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ओसामा का रहस्य और तलाश के 10 साल

९ अगस्त २०११

ओसामा बिन लादेन अब इतिहास बन चुका है. लेकिन उसकी जिंदगी अब भी एक रहस्य बनी हुई है. सीआईए के पूर्व कार्यकारी निदेशक ने डॉयचे वेले को बताया कि उसकी तलाश कितनी मुश्किल थी और तोरा बोरा की पहाड़ियों में क्या हुआ था.

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Nur für Projekt 9/11: Hintergrund Bin Laden
तस्वीर: DW / AP

जॉन मैकलॉगलिन 2004 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के कार्यकारी डायरेक्टर थे और उससे पहले 2000 से 2004 तक उपनिदेशक. उन्होंने 30 साल तक सीआईए में काम किया और इस दौरान एजेंसी में 11 बॉस बने. साल 2010 में ओबामा प्रशासन ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञों की एक टीम का नेतृत्व करने को कहा, जिनका काम 2009 में अमेरिका में हमले की दो कोशिशों के तथ्यों को उजागर करना था. जॉन मैकलॉगलिन इन दिनों बाल्टीमोर यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं.

USA John McLaughlin früherer Vize-Direktor des US-Geheimdienstes CIA
अमेरिकी खुफिया एजेंसी के पूर्व कार्यकारी निदेशक जॉन मैकलॉगलिनतस्वीर: AP

डॉयचे वेलेः आपने 30 साल तक सीआईए में काम किया. पहली बार ओसामा बिन लादेन के बारे में कब सुना.

जॉन मैकलॉगलिनः निजी तौर पर मैंने 1990 के दशक के मध्य में पहली बार बिन लादेन के बारे में जाना. शायद 1996 में हमें पता लगा कि ओसामा बिन लादेन अल कायदा और आतंकवादी गतिविधियों को पैसा पहुंचाने वाला महत्वपूर्ण शख्स है. उस वक्त वह सूडान से अफगानिस्तान जाने की तैयारी कर रहा था और 1997 में हम लोगों ने इस बात का जिक्र किया कि ओसामा बिन लादेन अमेरिका के लिए एक संभावित खतरा हो सकता है. इसके बाद अल कायदा ने 1998 में दूतावासों में बमबारी की. फिर 2000 में युद्धपोत कोल को निशाना बनाया और फिर जाहिर है कि 9/11 हो गया.

अमेरिका ने 9/11 से पहले भी ओसामा बिन लादेन को पकड़ने की कोशिश की और नाकाम रहा. 2001 के बाद उसकी तलाश में किस तरह का बदलाव किया गया.

9/11 अमेरिका के लिए बड़ा सदमा था. उसके बाद तलाश बहुत तेज हो गई. उससे पहले उसने हमले किए थे, जो दूसरे तरह के थे. हालांकि क्लिंटन प्रशासन ने उन्हें भी बेहद गंभीरता से लिया था. लेकिन उस वक्त अमेरिका कई दूसरी समस्याओं से जूझ रहा था. हालांकि यह एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता थी लेकिन नंबर एक प्राथमिकता नहीं थी, जैसा कि 9/11 के हमलों के बाद हुआ. उसके बाद तो कई दूसरे क्षेत्रों से भी संसाधन जुटने लगे और हम लोगों ने नाटकीय तौर पर इस काम में लगे लोगों की संख्या को बढ़ा दिया.

** FOR USE AS DESIRED WITH SEPT. 11 ANNIVERSARY STORIES--FILE **Smoke billows from one of the towers of the World Trade Center and flames as debris explodes from the second tower, in this Sept. 11, 2001, file photo. In one of the most horrifying attacks ever against the United States, terrorists crashed two airliners into the World Trade Center in a deadly series of blows that brought down the twin 110-story towers. This year will mark the fifth anniversary of the attacks. (AP Photo/Chao Soi Cheong/FILE)
तस्वीर: AP

9/11 के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान में कदम रखा, तो अल कायदा के मुख्य सदस्य तोरा बोरा की पहाड़ियों में छिप गए. वहां से बिन लादेन भागने में कैसे सफल रहा और उस वक्त आपकी क्या प्रतिक्रिया रही.

इस बात पर अब भी विवाद है कि तोरा बोरा में क्या हुआ. मेरे अच्छे दोस्तों का मानना है कि हम उसे वहां पकड़ सकते थे. लेकिन वहां मौजूद मेरे दूसरे दोस्त कहते हैं कि क्या यह सच में संभव था.

