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आतंकवादअफगानिस्तान

यूएन: आतंकवादी समूहों को अफगानिस्तान में आजादी

९ फ़रवरी २०२२

यूएन विशेषज्ञों के मुताबिक तालिबान के साथ अलकायदा के पुराने संबंध अफगानिस्तान को आतंकियों के गढ़ में बदल सकते हैं. उनका कहना है कि हाल के वर्षों में अफगानिस्तान में आतंकवादियों को उतनी आजादी नहीं मिली, जितनी अब मिलती है.

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तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक तालिबान ने यह दिखाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है कि आतंकवादियों को पनाह नहीं दे रहा है, बल्कि यह कि आतंकवादी पहले से ही अफगानिस्तान में "अधिक स्वतंत्र" हैं.

विस्तृत रिपोर्ट में विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि आतंकी अल कायदा और इस्लामिक स्टेट समूह दोनों से सफलतापूर्वक जुड़े हुए हैं अफ्रीका में आगे बढ़ रहा है, खासकर अशांत साहेल में.

विशेषज्ञों ने कहा कि इस्लामिक स्टेट ने इराक और सीरिया में "एक मजबूत ग्रामीण विद्रोह" के रूप में काम करना जारी रखा है, जहां इसकी तथाकथित खिलाफत ने 2014-2017 तक दोनों देशों के एक महत्वपूर्ण क्षेत्र पर शासन किया था और उसके बाद इसे इराकी बलों अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने हराया था.

तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया. उनके निष्कासन का मुख्य कारण अफगानिस्तान में अल-कायदा की गतिविधियां और तालिबान द्वारा उस समय संगठन के प्रमुख ओसामा बिन लादेन को पनाह देना था. 9/11 के हमलों के लिए ओसामा बिन लादेन को जिम्मेदार ठहराया गया था. (पढ़ें-दो साल से तालिबान की हिरासत में है एक अमेरिकी सैनिक)

जानकारों के मुताबिक इस्लामिक स्टेट भले ही अफगानिस्तान के एक सीमित इलाके में मौजूद है, लेकिन इस संगठन ने बेहद जटिल हमले कर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है. एक अनुमान के मुताबिक, कैदियों की रिहाई के बाद से इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों की संख्या 2,000 से बढ़कर 4,000 हो गई है. जानकारों के मुताबिक तालिबान इस्लामिक स्टेट को अपना सबसे बड़ा खतरा मानता है.

विशेषज्ञों के अनुसार इंडोनिशिया और फिलीपींस दो ऐसे देश हैं जो अल कायदा और आईएसआईएस के खिलाफ अपने अभियानों में सफल रहे हैं.

एए/सीके (एपी)

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