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किसे माना जाता है भारत में अल्पसंख्यक

चारु कार्तिकेय
१८ दिसम्बर २०१९

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अल्पसंख्यक कौन है यह राष्ट्रीय स्तर पर देखा जाना चाहिए, ना कि अलग अलग राज्य के आधार पर. इस बारे में देश की संवैधानिक व्यवस्था क्या कहती है?

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Indien Protest Christen gegen Anschläge auf Kirchen 05.02.2015
तस्वीर: S. Hussain/AFP/Getty Images

तीन पड़ोसी देशों से आये अल्पसंख्यक शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले नए कानून के भारी विरोध के बीच, सुप्रीम कोर्ट के एक नए फैसले ने देश में अल्पसंख्यक किसे कहा जाए इसकी परिभाषा साफ कर दी है. 

एक याचिका पर फैसला देते हुए अदालत ने कहा कि धर्म की कोई सीमा नहीं होती और उसे अखिल भारतीय स्तर पर देखा जाना चाहिए, ना की राज्य के आधार पर. 

बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इस याचिका में मुख्य दलील यह थी कि जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों समेत कुल 8 राज्यों में हिन्दू समुदाय के लोगों की जनसंख्या कम है, जिसकी वजह से उन्हें उन राज्यों में अल्पसंख्यकों का दर्जा और सुविधाएं मिलनी चाहिये. 

अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि इस देश में भाषाएं जरूर एक राज्य या एक से ज्यादा राज्यों तक सीमित हैं, लेकिन धर्मों की राज्य के आधार पर सीमाएं नहीं होतीं. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालत ने किसी को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया और यह सरकार का काम है. 

कौन हैं अल्पसंख्यक?

Indien Kaschmir Opferfest
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand

भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का उल्लेख तो है लेकिन परिभाषा नहीं है. छह समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है. ये हैं, पारसी, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन. इनमें से पारसी, मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्ध को 1993 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक घोषित किया और जैनों को 2014 में एक अलग अधिसूचना जारी कर के.

अश्विनी उपाध्याय ने इन्हीं अधिसूचनाओं को रद्द करने की अपील की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया.

कैसे आई अल्पसंख्यकों के लिए अलग व्यवस्था?

1978 में केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव में अल्पसंख्यकों के लिए एक आयोग की बात की गई थी. उस प्रस्ताव में कहा गया था कि "संविधान में दिए गए संरक्षण और कई कानूनों के होने के बावजूद, देश के अल्पसंख्यकों में एक असुरक्षा और भेदभाव की भावना है". इसी भावना को मिटाने के लिए अल्पसंख्यक आयोग का जन्म हुआ. 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून आया जिसके प्रावधानों के तहत ही 1993 की अधिसूचना आई. 

आयोग का मुख्य उद्देश्य है अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों का संरक्षण करना, उनके हालात का समय समय पर जायजा लेना, उनके विकास के लिए सरकार को सुझाव देना, उनकी शिकायतें सुनना और उनका निवारण करना. 

इस व्यवस्था में हर राज्य में एक राज्य अल्पसंख्यक आयोग बनाने का भी प्रावधान रखा गया. लेकिन आज भी देश के कम से कम 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अल्पसंख्यक आयोग नहीं है.

क्या इस व्यवस्था में कुछ कमी है?

Indien Diwali Lichterfest
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu

2017 में सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर की गई थी जिसका उद्देश्य था जम्मू और कश्मीर राज्य में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना. उस याचिका में दलील दी गई थी कि अल्पसंख्यक आयोग कानून राज्य में लागू ना होने के वजह से कई विसंगतियां आ गई थीं. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि 2007-08 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए 20,000 छात्रवृत्तियां निकाली थीं पर जम्मू और कश्मीर में इस योजना के तहत आईं 753 छात्रवृत्तियों में से 717 मुसलमानों को मिलीं, जो वहां अल्पसंख्यक नहीं थे. 

हालांकि ऐसा ना हो इसके लिए प्रावधान पहले से है. अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री के 15-सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में साफ लिखा हुआ है कि अगर किसी राज्य में राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक अधिसूचित किया गया समुदाय राज्य स्तर पर बहुसंख्यक है तो अलग अलग योजनाओं के लक्ष्यों का आबंटन उसके अलावा दूसरे अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के लिए होना चाहिए. 

स्पष्ट है कि जहां ऐसा नहीं हो रहा है वहां दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है और इसे रोकने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए.

क्या अधिकार और सुविधाएं मिलती हैं अल्पसंख्यकों को?

संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के जो भी प्रावधान हैं वे सभी अल्पसंख्यकों के लिए भी हैं. इसके अलावा अल्पसंख्यकों को अपने हिसाब से शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करने का और उन्हें चलाने का अधिकार है. इस तरह के संस्थानों को सरकारी मदद में भेदभाव से संरक्षण भी मिलता है. 

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तस्वीर: Getty Images/D.Sarkar

जहां तक सुविधाओं की बात है तो समय समय पर सरकारें अल्पसंख्यकों के लिए कई तरह की योजनाएं बनाती रहती हैं. 2005 में केंद्र सरकार ने भारत में मुस्लिम समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालत जानने के लिए जस्टिस सच्चर कमेटी बनाई थी. इस कमेटी ने कम से कम  75 अलग अलग सुझाव दिए और बाद में इनमें से कई को लागू किया गया.

इसके अलावा अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री का एक 15-सूत्री कार्यक्रम है, जिसके तहत सरकार अल्पसंख्यकों के लिए कुछ विशेष कदम उठाती है और विशेष योजनाएं चलाती है. इनमें स्कूली शिक्षा तक इनकी पहुंच को बढ़ाना, उर्दू के प्रचार और प्रसार के लिए और ज्यादा संसाधन देना, मदरसों का आधुनिकीकरण, अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियां, रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना, तकनिकी प्रशिक्षण दे कर कौशल विकास करना शामिल है.

इसके अलावा अल्पसंख्यकों को विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए लोन की व्यवस्था, केंद्र और राज्य सरकारों की नौकरियों में भर्ती के लिए विशेष व्यवस्था, ग्रामीण इलाकों में मकान उपलब्ध कराने की योजनाओं में वरीयता, अल्पसंख्यक जहां रहते हों उन झुग्गी बस्तियों में हालत का सुधार, दंगों की रोकथाम और दंगा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए व्यवस्था करना भी सरकार की जिम्मेदारी है. 

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