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अहम है इस बार भारत-अफ़ग़ानिस्तान वार्ता 

मारिया जॉन सांचेज
१८ सितम्बर २०१८

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी का भारत दौरा भारत अफगान रिश्तों के लिए तो महत्वपूर्ण है है, इमरान खान के नेतृत्व वाले पाकिस्तान के साथ दोनों देशों के रिश्तों के लिए भी इसका महत्व है.

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Treffen Ghani Modi Afghanistan Indien Beziehungen
तस्वीर: picture-alliance/AA/I. Khan

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी नयी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर विस्तृत वार्ता कर रहे हैं. पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत और अफगानिस्तान के बीच यह पहली शिखर वार्ता है और इसका महत्व स्पष्ट है. इस वार्ता का महत्व भारत और अफगानिस्तान के आपसी रिश्तों के लिए तो है ही, भारत और पाकिस्तान के रिश्तों पर भी इसका असर पडेगा ऐसी उम्मीद की जा रही है. दरअसल भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में अक्सर कश्मीर को ही सबसे बड़ा मुद्दा मान लिया जाता है जबकि सच यह है कि भूराजनीतिक स्थिति और आतंकवाद के कारण अफगानिस्तान भी उससे काम महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है.

पाकिस्तानी सुरक्षा प्रतिष्ठान अफगानिस्तान पर अपना विशेषाधिकार समझता है और भारत के साथ उसकी घनिष्ठता को पाकिस्तान-विरोधी कार्रवाई मानता है. यह भी सही है कि पिछले लगभग चार दशकों से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अफगानिस्तान के कारण ही इतना अधिक महत्व मिला है, पहले सोवियत संघ विरोधी जिहादी अभियान के कारण और बाद में अफगानिस्तान को जाने वाले रास्ते पर नियंत्रण होने के कारण. तालिबान के साथ भी उसकी आंख-मिचौली को दुनिया उसकी विशिष्ट भूराजनीतिक स्थिति के कारण बर्दाश्त करती आयी है. 

अशरफ गनी तालिबान के साथ समझौते के पक्ष में हैं, लेकिन तालिबान उनकी सरकार को अफगानिस्तान की वैध सरकार नहीं मानता. वह सीधे-सीधे अमेरिका के साथ वार्ता करना चाहता है और इस दिशा में क़तर की मध्यस्थता के कारण कुछ प्रगति भी हुई है. उधर इमरान खान भी अफगान तालिबान और पाकिस्तानी तालिबान, दोनों के साथ बातचीत और समझौते के पक्षधर हैं. भारत ने भी अफगानिस्तान के नेतृत्व में होने वाली शांति वार्ता के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है जिसका अर्थ यह है कि वह इस प्रक्रिया पर पाकिस्तान का जरूरत से ज्यादा प्रभाव नहीं चाहता.

हाल ही में भारत के विदेश सचिव विजय गोखले ने काबुल जाकर दोनों देशों के बीच राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी सहयोग के गठित कार्यसमूह की बैठक में भाग लिया था. अब गनी और मोदी इस सहयोग को और आगे बढ़ाने के तरीकों पर विचार करेंगे. भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में एक लंबे अरसे से हाथ बंटाता आ रहा है. 

अमेरिका के बदले हुए रुख के कारण शहरों में तो सरकार का नियंत्रण है लेकिन अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों में तालिबान का असर बरकरार है. उसका स्पष्ट इरादा गनी सरकार की जगह अपनी सत्ता कायम करना है. इसलिए उसके साथ कितना और किस तरह सहयोग किया जाए और वार्ता के लिए किस तरह का खाका तैयार किया जाए, यह तय करना कोई आसान काम नहीं है. 

यदि मोदी और गनी भारत और अफगानिस्तान के बीच सहयोग बढ़ाने का कोई ऐसा रास्ता ढूंढ पाते हैं जो पाकिस्तान को भी कमोबेश स्वीकार हो तो यह सबसे अच्छा विकल्प होगा. बिना पाकिस्तान की स्वीकृति के भारत अफगानिस्तान को निर्माण और सहायता सामग्री भी सामान्य भूमिमार्ग से नहीं भेज सकता. इसलिए मोदी और गनी के बीच वार्ता के परिणाम बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेंगे कि गनी और इमरान के बीच कैसी समझ विकसित होती है. कुल मिलाकर भारत-पाकिस्तान-अफगानिस्तान की तिकड़ी दिलचस्प होती जा रही है. 

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