बढ़ रहे हैं घर में प्रसव के मामले
२६ फ़रवरी २०२१दिल्ली की तीनों नगरपालिकाओं के आंकड़े बता रहे हैं कि बीते कई सालों से महिलाओं के स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रसव कराने के मामलों में आई बढ़ोतरी को कोविड-19 ने उलट दिया है. 2019 तक घर पर जन्म देने के मामले 10 प्रतिशत से भी नीचे गिर गए थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में ये मामले बढ़ कर 35 से 42.5 प्रतिशत तक पहुंच गए. दक्षिणी दिल्ली में पिछले एक सप्ताह में 3,658 बच्चों का जन्म हुआ जिनमें से 1,565 (42 प्रतिशत से ज्यादा) जन्म घरों पर ही हुए.
इसी तरह उत्तरी दिल्ली में फरवरी में अभी तक (24 फरवरी) 11,202 बच्चों का जन्म हुआ जिनमें से 4,763 (42 प्रतिशत से ज्यादा) जन्म घर पर ही हुए. ये बढ़ते हुए आंकड़े दिल्ली के लिए गंभीर चिंता का विषय तो हैं ही, ये दूसरे राज्यों में दूर दराज के इलाकों के हालात का संकेत भी दे रहे हैं. लगभग दो दशक पहले तक भारत में मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) और नवजात शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) बहुत ऊंची थी, जिसके कई कारणों में से एक था गर्भवती महिलाओं का घर पर जन्म देना.
स्थिति में सुधार लाने के लिए पूरे देश में स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के इंतजामों को मजबूत किया गया और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दे कर तैयार किया गया. धीरे-धीरे स्वास्थ्य केंद्रों में प्रसव के मामले बढ़ने लगे और साथ ही मातृत्व मृत्यु दर और नवजात शिशु मृत्यु दर में गिरावट आने लगी. दिल्ली में 2001 में प्रसव के कुल मामलों में से 62.11 प्रतिशत मामले स्वास्थ्य केंद्रों में दर्ज किए गए थे.
2005 में यह आंकड़ा बढ़ कर 73.2 प्रतिशत पर, 2010 में 78.51 पर, 2015 में 84.41 पर, 2017 में 89.1 और 2019 में 91.15 प्रतिशत पर पहुंच गया था. 2007 में राष्ट्रीय राजधानी में आईएमआर 36 (यानी हर 1,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 36 की मौत) थी और 2016 तक घट कर 18 पर आ गई थी. अगर यह दौर उलट गया तो फिर से मृत्यु दरें बढ़ जाएंगीं और एक दशक से भी ज्यादा के अथक प्रयासों से हासिल की गई स्वास्थ्य क्षेत्र की बड़ी उपलब्धि हाथों से फिसल जाएगी.
जानकार चिंतित हैं क्योंकि दुर्भाग्य से उन्हें ऐसा ही होता दिखाई दे रहा है. महामारी की शुरुआत में तो बड़े अस्पतालों को सिर्फ कोविड के मामलों के लिए समर्पित कर दिया गया था, जिसकी वजह से वहां प्रसव बंद हो गया. फिर लोगों के मन में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में संक्रमित हो जाने को लेकर डर बैठ गया. अब जा कर अस्पतालों पर कोविड के मामलों का बोझ तो कुछ कम हुआ है लेकिन लोगों में डर अभी भी बना हुआ है.
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