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इन आंखों में नहीं अब घर लौटने का सपना

८ जनवरी २०१८

फाइलों में बेशक सीरिया का युद्ध जल्द खत्म होने वाला हो या वहां से फौजों ने लौटना शुरू भी कर दिया हो, लेकिन सीरियाई युवाओं को अपने देश में शांति की कोई उम्मीद नहीं है. ना ही ये भरोसा कि वे वापस अपने देश जा सकेंगे.

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Libanon Junge Syrer in Beirut
तस्वीर: DW/A. Vohra.

घबराहटों के बीच रोजमर्रा के काम करता 23 साल का शमी (बदला हुआ नाम) आज सीरिया में रह गए अपने परिवार को याद करके परेशान हो रहा है. ये परेशानी और चिंता ऐसी है जिसका फिलहाल कोई समाधान नहीं है. क्योंकि वापस अपने घर सीरिया लौटने के ख्याल से ही शमी जैसे कई युवा घबरा जाते हैं. शमी कहता है कि वह अपने मां-बाप से मिलना तो चाहता है, लेकिन उसे डर है कि अगर वह वापस लौटता है तो उसे जबरन सेना में शामिल किया जाएगा. लेकिन उसे इस तरह के लड़ाई-झगड़े में कोई विश्वास नहीं है.

शमी अलेप्पो से भाग कर साल 2017 में लेबनान आ गया था. बकौल शमी वहां से भागने के अलावा उसके पास कोई रास्ता ही नहीं था. उसने बताया कि अगर वह नहीं आता तो उसे सीरियाई सैनिक की तरह लड़ना पड़ता. शमी को साल 2012-2016 में पढ़ाई के दौरान सेना से छूट मिली थी. लेकिन यूनिवर्सिटी के बाद उसके पास अपने घर में रहने का कोई कारण नहीं था. शमी के मुताबिक उस वक्त उसके सामने दो ही विकल्प थे, पहला राष्ट्रपति बशर अल असद के नियंत्रण वाली सेना की ओर से लड़ना और दूसरा सीरिया छोड़ना. 

सेना है अनिवार्य

सीरिया में 18 साल से अधिक उम्र के पुरूषों के लिए सैन्य सेवा में जाना अनिवार्य होता है. हालांकि कुछ मामलों में छूट भी मिल जाती है. लेकिन अब स्थिति अच्छी नहीं है. शमी की ही तरह कई लड़कों ने सीरिया को सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि वह तोप, गोला-बारूद के बीच अपना जीवन नहीं जीना चाहते थे. शमी ने कहा, "इस गृह युद्ध में सीरिया के लोग मर रहे हैं, लेकिन युद्ध उनके लिए नहीं है. युद्ध असद के लिए है, सऊदी, इरानी, रूसी और अमेरिकी लोगों के लिए है."

पिछले सात साल से चल रहे युद्ध को देखते-देखते सीरियाई लोगों की उम्मीदें भी अब टूटने लगी है. इन लोगों को नहीं लगता कि सालों के युद्ध के बाद भी वहां कोई राजनीतिक बदलाव आएगा. कुछ लोग मानते हैं कि लोकतंत्र की लड़ाई को आतंकी संगठन आईएसआईएस ने हड़प लिया है और अब यह गुट बेहद ही मजबूत हो गया है. सैन्य विशेषज्ञ कहते हैं जब से युद्ध शुरू हुआ है तक से लेकर अब तक सेना में सैनिकों की संख्या 3 लाख से गिरकर आधी रह गई है. 

भविष्य की तलाश

शमी को यह तो लगता है कि वह मौत को चकमा देकर आ गया है. लेकिन साथ यह भी दिमाग में आता है कि वह ऐसी जिंदगी के लिए भागा है जिसके अच्छे भविष्य को लेकर शंकाएं बरकरार हैं. उसने बताया कि लेबनान में वह एक सफाईकर्मी ही हो सकता है. क्योंकि शमी के पास कोई स्थानीय स्पांसर नहीं है और रेजिडेंस परमिट के लिए उसे उसकी जरूरत है. दरअसल लेबनान सरकार ने सीरियाई लोगों को अपने स्पांसर पेश करने के लिए कहा है.

