आदमी के जैसा शार्क का दिमाग
३१ अक्टूबर २०१२यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की शार्क रिसर्चर कारा योपाक ने 150 से ज्यादा जीवों के दिमाग का विश्लेषण किया है. योपाक का कहना है कि नई रिसर्च में शार्कों के दिमाग में ऐसी कई बातों का पता चला है जो इंसानों के दिमाग से बिल्कुल मेल खाती दिख रही हैं. योपाक ने कहा, "विशाल सफेद शार्क के दिमाग का बड़ा हिस्सा उन्हें देख कर मिली जानकारियों से जुड़ा होता है." योपाक के मुताबिक इसका नतीजा यह होता है कि वो दिखने वाले संकेतों के प्रति ज्यादा संवेदनशील होती हैं. योपाक का यह रिसर्च जर्नल ब्रेन के विशेष अंक में छपा है.
बाजार में मौजूद ज्यादातर निरोधक ऐसे हैं जो शार्क के सिर में बने विद्युतसंवेदी छिद्रों को निशाना बनाते हैं. यह निरोधक शिकार से निकलने वाली कमजोर तरंगों को पकड़ कर वापस उन्हें मजबूत विद्युत तरंगें भेज कर खतरे के बारे में आगाह करते हैं. योपाक का मानना है कि नई तकनीक असरदार हो सकती है लेकिन सभी मामलों में यह शार्कों से दूर भागने में मददगार नहीं होती. उनका दिमाग कैसे काम करता है यह समझ कर इसका इस्तेमाल नए निरोधक बनाने में किया जा सकता है. यह निरोधक सर्फबोर्ड और वेटसुट्स जैसे ही सरल तरीके से बनाए भी जा सकेंगे. योपाक ने कहा, "उदाहरण के लिए शार्क एक जहरीले समुद्री सांप जैसे निशान को देख कर दूर भाग सकती है. इसके लिए उनके रवैये पर न्यूरोबायोलॉजी के असर को समझना होगा."
योपाक यूनिवर्सिटी की ओशेन इंस्टीट्यूट की उस टीम का हिस्सा हैं जो नए निरोधक बनाने में जुटी है. ज्यादातर शार्को के दिमाग का आकार औसतन स्तनधारियों या चिड़ियों के दिमाग के आकार का ही है.
जॉ जैसी हॉरर फिल्मों ने भयानक सफेद शार्कों को पूरी दुनिया में कुख्यात किया है. यह दैत्याकार समुद्री जीव हर साल कई तैराकों और नाविकों को बीते सालों में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी किनारों पर अपना शिकार बनाते हैं. 10 महीनों में जब पांच लोग इन शार्कों के शिकार बन गए तब तंग आ कर पिछले महीने ही सरकार ने एक नई नीति बनाई है, जिसके तहत किनारों की तरफ आने वाली शार्कों को पकड़ कर उन्हें मारा जा सकेगा.
ऑस्ट्रेलियाई सागर में शार्कों का मिलना बहुत आम बात है लेकिन उनके खतरनाक हमले हाल के दिनों में काफी कुख्यात हुए हैं. साल के 15 हमलों में से एक हमला घातक साबित हुआ है और इस वजह से खतरा बढ़ा है. जामकारों का कहना है कि देश की आबादी बढ़ने और वाटर स्पोर्ट में इजाफा होने के बाद से हमलों की औसत संख्या बढ़ गई है.
एनआर/एमजे (एएफपी)