इराक में धमाकेदार जर्मन फुटबॉल
७ सितम्बर २०१०जाहिर है कि परिवार के लोग चिंतित थे, फुटबॉल फैन्स हैरत में पड़ गए थे, जब पता चला था कि पेशेवर जर्मन कोच जिडका अब इराक के राष्ट्रीय फुटबॉल कोच का पद संभालने को तैयार हो गए हैं. अगस्त के आरंभ में वे वहां पहुंचे. जाहिर है कि इराक में सुरक्षा की स्थिति बेहद खतरनाक बनी हुई है, लेकिन वोल्फगांग जिडका का कहना है कि उन्हें कोई चिंता नहीं है. एक टेलिफोन साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि वे देश के उत्तर में कुर्द इलाके में हैं, अरबिल में, जहां वे काम कर रहे हैं, सुरक्षा की कोई चिंता नहीं है.
फीफा ने भी यहां अंतरराष्ट्रीय मैचों की अनुमति दे रखी है. उन्हें कोई डर नहीं है, वे कहते हैं.
जिडका से पहले कई अंतर्राष्ट्रीय कोच इस पद को ठुकरा चुके थे. लेकिन जिडका को यह चुनौती पसंद आई. उन्होंने दो मित्रों से बात की, जिनमें से एक विदेश मंत्रालय में थे और दूसरे पत्रकार थे, इराक में नौ सालों से रह रहे थे. फिर अपनी आंखों से हालात परखने के लिए वे इराक पहुंचे.
1954 में जन्में वोल्फगांग जिडका अन्य क्लबों के अलावा वैर्डर ब्रेमेन के खिलाड़ी थे, कोच के रूप में भी वे इस क्लब से जुडे़ रहे हैं. बहरीन और कतार की टीमों को वे प्रशिक्षण दे चुके हैं. लेकिन सुरक्षा के सवालों के अलावा फुटबॉल के मोर्चे पर भी उन्हें इराक में कड़ी चुनौतियों का सामना करना है.
24 सितंबर से 3 अक्टूबर तक चलने वाले पश्चिम एशिया फुटबॉल एसोसिएशन चैंपियनशिप के लिए उन्हें इराक की राष्ट्रीय टीम का गठन करना है. इराक के सात खिलाड़ी विदेशी क्लबों में खेलते हैं, मसलन युनुस महमूद, जिन्होंने सन 2007 के एशिया कप में सउदी अरब के खिलाफ गोल दागते हुए इराक को जीत दिलाई थी. लेकिन जिडका को ये खिलाड़ी नहीं मिल रहे हैं. उनकी टीम के अकेले अनुभवी खिलाड़ी हैं नसहत अकरम, जो नीदरलैंड्स की चैंपियन टीम ट्वेंटे में थे, लेकिन अब किसी क्लब के लिए नहीं खेल रहे हैं. जिडका कहते हैं कि वे लगभग 50 खिलाड़ियों को परख रहे हैं. वे प्रतिभाशाली हैं और कुछ कर दिखाना चाहते हैं.
फुटबॉल के मामले में सरकारी दखलंदाजी की वजह से फीफा ने इराक पर प्रतिबंध लगा दिया था. 10 महीनों से टीम अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं से बाहर हैं. पिछली बार वे एशिया कप विजेता थे, लेकिन अगले साल ग्रुप डी में उनका ईरान, संयुक्त अरब अमीरत और उत्तर कोरिया से मुकाबला है. बच कर अगले दौर में पहुंचना बेहद मुश्किल है.
अगर बात नहीं बनती है? जिडका कहते हैं कि इसके बावजूद फुटबॉल का बुखार इराक में चढ़ा रहेगा. वे कहते हैं कि फुटबॉल टीम में अलग अलग समुदायों के खिलाड़ी एकजुट होते हैं. कोच के तौर पर उन्हें पता भी नहीं है कि कौन खिलाड़ी किस समुदाय का है. टीम के अंदर यह सवाल कभी उठा ही नहीं.
रिपोर्ट: डीपीए/उभ
संपादन: सचिन गौड़