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शांत और संपन्न चिली में हिंसक प्रदर्शन क्यों

२३ अक्टूबर २०१९

चिली में कई दिनों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद राष्ट्रपति सेबास्टियान पेन्येरा ने विवादित फैसले वापस ले लिए हैं और गरीब तबके के लोगों को राहत देने के लिए सुधारों की घोषणा की है. लेकिन हालात शांत नहीं हो रहे हैं.

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Proteste gegen die Regierung in Chile
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Felix

राष्ट्रपति सेबास्टियान पेन्येरा ने लोगों से इस बात के लिए माफी मांगी है उन्होंने सामाजिक असंतोष के पैमाने को न समझने की भूल की. उन्होंने कहा, "समस्याएं सालों से जमा हो रही थी, हम सरकार में बैठे लोग उन्हें समझने में अक्षम थे." राष्ट्रपति ने मेट्रो रेल के किरायों में वृद्धि को वापस लेने की तो घोषणा कर ही दी थी, अब न्यूनतम पेंशन और वेतन बढ़ाने और दवाओं की कीमत कम करने के अलावा रईसों का टैक्स बढ़ाने और सांसदों और अधिकारियों का वेतन घटाने का एलान किया है. इसके नतीजे फौरन सामने नहीं आए हैं. मंगलवार की रात भी संतियागो में कर्फ्यू शुरू होने के बाद प्रदर्शन हुए और एक सुपर मार्केट और दवा की दुकान में आग लगा दी गई.

गुस्से की वजह

चिली को एक महीने में एशिया पैसिफिक इकोनॉमिक कोऑपरेशन शिखर सम्मेलन का आयोजन करना है और देश में राजनीतिक और सामाजिक अशांति पर काबू नहीं हो पा रहा है. लोगों का गुस्सा पिछले सोमवार को मेट्रो ट्रेन के किराए में वृद्धि के खिलाफ फूटा और विरोध शुरू हो गए. राजधानी संतिआगो में साधारण असंतोष बर्तन पीटने, मेट्रो स्टेशनों को नष्ट करने और बसों, दुकानों और अन्य इमारतों को आग लगाने में बदल गया. विरोध जल्द ही देश के और इलाकों में भी फैल गया. पिछले शुक्रवार से हो रही हिंसा में करीब 15 लोगों की जानें गईं.

Proteste gegen die Regierung in Chile
तस्वीर: Getty Images/P. Ugarte

राष्ट्रपति सेबास्टियान पेन्येरा की सरकार ने असंतोष को मुजरिमों का काम बताया था और इमरजेंसी की घोषणा कर दी. सरकार ने कर्फ्यू भी लगाया. 1990 में लोकतंत्र की बहाली के बाद से वहां कर्फ्यू नहीं लगा था और देश ने ऐसे कदमों को सिर्फ प्राकृतिक आपदाओं के समय में देखा था, राजनीतिक विरोध प्रदर्शनों के दौरान नहीं. लेकिन ऐसे कदमों ने हालात को और खराब बना दिया और प्रदर्शनकारियों का गुस्सा ऐसा भड़का कि वो अभी तक शांत नहीं हुआ है.

कैंब्रिज विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में लेक्चरर खोर्खे सावेद्रा ने डॉयचे वेले से कहा, "संवेदना दिखाने की जगह सरकार ने कड़ा रुख अपना लिया और लोगों की पीड़ा और उनकी न्याय की मांगों को नकार दिया." चिली के विशेषज्ञ का कहना है कि ये समस्याएं कुछ समय से चली आ रही हैं और नागरिकों के असंतोष के लिए आंशिक रूप से जिम्मेदार भी हैं. वे कहते हैं, "सरकार ने कई बार लोगों को और उनकी पीड़ा का अनादर किया. जैसे जब सरकारी अस्पतालों में लम्बे इंतजार की शिकायतें आईं तो सरकार ने कहा कि ये मिलने जुलने का अच्छा मौका है. पर इस तरह का रवैय्या एक ऐसी सरकार के तिरस्कार को दिखाता है जिसके पास मुश्किल वक्त से गुजर रहे लोगों से सहानुभूति व्यक्त करने का संवाद कौशल नहीं है".  