इससे जुड़े सभी लोगों के प्रति सम्मान व्यक्त करते हुए मैं कहना चाहता हूं कि अगर यह काम तोरा बोरा में किया जाता, तो इस जटिल कार्रवाई के लिए पहाड़ियों में बड़ी संख्या में अमेरिकी सैनिकों को तैनात करना पड़ता. वहां की परिस्थितियां बेहद खराब थीं. मैं वहां लोगों की तैनाती के फैसले के लिए जिम्मेदार नहीं था, इसलिए नहीं कह सकता कि सैन्य कमांडरों ने क्या फैसला किया. लेकिन कई दूसरे लोगों की तरह मैं इस बात को नहीं मानता कि उसे वहां पकड़ा जा सकता था.

हो सकता है कि अगर हम और सैनिकों को तैनात करते तो उस पर ज्यादा दबाव पड़ता लेकिन मुझे लगता है कि ज्यादा सैनिकों के साथ भी वहां की दुर्गम पहाड़ियों को देखते हुए और उस वक्त हमारी खुफिया जानकारी को ध्यान में रखते हुए यह काम बहुत मुश्किल था.

लोग इस बात को मानते हैं कि तोरा बोरा की पहाड़ियों से भागने के बाद अमेरिका कभी भी ओसामा बिन लादेन के बहुत करीब नहीं पहुंच सका. सिर्फ हाल ही में उसके बारे में पता चला, जिसके बाद उसे मार गिराया गया.

मुझे लगता है कि आम लोग ठीक ही सोचते हैं. 2001 से 2011 के बीच ऐसी रिपोर्टें हमेशा आती रहीं कि ओसामा बिन लादेन कहां है और कई बार हमें लगा कि हमें उसके ठिकाने के बारे में पक्की नहीं, तो मोटी जानकारी मिली. लेकिन खोजबीन करने के बाद वह हमें नहीं मिला. इसके बाद हमने उन इलाकों में विस्तार करना शुरू कर दिया, जहां वह हो सकता था. इस दौरान भले ही बिन लादेन को पकड़ने की कार्रवाई शिद्दत से चल रही हो लेकिन साथ ही एक काम और किया गया कि उस नेटवर्क को ध्वस्त करने की कोशिश की गई, जो बिन लादेन को सहायता देता था.

दूसरे शब्दों में, हमारा नजरिया था कि हमें उसकी तलाश जारी रखनी थी लेकिन अगर हम उसके संचार के माध्यमों को नष्ट कर देते, उसकी मदद रोक देते, उसके सुरक्षित घरों को रोक देते, उसके लिए पैसे उगाहने वालों पर लगाम लगा देते और उसे समर्थन करने वाले लोगों को रोक पाते तो हम न सिर्फ उसे कमजोर कर देते, बल्कि आतंकवादी हमले की संभावना भी कम कर देते और उसे अलग थलग भी कर देते. ऐसी हालत में उसे खोज निकालना ज्यादा मुश्किल नहीं होता. मुझे लगता है कि ऐसा ही हुआ भी.

मैं कह सकता हूं कि वह सही रणनीति थी. अगर हमने सिर्फ बिन लादेन को तलाशने पर ही पूरा ध्यान लगा दिया होता, तो हो सकता है कि हम उसे खोज निकालते लेकिन तब उसका मजबूत नेटवर्क यूं ही खड़ा रहता. लेकिन अब जो रणनीति अपनाई गई, उसने न सिर्फ बिन लादेन को खोज निकाला, बल्कि अल कायदा को भी कमजोर कर दिया.

epa02715139 A photo made available on 03 May 2011 shows the compound where Osama Bin Laden, leader of the terrorist Al-Qaeda network, was killed by US military forces in Abbottabad, Pakistan, seen on 02 May 2011. Al-Qaeda founder and leader Osama Bin Laden was killed on 01 May in Abbottabad, Pakistan by US forces, US president Obama announced 02 May. EPA/STRINGER BEST QUALITY AVAILABLE
तस्वीर: picture-alliance/dpa

क्या आप बता सकते हैं कि अत्याधुनिक उपकरणों और सर्वश्रेष्ठ सैनिक क्षमता के बाद भी अमेरिका को दुनिया के सबसे ज्यादा वांछित अपराधी को खोज निकालने में इतनी परेशानी क्यों हुई.

