी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में भी समर्थन खो चुके हैं. पार्टी के कुछ सदस्यों ने आरोप लगाया है कि ओली का अब पार्टी में भी कोई समर्थक नहीं रह गया है.

Nepal Premierinister Khadga Prasad Sharma Oli tritt zurück
प्रधानमंत्री के पी ओली अपनी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में समर्थन खो चुके हैं, लेकिन उनके समर्थकों का कहना है कि एक लोकतंत्र में नए सिरे से चुनाव कराने से ही इस तरह के संकट से बाहर निकला जा सकता है.तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Shrestha

कुछ पार्टी सदस्य ओली पर सरकारी फैसलों में पार्टी को दरकिनार करने और अहम नियुक्तियों से पार्टी सदस्यों को दूर रखने का भी आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने उनसे इस्तीफा देने की मांग की है, लेकिन ओली के समर्थकों का कहना है कि एक लोकतंत्र में नए सिरे से चुनाव कराने से ही इस तरह के संकट से बाहर निकला जा सकता है.

यह राजनीतिक संकट ऐसे समय में आया है जब नेपाल कोरोना वायरस से जूझ रहा है. नेपाल में संक्रमण के कुल 2,53,772 मामले सामने आए हैं, 1,788 लोगों की जान भी जा चुकी है और पर्यटन और विदेश में बसे नेपाली मूल के लोगों द्वारा भेजी गई रकम पर टिकी देश की अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान हुआ है.

त्रिपाठी ने बताया कि संविधान के तहत, प्रधानमंत्री को एक वैकल्पिक सरकार बनाने की अनुमति देनी चाहिए. नेपाल 30 सालों में 26 प्रधानमंत्री देख चुका है. कानून के जानकारों का कहना है कि अगर अदालत याचिकाओं को दर्ज कर लेती है तो फैसला आने में लगभग दो सप्ताह लग सकते हैं. नेपाल पर अपना अपना प्रभाव बनाने की कोशिश में लगातार रहने वाले पड़ोसी देश भारत और चीन ने सार्वजनिक रूप से इस घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है.

सीके/एए (रॉयटर्स)

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