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समाज

क्या कहते हैं सबको तनख्वाह देने वाली स्कीम के नतीजे

१ जून २०२०

फिनलैंड की सरकार बीते दो साल से 2,000 नागरिकों को बिना किसी शर्त हर महीने 560 यूरो की बेसिक इनकम दे रही है. अब इस बेसिक इनकम एक्सपेरिमेंट के नतीजे सामने आ रहे हैं.

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फिनलैंड का झंडा
फिनलैंड अकेला देश है जहां इस तरह का प्रयोग किया गया हैतस्वीर: picture alliance/AP Photo/D. Goldman

टॉमस मुराया को बीते दो साल से सरकार हर महीने 560 यूरो तनख्वाह दे रही है. पेशे से पत्रकार टॉमस चार साल तक पक्की नौकरी खोजते रहे. इसी दौरान उन्हें पता चला कि सरकार ने उन्हें बेसिक इनकम एक्सपेरिमेंट के लिए चुना है. प्रयोग 2017 में शुरू हुआ. टॉमस कहते हैं, "वह एक बड़ी राहत थी क्योंकि दस्तावेजों के साथ इधर उधर जाने का झंझट खत्म हो गया. मुझे कोई फॉर्म नहीं भरना पड़ा या कोई ऐसी क्लास भी लेनी पड़ी जहां सीवी कैसे बनाएं, ये सिखाया जाता हो.”

इसका सकारात्मक असर टॉमस की जिंदगी पर पड़ा, "मैं अपने काम पर ध्यान केंद्रित कर सका, मैं किताबें और कहानियां लिखने लगा.” दो साल के भीतर टॉमस की दो किताबें पब्लिश हुईं. उन्होंने कई आर्टिकल लिखे और 80 नौकरियों के आवेदन भी भरे.

एक और महिला को भी बेसिक इनकम एक्सपेरिमेंट से फायदा हुआ. हर महीने मिलने वाली रकम के कारण वह एक्सपीरिएंस जुटाने के लिए अलग अलग जगहों पर इंटर्नशिप करने लगीं.

कुछ समय बाद उन्होंने अपना कैफे खोल लिया. उन्हें लगा कि शुरुआत में मुश्किल आई भी तो बेसिक इनकम तो है ही.

सफल या विफल आइडिया?

इसका एक दूसरा पहलू भी है. देश में अब भी ऐसे बहुत से लोग हैं जो इसे एक नाकाम आइडिया करार देते हैं. इसे फेल कहने वाले बार बार कहते हैं कि इसका रोजगार सृजन में बहुत ही कम योगदान रहा है.

फिनलैंड के सोशल इंश्योरेंस इंस्टीट्यूशन (केईएलए) की सीनियर रिसर्चर मिने यिल्कानो कहती हैं, "मैं कहूंगी कि प्रयोग सफल रहा. पूरी दुनिया में किसी और देश ने कानून के आधार पर नेशनल बेसिक इनकम को लागू नहीं किया है.” वह कहती हैं, "रोजगार के मामले में इसका बहुत बड़ा असर भले ही न दिखाई दे, लेकिन इसे विफल कहना ठीक नहीं होगा.”

आदमनी से जुड़ा कार्यक्रम
कई लोगों का कहना है कि आय की गारंटी चिंतामुक्त बनाती हैतस्वीर: Reuters/H. Hanschke

एक्सपेरिमेंट की समीक्षा

प्रयोग का अध्ययन करने के लिए जनवरी 2017 से दिसंबर 2019 तक के आंकड़े जुटाए गए. शोध में साफ पता चला कि हर महीने 560 यूरो पाने वाले लोगों में असुरक्षा और तनाव का स्तर बहुत कम था. कुल मिलाकर लोगों के जीवन में एक तरह की खुशहाली लौट आई.

बेसिक इनकम पाने वाले टॉमस कहते हैं, "जिन्हें बेसिक इनकम मिल रही थी वे मानसिक रूप से बेहतर महसूस कर रहे थे. जब आप सुरक्षित और आजाद होते हैं तो आप बेहतर महसूस करते हैं.” फिनलैंड के प्रयोग के बाद दुनिया के कई और देशों में भी इस प्रयोग को ध्यान दिया जा रहा है.

यिल्कानो कहती हैं, "जब खुशहाली अच्छे स्तर पर होती है तो लोगों के रोजगार पाने की संभावना भी बढ़ जाती है. नौकरी देने वाले उन्हें कार्य करने में सक्षम व्यक्ति के रूप में देखने लगते हैं.” फिनलैंड की सरकार बेसिक इनकम योजना की समीक्षा भी कर रहे हैं. राजनेता यह जानना चाहते हैं कि इस स्कीम का कुल खर्च कितना आएगा. उस खर्च की भरपाई कहां से की जाएगी.

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यूनिवर्सल बेसिक इनकम के समर्थक

प्रोफेसर बेर्नहार्ड नॉएमैर्केर जर्मनी की फ्राइबुर्ग यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक पॉलिसी विभाग के डायरेक्टर हैं. वह यूनिवर्सल बेसिक इनकम के समर्थक हैं. प्रोफेसर नॉएमैर्केर कहते हैं, "बेसिक इनकम के मामले में विज्ञान, समाज से बहुत ही पीछे है. राजनेता इस बारे में हिचकिचाते दिखते हैं. यह सोचना और कहना आसान है कि लोग आलसी हो जाएंगे या फिर इसके लिए पैसा जुटाने का कोई रास्ता नहीं हैं. बस मामला बंद, अगला मुद्दा.”

प्रोफेसर नॉएमैर्केर को लगता है कि जनता का दबाव ही राजनेताओं को नए रास्ते तलाशने के लिए मजबूर कर सकता है. वह कहते हैं कि कोरोना वायरस जैसी महामारी ने दिखा दिया है कि ऐसी स्कीम कितनी जरूरी है, "जर्मनी और यूरोपीय संघ के दूसरे देशों को लग रहा था कि बेसिक इनकम के बिना सब ठीक ही तो चल रहा है. ऐसे में इसकी क्या जरूरत?”

"अब इस संकट (कोरोना इमरजेंसी) ने दिखा दिया है कि परंपरागत और पुराने पड़ चुके सामाजिक कल्याण सिस्टम वाले देशों में स्थिति गंभीर हो रही है. मैं कहूंगा कि डिजिटलीकरण के दौर में नए विकास और संकट के लिए हमें व्यवस्थित बेसिक इनकम करनी चाहिए. यह मॉर्डन मार्केट इकोनॉमी के लिए एक टिकाऊ और आशा से भरा मॉडल है.”

कोरोना महामारी के बाद स्पेन में भी नौकरी खो चुके निर्धन लोगों को बेसिक इनकम दी जा रही है. केन्या में भी 12 साल लंबा एक्सपेरिमेंट चल रहा है. टॉमस को उम्मीद है कि दुनिया को राह दिखाने वाला फिनलैंड इस स्कीम को और बड़ा व बेहतर करेगा.

एलेक्स मैथ्यूज/ओएसजे

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