खुफिया विभाग में मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि सबसे मुश्किल काम किसी एक शख्स को खोज निकालना है. चलिए, शीत युद्ध काल की बात करते हैं. उस जमाने में हमारे पास बड़ी चीजों को खोज निकालने का जिम्मा था. हमें सोवियत संघ के लगाए गए परमाणु हथियारों, पनडुब्बियों और बॉम्बरों को खोजना होता था या फिर जर्मन सीमा पर किसी मोटरचालित राइफल डिवीजन के बारे में पता लगाना होता था. लेकिन 9/11 के बाद हमारी जिम्मेदारी छोटी छोटी चीजों के बारे में पता लगाने की हो गईः किसी एक सूटकेस में बंद बम हो या फिर दसियों लाख की आबादी वाले किसी शहर में एक व्यक्ति. यह बहुत मुश्किल है, खास कर तब जब वह शख्स अपनी तरफ से हर संभव तैयारी कर रहा हो.

आपको एक उदाहरण देता हूं: हमारे अपने देश में अटलांटा शहर में ओलंपिक के दौरान एक बमकांड हुआ. अमेरिकी अधिकारियों को इसके जिम्मेदार को खोज निकालने में तीन से चार साल लग गए. यह काम पूरी पारदर्शिता और जटिल कानूनी प्रक्रिया से किया गया. इसी तरह 1993 में हमारे मुख्यालय के सामने सीआईए अधिकारियों की हत्या की गई. उस शख्स को पाकिस्तान में खोजने और उसे अमेरिका लाकर इंसाफ के हवाले करने में चार साल लग गए. यहां हम संदेश यह देना चाहते हैं कि भले ही ज्यादा वक्त लगे, लेकिन हम हार नहीं मानते हैं.

आपने सीआईए में लंबा वक्त गुजारा लेकिन बिन लादेन को खोजने में नाकाम रहे. आपने जब 2004 में एजेंसी छोड़ी तो आपको कैसा लगा.

मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि मुझे लगता था कि हमने अल कायदा को बहुत कमजोर कर दिया है. हमारा लक्ष्य था कि अमेरिका पर दोबारा कोई हमला न हो और उसके बाद से अमेरिका पर कोई भी सफल हमला नहीं हुआ है. तो उस लिहाज से हमने अपना मुख्य लक्ष्य हासिल कर लिया.

लेकिन यह बात भी सही है कि अगर आप मुख्य आतंकवादी को नहीं पकड़ते हैं तो आप थोड़ा निराश रहते हैं. इसलिए जब यह ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हुआ, तो हर कोई खुश था. मुझे लगता है कि इसमें एक खास बात यह है कि सीआईए का मौजूदा नेतृत्व भी इस बात को मानता है कि उसे पकड़ने में जो जानकारी मिली है, उसे पिछले 15 साल में इकट्ठा किया गया है. तो यह सबके लिए अच्छी बात है. इस तरह के ऑपरेशन का जो खाका बनता है, उसके लिए लंबा वक्त लगता है और कोई भी जानकारी महत्वपूर्ण होती है. तो मुझे लगता है कि हम सब खुद को इस ऑपरेशन के हिस्सा समझते हैं.

In this image released by the White House and digitally altered by the source to diffuse the paper in front of Secretary of State Hillary Rodham Clinton, President Barack Obama and Vice President Joe Biden, along with with members of the national security team, receive an update on the mission against Osama bin Laden in the Situation Room of the White House, Sunday, May 1, 2011, in Washington. (Foto:The White House, Pete Souza/AP/dapd)
तस्वीर: The White House, Pete Souza/AP

पिछले साल आखिरकार बिन लादेन के बारे में ठोस जानकारी मिली. हालांकि तब आप सीआईए में नहीं थे लेकिन खुफिया जानकारियों के मामले में आप नजदीक से जुड़े रहे थे. क्या आप बता सकते हैं कि आखिर कैसे बिन लादेन के बारे में पता चल पाया.

मैं इस बारे में इतना ज्यादा नहीं जानता कि आपको बहुत कुछ बता सकूं. बहुत सारे तथ्य थे और बहुत से तथ्यों का खुलासा अभी बाकी है. मुझे लगता है कि इस कार्रवाई के बारे में अभी भी बहुत कम जानकारी सार्वजनिक हुई है. मुझे लगता है कि कई सालों के दौरान कई छोटे छोटे सुरागों को जमा किया गया. किसी ने एक बार कहा था कि खुफिया जानकारी ऐसी पहेली के समान है, जिसमें आपको तस्वीर तैयार करनी होती है और पहेली पर वह तस्वीर होती भी नहीं है, जिसे देख कर आप उसकी नकल कर सकें. और यहां भी ऐसा ही कुछ हुआ. दूसरे शब्दों में जब हमने यह खोज शुरू की, तो हमारे सामने बहुत सी जानकारियां थीं लेकिन हमें यह नहीं पता था कि उन्हें एक साथ कैसे रखा जाए. लेकिन कुछ समय बाद पहेली के बक्से पर तस्वीर दिखने लगी क्योंकि ज्यादा जानकारियां मिलने लगीं. तो आखिर में जब आपके पास कुछ सुराग हो तो आप उसे ऐसी जगह फिट करने लगते हैं, जहां से कुछ मतलब निकल सके.