सताया हुआ समाज 

पेन्येरा ने बस एक हफ्ते पहले ही कहा था कि लैटिन अमरीका में चिली एक अच्छी जगह है. तो आखिर क्या कारण है कि एक देश जिसकी अर्थव्यवस्था मजबूत है और जहां सामान्यतः शांति रहती है वहां अचानक असंतोष का विस्फोट कैसे हुआ? "अहंकारपूर्वक उंगली दिखाने में कोई समझदारी नहीं है, खासकर तब जब समाज में ऐसी गहरी दरारें हों जिनका कभी ठीक से इलाज न किया गया हो," कहना है क्रिस्तोबाल बेल्लोलिओ का, जो सैन्तिआगो के अदोल्फो इबानेज विश्वविद्यालय में राजनीतिक दर्शन के सहायक प्रोफेसर हैं. इन दरारों का मूल कारण जीवन जीने का एक ऐसा स्तर है जो सामान्यतः लोगों के संसाधनों से परे है. बेल्लोलिओ ने समझाया, "चिली के लोग ऐसी सेवाओं का मूल्य चुका रहे हैं जो उनकी खर्च करने की काबिलियत से ज्यादा महंगी हैं."

Proteste gegen die Regierung in Chile
तस्वीर: picture-alliance/dpa/E. Felix

सावेद्रा कहते हैं, "अगर आप चिली  की सतह के नीचे कुरेदेंगे, तो वहां आपको बहुत बड़े सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक अन्याय के सबूत मिलेंगे. इसकी जो अच्छी छवि है वो कमजोर स्तंभों पर खड़ी है जिन्हें खुद सहारा दिया हुआ है सताये जाने से अब थक रहे लोगों के धीरज ने." मूलभूत सुविधाओं के निजीकरण, सामाजिक सुरक्षा के इंतजामों का अनिश्चित होना और कुछ क्षेत्रों को दिए हुए विशेषाधिकारों की वजह से देश में पहले ही आबादी का एक बड़ा हिस्सा नाराज है और उपेक्षित महसूस करता है. मेट्रो के किराए में हुई वृद्धि ने पानी की उस बूंद का काम किया जिसने कप को छलका दिया.

राजनीतिविज्ञानी बेल्लोलिओ कहते हैं, "इसकी शुरुआत सिर्फ किराये की वृद्धि के खिलाफ विरोध के रूप में हुई थी पर उसने लगातार बढ़ते खर्चों को लेकर एक व्यापक नाराजगी का रूप ले लिया." उनका मानना है कि जो तोड़-फोड़ की वारदातें हुई हैं उनसे नागरिकों की मांगों पर असर पड़ सकता है. सामाजिक आंदोलनों की मांगों को सरकारें तब ही पूरा करती हैं जबतक आंदोलनों को जनता से सहानुभूति मिलती रहे. सरकार को अभी तक ये नहीं मालूम कि इन विध्वंसकारी कृत्यों के पीछे आखिर कौन है. अराजक तत्वों और हाशिए पर रहने वाले समाज के वर्गों पर संदेह है. पर ऐसे कुछ हिंसक और आपराधिक तत्त्व भी हैं जो इस तरह के हालातों का फायदा उठाते हैं और शहर की सेवाओं को नुकसान पहुंचाते हैं. 

Chile Protest Sebastián Piñera
राष्ट्रपति सेबास्टियान पेन्येरा तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/L. Hidalgo

अदृश्य सरकार 

मीडिया में चारों ओर यही पूछा जा रहा है कि सरकार को इस स्थिति पर कार्रवाई करने में इतना समय क्यों लग गया और खासकर राष्ट्रपति पेन्येरा इस संकट में नदारद क्यों रहे हैं. सावेद्रा कहते हैं, "मुझे लगता है सरकार ने तुरंत नियंत्रण सेना के हाथों में सौंप दिया क्योंकि वह खुद हालातों पर काबू पाने में कभी समर्थ थी ही नहीं. ये जो हो रहा है ऐसा चिली में 5 दशकों में नहीं देखा गया." उनके अनुसार शासन में सिर्फ 19 महीने पुरानी इस सरकार के लिए आगे का रास्ता कठिन होगा.

बेल्लोलिओ का कहना है, "सरकार ने बहुत अनाड़ी तरीके से काम किया है, उसने समस्या को सिर्फ एक सार्वजनिक व्यवस्था का सवाल बना कर एक सुनहरा मौका खो दिया. और जब तक पेन्येरा ने मेट्रो किराये को रोकने की घोषणा की, तब तक बहुत देर हो चुकी थी." उन्होंने सरकार के रवैये को अयोग्य और लापरवाह बताया और ये भी कहा कि सरकार गायब रही है और सेना को नियंत्रण दे देना इस बात का संकेत है. बेल्लोलिओ को इस बात पर शक कि एपेक सम्मेलन तक चिली में हालात सामान्य हो पाएंगे. वे कहते हैं, "हमें ये नहीं मालूम कि ये हिंसा एक फौरी अभिव्यक्ति थी जो अब खत्म हो जाएगी या अभी और कुछ समूह हैं जो और प्रदर्शनों की तैयारी कर रहे हैं."

रिपोर्ट: डिएगो सुनिगा/सीके

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