अम्फान से उजड़ी जिंदगी को राहत का इंतजार
२५ मई २०२०कोलकाता महानगर तूफान की मार से कराहते हुए धीरे-धीरे अपने पैरों पर दोबारा खड़ा होने का प्रयास कर रहा है. कोलकाता समेत तमाम इलाकों में बीते तीन दिनों से लोग लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. शहरी इलाके के लोगों की समस्या जहां बिजली, पानी इंटरनेट और मोबाइल सेवाओं की बहाली है वहीं दूर-दराज के ग्रामीण इलाके भोजन और पानी जैसी मौलिक जरूरतों के लिए भी तरस रहे हैं. सरकार ने बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास काम शुरू करने का दावा किया है. हालांकि जमीनी हकीकत इसके उलट है.
तूफान से पहले लगभग तीन लाख लोगों को उनके घरों से निकाल कर राहत शिविरों में पहुंचाया गया था. वहां तो फिर भी थोड़ा-बहुत खाना-पानी मिल रहा है. असली समस्या सुदूर इलाकों में रहने वाले उन लोगों की है जिनके घर तूफान में ढह गए हैं और खेतों में लगी फसलें बर्बाद हो गई हैं.
सैकड़ों लोग खुले आसमान के नीचे रातें गुजारने पर मजबूर हैं. सरकारी राहत के इंतजार में उनकी आंखें अब पथराने लगी है. दक्षिण 24-परगना जिले के काकद्वीप इलाके में रहने वाले सुमिरन मंडल कहते हैं, "तूफान ने सबकुछ बर्बाद कर दिया. हमारा घर ढह गया और खेतों में लगी फसलें नष्ट हो गईं. बीते पांच-छह दिनों से हम किसी तरह इधर-उधर से मिलने वाला चना-चबेना खाकर दिन काट रहे हैं. अब तक सरकार की ओर से कोई राहत नहीं मिली है.”
वह बताते हैं कि दो दिन पहले इलाके में आने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख रुपए दिए थे. उन्होंने राशन का भी पर्याप्त इंतजाम करने का भरोसा दिया था. लेकिन इलाके की राशन दुकानें बंद हैं और वहां रखा अनाज पानी से खराब हो गया है. ऐसे में समझ में नहीं आता कि आगे दिन कैसे कटेंगे? तूफान की वजह से खेतों में नदियों के रास्ते समुद्र का खारा पहुंचने से तटवर्ती इलाको में हजारों हेक्टेयर में लगी फसलें तो बर्बाद हुई ही हैं, निकट भविष्य में भी वहां खेती करना मुश्किल हो गया है. दक्षिण 24-परगना जिले के मथुरापुर में स्कूल शिक्षक चंदन माइती कहते हैं, "चावल की एक किस्म अमल के बीज जून में बोए जाते थे. लेकिन खारे पानी की वजह से इस साल यह काम असंभव हो गया है. इसी तरह तालाबों का पानी भी खारा हो गया है. उससे फसलों की सिंचाई भी नहीं हो सकती.”
अम्फान तूफान से दस हजार से ज्यादा घर उजड़ गए हैं और कम से कम दस हजार दूसरे घरों को आंशिक नुकसान पहुंचा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि अम्फान से होने वाले नुकसान का आंकड़ा लगभग एक लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकता है. अकेले कोलकाता में लगभग 15 हजार पेड़ उखड़ गए हैं. इसके अलावा सैकड़ों खंभों के गिर जाने से बिजली और टेलीफोन सेवाएं प्रभावित हुई हैं. कई इलाकों में छठे दिन भी बिजली और पानी की सप्लाई बहाल नहीं हो सकी है.
इसके विरोध में लोग बीते तीन दिनों से लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. नाराज लोगों ने कई जगह पेड़ हटाने वाले लोगों पर हमले भी किए हैं. इस वजह से चक्रवात से प्रभावित दूरसंचार नेटवर्क को ठीक करने का काम भी प्रभावित हो रहा है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लोगों से धैर्य रखने को कहा है. उन्होंने कहा, "जनजीवन सामान्य करने के लिए विभिन्न एजंसियों की लगभग ढाई हजार टीमें दिन-रात काम में जुटी हैं, लेकिन इस काम में अभी समय लगेगा.” उन्होंने लोगों और राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करने की अपील की है.
छह दिनों से बिना बिजली-पानी के रहने वाले लोगों का धैर्य अब जवाब दे रहा है. इस बीच, सेना और एनडीआरएफ की सहायता से महानगर में गिरे पेड़ों को हटाने का काम युद्धस्तर पर चल रहा है. बिजली की सप्लाई बहाल करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं लेकिन कई इलाके अब भी अंधेरे में डूबे हैं. कोलकाता नगर निगम के एक अधिकारी बताते हैं, "महानगर में जनजीवन सामान्य होने में कम से कम एक सप्ताह का समय लगने का अनुमान है.” डेढ़ हजार से ज्यादा मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचने की वजह से मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं भी अस्त-व्यस्त हो गई हैं.
हावड़ा के बॉटेनिकल गार्डेन में लगे दुनिया के सबसे पुराने बरगद के पेड़ को भी तूफान से काफी नुकसान पहुंचा है. दूसरी ओर, पर्यावरणविदों ने अंदेशा जताया है कि अम्फान की वजह से कोलकाता में हजारों पेड़ उखड़ जाने से शहर में प्रदूषण स्तर बढ़ सकता है. एक पर्यावरणविद सौमेंद्र नाथ घोष कहते हैं, ‘‘महानगर में सड़कों के किनारे लगे एक तिहाई से ज्यादा पेड़ों को नुकसान पहुंचा है. हमें सितंबर के पहले सप्ताह से पीएम 2.5 के स्तर में गंभीर बढ़ोतरी की आशंका है. लॉकडाउन के बाद सड़कों पर लगभग आठ लाख वाहन चलेंगे.”
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अधिकारी बताते हैं कि आगामी मानसून सत्र में बड़ी संख्या में पेड़ लगाने होंगे. मानकों के मुताबिक एक बड़े पेड़ के एवज में दस पौधे लगाना जरूरी है. फिलहाल सबसे बड़ी समस्या इन गिरे पेड़ों को हटा कर रास्ता साफ करना है.
राज्य सरकार के एक अधिकारी बताते हैं, "सरकार सुदूर ग्रामीण इलाकों में राहत और पुनर्वास का काम करने का प्रयास कर रही है. लेकिन सड़कों के बंद होने के वजह से फिलहाल इसमें बाधा पहुंच रही है. स्थानीय प्रशासन कुछ गैर-सरकारी संगठनों के जरिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए लोगों को खाद्यान्न मुहैया करा रहा है.”
समाजशास्त्रियों का कहना है कि कोरोना महामारी के दौर में अम्फान की दोहरी मार ने ग्रामीण इलाकों की अर्थव्यवस्था की रीढ़ तो तोड़ ही दी है, अब लोगों को भी खाने के लाले पड़ने लगे हैं. सरकार को युद्धस्तर पर उन इलाकों में राहत सामग्री पहुंचाने और पुनर्वास की प्रक्रिया तेज करने का प्रयास करना चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में अगले महीने आने वाला मानसून इस समस्या को और गंभीर बना सकता है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore