चिली के लोगों ने संविधान में बदलाव को दिया वोट
२६ अक्टूबर २०२०संविधान दोबारा लिखे जाने पर हुए जनमतसंग्रह में 78.24 यानी दो तिहाई से ज्यादा लोगों ने नए संविधान का समर्थन किया. 21.76 फीसदी लोग अब भी मौजूदा संविधान के पक्ष में हैं. यह आंकड़े लिए जाने तक 90.78 फीसदी वोटों की गिनती हो चुकी थी.
राष्ट्रपति सेबास्टियन पिन्येरा की रुढ़िवादी सरकार कई हफ्तों के प्रदर्शनों के दबाव में इस जनमत संग्रह के लिए तैयार हुई. प्रदर्शन करने वाले लोग बेहतर शिक्षा, ऊंची पेंशन और नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को खत्म करने की मांग कर रहे थे.
जनमत संग्रह का नतीजा
स्थानीय टीवी चैनलों परआई तस्वीरों में भारी भीड़ को जश्न मनाते देखा जा सकता है. जनमत संग्रह के लिए करीब एक करोड़ 40 लाख चिलीवासी इसमें वोट डालने के योग्य थे. इसमें दो सवाल पूछे गए थेः क्या संविधान को दोबारा लिखा जाना चाहिए अगर हां तो यह काम किसे करना चाहिए.
मतदाताओं को दो विकल्प दिए गए थे एक तो लोगों के द्वारा चुनी हुई संवैधानिक परिषद के जरिए या फिर एक ऐसी मिली जुली परिषद के जरिए जिसमें आधे संसदीय प्रतिनिधि हों और आधे आम लोगों में से चुने गए प्रतिनिधि. करीब 79 फीसदी चिलीवासियों ने पूरी तरह से चुनी हुई परिषद के प्रति समर्थन जताया है जबकि 21 फीसदी लोगों ने दूसरे विकल्प को चुना है.
राष्ट्रपति पिन्येरा ने रविवार शाम कहा कि चिलीवासियों ने "स्वतंत्र रूप से अपनी इच्छा जताई है" और नए संविधान पर सहमति बनाने के लिए चुने हुए नागरिकों की संवैधानिक परिषद का चुनाव किया है.
विरोध प्रदर्शनों की आंच
चिली लैटिन अमेरिका के सबसे अधिक असमानता वाले देशों में है. चिली में मौजूद असमानताओं को लेकर 2019-20 में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए. संविधान बदलने के मुद्दे पर जनमत संग्रह पहले इसी साल अप्रैल में होने वाला था लेकिन कोरोना महामारी की वजह से इसे टाल दिया गया. महामारी के कारण कुछ हफ्तों के लिए विरोध प्रदर्शन बंद हुए थे लेकिन फिर शुरू हो गए.
अक्टूबर 2019 से इस साल फरवरी के बीच विरोध प्रदर्शनों में कम से कम 30 लोगों की मौत हुई. चुनाव से एक हफ्ते पहले ही देश में कई जगहों पर भारी दंगे हुए और चर्चों को आग लगाया गया. विरोध प्रदर्शन शुरू होने के एक साल पूरा होने पर हजारों लोग सड़कों पर उतर आए. इन विरोध प्रदर्शनों में हिंसा के कारण बहुत से लोगों की आंखें चली गईं तो कोई बुरी तरह घायल हुआ.
मौजूदा संविधान
मौजूदा संविधान सैन्य तानाशाह आगुस्तो पिनोचेट (1973-90) के दौर में लिखा गया. नया संविधान पिनोचेट के तानाशाही शासन से देश को पूरी तरह से अलग कर देगा. विश्लेषकों के मुताबिक तानाशाही के उस दौर में 3000 से ज्यादा लोग मारे गए, हजारों लोगों को काल कोठरी में डाला गया और प्रताड़ित किया गया.
हालांकि चिलीवासी 1980 में बने मौजूदा संविधान को लेकर बंटे हुए थे. इसे पहले ही कई बार संशोधित किया जा चुका है. बहुत से लोगों का मानना है कि संविधान में बदलाव देश को ज्यादा लोकतांत्रिक और अस्थिर बनाएगा. वामपंथी विश्लेषकों का कहना है कि वर्तमान संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो असमानता को बढ़ावा देते हैं . इनमें संपत्ति के अधिकारों को वरीयता, सेवा के क्षेत्र में निजी कंपनियों की मजबूत भूमिका और प्रमुख कानूनों को बदलने में मुश्किल प्रमुख रूप से शामिल है.
ये लोग चाहते हैं कि नया संविधान सरकार की सामाजिक भूमिका को बढ़ाए. रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा का अधिकार मिले. इसके साथ ही देसी लोगों के सांस्कृतिक और भूमि अधिकार को मान्यता दी जाए. विरोध करने वाले लोग मुख्य रूप से रुढ़िवादी हैं. उनकी दलील है कि बदलावों से देश का आर्थिक मॉडल खतरे में पड़ जाएगा जिसने तेज विकास और तुलनात्मक रूप से स्थिरता दी है.
एनआर/एमजे (डीपीए)
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore