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समाज

कोरोना: स्वास्थ्य सेवा पर भार, "स्टिलबर्थ" बढ़े

१५ सितम्बर २०२०

कोरोना वायरस के कारण भारत में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुईं हैं. ग्रामीण इलाकों में गर्भवती महिलाओं की पहुंच स्वास्थ्य देखभाल कम हुई है जिस कारण बच्चे मृत भी पैदा हो रहे हैं. पिछले साल की तुलना में मामले बढ़े.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa/P. Pleul

28 हफ्ते की गर्भवति मनतशा बानो जब दर्द से बेहाल होकर चीखने लगी तो उनके पड़ोसियों को एंबुलेंस बुलाने पर मजबूर होना पड़ा. ग्रामीण भारत के इस इलाके में एंबुलेंस आई ही नहीं. बानो का शिशु मृत पैदा हुआ. यह घटना उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाके की है. मृत बच्चों का पैदा होना या प्रसव के दौरान बच्चे की मृत्यु हो जाने को स्टिलबर्थ भी कहा जाता है.

उत्तर भारत के इस राज्य में स्वास्थ्यकर्मियों ने मृत पैदा होने वाले शिशुओं की संख्या में इजाफा दर्ज किया है. कोरोना वायरस की वजह से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं और साथ ही मातृत्व देखभाल सबसे अधिक प्रभावित हुई है. 22 साल की बानो कहती है कि अगर समय पर एंबुलेंस आ जाती तो बच्ची की जान बच जाती. वह कहती हैं, "वह लड़की थी. बहुत ही खूबसूरत. मुझे दुख होता है. बहुत दुख....मेरे कई सपने थे...अब सब एक पल में टूट गए. "

दुनिया में किसी और देश के मुकाबले कोरोना वायरस संक्रमण भारत में तेजी के साथ फैल रहा है. देश में लगातार हर रोज रिकॉर्ड मामले दर्ज किए जा रहे है. विश्व स्वास्थ्य संगठन को डर है कि हालात और खराब हो सकते हैं, क्योंकि भारत में 60 फीसदी से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है.

स्थानीय स्वास्थ्य कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना वायरस की वजह से स्वास्थ्य कर्मचारियों और उपकरणों की कमी हो गई है. राज्य की स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे कि बिस्तर, जांच और अल्ट्रासाउंड कोविड-19 के गंभीर मामलों, दुर्घटनाओं के लिए रिजर्व रखा गया है. आशा कार्यकर्ता जो कि ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं को पहुंचाती हैं उन्हें भी कोरोना वायरस से लड़ने के लिए लगाया गया है.

बानो जैसी महिलाएं, जो अपने पति के सहारे ही घर चला पाती हैं, निजी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर जाने को मजबूर हुईं हैं.

उत्तर प्रदेश के 26 गांवों की आशा को-ऑर्डिनेटर रेणु सिंह, जिसमें बानो का गांव अतेसुआ भी शामिल है, कहती हैं कि ऐसा पहली बार है जब मातृ देखभाल इतनी बुरी तरह से प्रभावित हुई है. वह कहती हैं कि लॉकडाउन के दौरान उसके क्षेत्र में 22 शिशु मृत पैदा हुए. यह संख्या पिछले साल की तुलना में चार गुना अधिक है.

Indien | Neugeborene im Krankenhaus in Sangareddy
कोरोना की वजह से स्वास्थ्य सेवाओं पर असर. तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

वह कहती हैं, "गांवों में हमने पहले कभी इतनी संख्या में मृत शिशु पैदा होते नहीं देखे." साथ ही वह कहती हैं कि स्वास्थ्य केंद्र जो कभी गर्भवती महिलाओं के लिए विकसित किए गए थे वह अब कोविड-19 केंद्र बना दिए गए हैं. रेणु बताती हैं कि आंगनवाड़ी केंद्र जो जांच, पोषण, खाद्य और शिशु और मातृ स्वास्थ्य संबंधी सलाह देते हैं वे भी महीनों तक बंद रहे. जुलाई महीने में ही इनमें नियमित संचालन शुरू हो पाया है. रेणु के मुताबिक, "इन सभी कारणों से मृत शिशु अधिक पैदा हो रहे हैं."

उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह कहते हैं कि प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरह से काम कर रही हैं. उनके मुताबिक सख्त लॉकडाउन की वजह से शुरूआत में सेवाएं प्रभावित हुईं थी. उन्होंने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि उनका विभाग कमियों को दूर करने की कोशिशों में जुटा हुआ है. साथ ही प्रसवपूर्व अल्ट्रासाउंड जांच के लिए रेडियोलॉजिस्ट की भर्ती की जाएगी. उन्होंने कहा, "यह समस्या (स्टिलबर्थ) कुछ इलाकों में हो सकती है लेकिन पूरे उत्तर प्रदेश में नहीं...अब हालात बेहतर हो गए हैं." उनका कहना है कि उनके पास पूरे राज्य का नवीनतम डाटा नहीं है.

लखनऊ के पास इटौंजा में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉक्टर अनिल कुमार दीक्षित कहते हैं कि अल्ट्रासाउंड मशीन चलाने के लिए योग्य कर्मचारी नहीं है. वे कहते हैं, "बच्चे के मृत पैदा होने के कई कारण होते हैं और इसे नियमित जांच से रोका जा सकता है. जिसमें डॉक्टर की सलाह और पोषण युक्त खुराक पर ध्यान देना शामिल है."

डब्ल्यूएचओ सलाह देता है कि जन्म के पूर्व आठ बार जांच होनी चाहिए और एक अल्ट्रासाउंड गर्भावस्था के 24वें हफ्ते के पहले होना चाहिए और साथ ही गर्भवती महिलाओं को आयरन और फॉलिक एसिड सप्लिमेंट्स का भी सेवन करना चाहिए. 

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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