ऐसे स्पांसर जो इनके रहने और काम करने की गारंटी लें. इसके अलावा सीरियाई लोगों को सिर्फ उन्हीं कामों के लिए रखा जाएगा जो लेबनान के लोग करने में असमर्थ होंगे. नतीजतन, शमी जैसे पढ़े-लिखे लोग भी अकुशल कामगारों की तरह काम करने को मजबूर हैं. सीरिया से बैचलर्स करने के बाद, शमी लेबनान में मास्टर्स के लिए भी आवेदन दे सकता था. लेकिन ऐसा करने के बाद शमी को अनिवार्य रूप से सीरिया वापस जाकर सेना में शामिल होना होता. शमी को यह भी डर है कही सीरिया में उसे भगोड़ा, गद्दार समझ कर जेल में न डाल दिया जाए.

शमी ने बताया कि उसे जर्मनी की एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनी में नौकरी मिल रही थी लेकिन जर्मन सरकार ने उसे वीजा देने से मना कर दिया. शमी कहता है, "पश्चिमी देश हमें प्राथमिकता नहीं देते, ऐसे में हमारे पास कहां जाने का रास्ता है." असद शासन में जाकर सेना में भर्ती होने से बचने के लिए फिलहाल शमी लेबनान में अवैध तरीके से रह रहा है. शमी दो टूक शब्दों में कहता है कि वह असद के लिए नहीं लड़ेगा.

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ऐसी तमाम कहानियां

इस मामले में खालिद, शमी से अधिक किस्मत वाला साबित हुआ. साल 2013 में खालिद को एक स्पांसर मिल गया था और अब खालिद लेबनान के एक रेस्तरां में काम कर रहा है. खालिद कहता है, "सीरियाई लोग बेहद ही जरूरतमंद हैं, इसलिए वह कितने भी पैसे में कोई भी काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं. लेकिन मेरा बॉस अच्छा है और वह मेरे साथ अच्छा व्यवहार करता है." हालांकि शमी की ही तरह खालिद का परिवार सीरिया में ही है. अपनी निजी जिंदगी के बारे में कुछ भी बताने से खालिद कतराता है. पूछने पर भी वह यह नहीं बताता कि वह लेबनान कैसे आया.

Libanon Junge Syrer in Beirut
तस्वीर: DW/A. Vohra.

बकौल खालिद, "पहले मैं असद को अपना समर्थन देता था लेकिन शासन ने विद्रोहियों को दबाने के नाम पर किसी को भी उठाना शुरू कर दिया." बेहद ही तल्ख अंदाज में खालिद ने कहा, "मैं सीरिया के लिए लड़ सकता हूं लेकिन असद के लिए बिल्कुल नहीं. क्योंकि बहुत से लोगों को बेवजह ही मार डाला गया है." खालिद के मुताबिक उसने अपने बहुत से दोस्तों को इस युद्ध में मरते देखा है और इन वाकयों ने उसका विश्वास हिला दिया. इसलिए वह किसी भी लड़ाई में हिस्सा लेने का इच्छुक नहीं है.

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खालिद ने बताया जब साल 2013 में वह सीरिया की एक यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई कर रहा था. उस वक्त उसकी उम्र महज 19 साल थी. पहले उसने सिर्फ छह महीने के लिए यूनिवर्सिटी छोड़ी थी लेकिन उसके बाद वह वापस ही नहीं जा सका. खालिद कहता है, "उस देश में मेरे लिए कुछ नहीं बचा है. वह मेरा सीरिया है ही नहीं. लेकिन लेबनान में अब मुझे घर जैसा महसूस होने लगा है."

शरणार्थी दर्जा

बासाम (परिवर्तित नाम) पिछले दो सालों से जर्मनी और कनाडा की ओर से इसी इंतजार में है कि ये देश उसे रिफ्यूजी दर्जा दे दें. उसकी बहन को जर्मनी में शरण मिल गई लेकिन मां-बाप अब भी सीरिया में फंसे हुए हैं. बासाम ने कहा, "वह मरना नहीं चाहता था इसलिए सीरिया से भागा." काफी देर बाद बासाम ने बताया कि अब उसका परिवार बिखर चुका है लेकिन उसे उम्मीद है कि एक दिन वह अपनी बहन से मिलने जर्मनी आ सकेगा. बासाम के पास फिलहाल चार साल बाहर रहने का अधिकार है. लेकिन उसके बाद उसे सीरियाई सेना में शामिल होना होगा. लेेकिन अगर वह 8000 डॉलर का भुगतान सीरियाई सरकार को कर पाता है तो इससे छूट मिल सकती है. 

रिपोर्ट: आंचल वोहरा/एए