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जलवायु परिवर्तन से खतरे में है असम के राजकीय पक्षी का वजूद

प्रभाकर मणि तिवारी
७ नवम्बर २०२२

असम के राजकीय पक्षी काठ बत्तख पहले से ही लुप्तप्राय थे लेकिन अब उनके पूरी तरह लुप्त होने का खतरा है. बीते सालों में उनके संरक्षण के लिए कोई उपाय नहीं हुआ दूसरी तरफ इंसानी गतिविधियों से उनके आशियाने उजड़ रहे हैं.

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Indien | Malaienente in Dibrugarh
तस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

जलवायु परिवर्तन के कारण असम के राजकीय पक्षी सफेद पंख वाले काठ बत्तखों (Asarcornis scutulata) के विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है. इनको स्थानीय भाषा में देव कहा जाता है. जलवायु परिवर्तन का राज्य के पक्षियों पर असर के मुद्दे पर शोधकर्ताओं की एक टीम की ओर से किए गए ताजा अध्ययन से यह बात सामने आई है.

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने साल 1994 में इसे लुप्तप्राय प्रजाति के पक्षियों की सूची में शामिल किया था. असम सरकार ने  2003 में इसे राजकीय पक्षी का दर्जा दिया था. इससे पहले 2018 से 2020 के दौरान वाइल्डलाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया ने भी अपने अध्ययन में कहा था कि रहने की जगह तेजी से घटने और बढ़ते शिकार के कारण इन पक्षियों का अस्तित्व खत्म होने का खतरा बढ़ रहा है.

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दुनिया भर में कुल 800 बत्तख ही बचे हैं

यह पक्षी पूर्वोत्तर भारत के अलावा भूटान, म्यांमार, थाईलैंड, बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया और इंडोनेशिया में पाया जाता है. दुनिया भर में इनकी आबादी करीब आठ सौ है. इनमें से 450 पक्षी पूर्वोत्तर हिमालय क्षेत्र खासकर असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में ही रहते हैं.

देहरादून के वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट आफ इंडिया के ज्योतिष रंजन डेका और सैयद आईनुल हुसैन, सिलचर के असम विश्वविद्यालय के अनिमेष डेका और गुवाहाटी के गैर-सरकारी संगठन आरण्यक के ज्योति प्रसाद दास और रूबुल तांती की टीम के अध्ययन की रिपोर्ट जर्नल फॉर नेचर कंजर्वेशन में छपी है.

इंसानी गतिविधियों के कारण खत्म हो रहे हैं काठ बत्तख
पूरी तरह लुप्त हो सकते हैं काठ बत्तखतस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

यह पक्षी ट्रापिकल यानी उष्णकटिबंधीय हरे जंगलों में समुद्रतल से 200-1500 मीटर की ऊंचाई तक रहते हैं. इनके लिए सबसे मुफीद इलाके वह हैं जहां तापमान 22 से 30 डिग्री सेल्सियस रहता है और जून से अक्तूबर के बीच एक हजार से 1200 मिमी तक बारिश होती है. अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन, घटते जंगल और बढ़ती आबादी के साथ ही कई अन्य इंसानी गतिविधियों से इन पक्षियों की आबादी लगातार घटती रहेगी. रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के पूर्वी हिमालय क्षेत्र के कुल 2.73 लाख वर्ग किलोमीटर जंगल में महज 5,123 वर्ग किलोमीटर का इलाका ही इन पक्षियों के रहने के लिए सबसे आदर्श जगह है.

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सिमट रहा है आवास

हालांकि 2050 तक इनमें से महज 142.20 वर्ग किलोमीटर का इलाका ही बचेगा. साल 2050 से 2070 के बीच जलवायु परिवर्तन की वजह से इसमें से और 465 वर्ग किलोमीटर का इलाका खत्म हो जाएगा. आरण्यक के रूबुल तांती बताते हैं, "जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रतिकूल असर पूर्वी असम में इन पक्षियों के रहने की जगह पर पड़ेगा. इनमें दिहिंग पाटकाई नेशनल पार्क और दूमदूमा फॉरेस्ट डिवीजन शामिल हैं."

अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के दशकों में मानव-जनित वजहों से प्राकृतिक आवास नष्ट होने के कारण पूरी दुनिया में इन बत्तखों की आबादी में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है. तांती बताते हैं, "जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों के घटने, पानी में प्रदूषण बढ़ने और जलाशयों के सूखने जैसी वजहों से अपने प्राकृतिक घर में इन पक्षियों की तादाद कम हुई है."

इसके साथ ही उनके शिकार और उनके अंडों के बढ़ते सेवन ने भी इन पक्षियों के वजूद पर खतरा पैदा कर दिया है. असम के उष्टकटिबंधीय जंगलो में भी जंगल तेजी से घटने और जलाशयों के आस-पास के जंगलों की सफाई के कारण सफेद पंख वाले इन काठ बत्तखों की आबादी में गिरावट दर्ज की गई है.

पूरी तरह लुप्त हो सकते हैं काठ बत्तख
काठ बत्तखों पर मंडरा रहा है खतरातस्वीर: Prabhakar Mani Tewari/DW

संरक्षण के प्रयास नहीं

लुप्तप्राय प्रजाति के पक्षियों के संरक्षण की दिशा में काम करने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप है कि राजकीय पक्षी का दर्जा देने के बावजूद सरकार ने इन पक्षियों के संरक्षण की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. पक्षियों के संरक्षण के लिए काम करने वाले नलिन कुमार महंत कहते हैं, "सरकार ने वर्ष 2003 में इसे राजकीय पक्षी का दर्जा तो दे दिया, लेकिन इनके संरक्षण के लिए कोई ठोस कार्ययोजना नहीं बनाई. नतीजतन प्राकृतिक वजह के अलावा मानवीय वजहों से भी इन पक्षियों पर खतरा बढ़ गया है. जंगल के आस-पास के इलाको में रहने वाले लोग इन पक्षियों का शिकार करते रहते हैं. इससे इनका वजूद खतरे में पड़ गया है."

एक और संरक्षक मोहम्मद इलियास कहते हैं, "सरकार को इन बत्तखों के संरक्षण की ठोस कार्ययोजना तैयार कर कम से कम मानवीय कारकों पर अंकुश लगाना चाहिए."

दूसरी ओर, पशु कल्याण मंत्रालय के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "सरकार अब इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है. इनके संरक्षण के उपायों पर विचार के लिए संबंधित पक्षों और गैर-सरकारी संगठनों से बातचीत चल रही है. साथ ही इन पक्षियों के प्राकृतिक ठिकाने के आस-पास रहने वाले लोगों के बीच जागरुकता अभियान भी चलाया जाएगा ताकि इनके बढ़ते शिकार पर अंकुश लगाया जा सके."

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