खुफिया जानकारी जमा करते वक्त एक नियम होता है कि अगर आपको कुछ नई जानकारियां मिल रही हैं, तो आप अपने पास जमा पुरानी जानकारियों को पास पहुंचें और उसे फिर से खंगालें. हो सकता है कि पहले उस जानकारी का कोई मतलब नहीं निकल रहा हो और बाद में उसका बड़ा मतलब निकले. आपको बहुत राहत मिलती है क्योंकि ताजा जानकारी बिलकुल फिट बैठती है.

मुझे लगता है कि यह इसी तरह की प्रक्रिया रही होगी, जिससे आखिरकार ओसामा बिन लादेन के ठिकाने के बारे में पता चला. अब इस बात पर गौर कीजिए कि अमेरिकी प्रशासन के लोगों का भी कहना था कि उन्हें पूरा सौ प्रतिशत यकीन नहीं था कि यह वही है. उन्हें जो जानकारी थी, उससे उन्हें विश्वास था लेकिन इस बात का पक्का पता नहीं था. अब मैं निजी तौर पर कयास लगा रहा हूं कि उन्हें 75 से 80 प्रतिशत इस बात का यकीन था कि यह वही है. लेकिन उन्हें पूरा विश्वास नहीं था.

जब आप बिन लादेन जैसे किसी प्रोजेक्ट पर काम करते हैं, जहां आपको उसे ढूंढ निकालना और मार गिराना होता है, तो आप बारीकी में जाते हैं कि उसकी आदतें क्या हैं, वह क्या कहता है, क्या इस दौरान आपका कोई रिश्ता बन जाता है. मेरे पूछने का मतलब यह कि बिन लादेन जैसे किसी शख्स के साथ आप अपने रिश्ते के बारे में क्या कहेंगे.

मेरे साथ नहीं लेकिन मैं सोच सकता हूं उन जानकारों के बारे में जो प्रथम पंक्ति में होते हुए इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे. मैं थोड़े ऊपर के स्तर पर काम कर रहा था और पूरे विश्व, मध्य पूर्व, एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका को देख रहा था. लेकिन मेरी निजी लिस्ट में भी आतंकवाद एक बड़ा मुद्दा था.

लेकिन अगर मैं उन लोगों के बारे में सोचूं, जो सीधे तौर पर हर दिन हर रात इससे जुड़े थे, तो मैं कह सकता हूं कि आप स्नेह तो नहीं लेकिन आप लक्ष्य के साथ नजदीकी रिश्ता तो बना ही लेते हैं. क्योंकि आपको लगता है कि आपके पास इतनी जानकारी है कि आप उस व्यक्ति को जानने लगे हैं लेकिन आखिर के कुछ टुकड़े नहीं जुड़ पा रहे हैं ताकि आप उस शख्स को पूरी तरह समझ पाएं और यह समझ पाएं कि वह किस तरह के फैसले करता होगा. मैं आपको बता सकता हूं कि जो लोग ऐसे प्रोजेक्ट पर काम करते हैं, वह लक्ष्य से दिमागी तौर पर जुड़ जाते हैं.

मैं समझता हूं कि 9/11 के बाद सीआईए का जो रवैया रहा, वह था गुस्सा और समाधान. गुस्सा इस बात से कि हम अल कायदा की साजिश का वक्त रहते पता नहीं लगा पाए क्योंकि हमें पता था कि वे लोग उस साल की गर्मियों में हमले की तैयारी कर रहे हैं. हमारे पास बहुत अच्छी खुफिया जानकारी थी, जो बताती थी कि हमले की आशंका है. लेकिन हमें यह नहीं पता था कि हमला कहां होगा.

इसलिए हमारे अंदर गुस्से का भी पुट था. दूसरा हिस्सा समाधान का था. इस मूवमेंट को छिन्न भिन्न करना था ताकि ऐसा दोबारा न हो. इसलिए जो लोग इस पर काम कर रहे थे, वे अपने लक्ष्य को लेकर बेहद गंभीर थे.

इंटरव्यूः माइकल क्निगे/अनुवादः ए जमाल

संपादनः ए कुमार

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