1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
राजनीतितुर्की

क्यों इतने अहम हैं तुर्की के स्थानीय चुनाव

स्वाति मिश्रा
२९ मार्च २०२४

तुर्की में 31 मार्च को नगर निकाय चुनाव के लिए मतदान होना है. इसमें तुर्की के शहरों, प्रांतों और नगरपालिकों के मेयर और काउंसिलर चुने जाएंगे. इस चुनाव के नतीजे राष्ट्रीय राजनीति और एर्दोवान के भविष्य के लिए बेहद अहम हैं.

https://p.dw.com/p/4eFzL
अंकारा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोवान
2019 में हुआ पिछला स्थानीय चुनाव एर्दोवान के लिए निराशाजनक रहा था. उनकी जस्टिस ऐंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) इस्तांबुल और अंकारा में हार गई थी. तस्वीर: TUR Presidency/Murat Cetinmuhurdar/AA/picture alliance

31 मार्च को तुर्की में हो रहे नगर निकाय चुनाव को देश के राजनीतिक भविष्य के रुझान की तरह देखा जा रहा है. राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान और विपक्ष, दोनों के लिए यह चुनाव बेहद अहम है. एर्दोवान 2014 से तुर्की के राष्ट्रपति हैं. मई 2023 में हुए आम चुनाव में वह दोबारा जीतकर राष्ट्रपति बने. जीत के बाद दिए गए अपने भाषण में ही उन्होंने स्थानीय चुनावों का बिगुल बजा दिया था.

एर्दोवान ने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा था, "अब हमारे सामने 2024 है. क्या आप 2024 के स्थानीय चुनावों में इस्कुदार और इस्तांबुल, दोनों जीतने के लिए तैयार हैं?" इस्कुदार, इस्तांबुल का ही एक जिला है. यहीं एर्दोवान का घर भी है.

निकाय चुनावों में इस्तांबुल और अंकारा पर सबकी निगाहें हैं. अंकारा में एक चुनावी रैली को संबोधित करते राष्ट्रपति एर्दोवान.
एर्दोवान के लिए यह चुनाव अपनी राजनीतिक विरासत के संदर्भ में भी अहम है. वह कह चुके हैं कि ये स्थानीय चुनाव, आखिरी इलेक्शन होगा जिसमें वो शामिल होंगे.तस्वीर: Emin Sansar/AA/picture alliance

एर्दोवान के लिए इस्तांबुल निजी साख का भी सवाल

साल 2019 में देश भर में हुआ पिछला स्थानीय चुनाव एर्दोवान के लिए निराशाजनक रहा था. उनकी जस्टिस ऐंड डेवलपमेंट पार्टी (एकेपी) देश के तीन सबसे बड़े शहरों- इस्तांबुल, अंकारा और इजमीर में हार गई थी. इस्तांबुल हारना एर्दोवान के लिए बड़ा झटका था. करीब डेढ़ करोड़ की आबादी का यह शहर तुर्की की राजनीति में खासा अहम माना जाता है.

एर्दोवान इसी शहर में पैदा हुए. अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने इस्तांबुल से ही की. साल 1994 में तुर्की के पूर्व प्रधानमंत्री नेजमेट्टिन एरबाकां की वेलफेयर पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर एर्दोवान इस्तांबुल के मेयर चुने गए और 1998 तक इस पद पर रहे. इसके बाद 2003 में प्रधानमंत्री बनकर इस पद पर तीन कार्यकाल बिताने के बाद 2014 में वह देश के राष्ट्रपति बने. वह कई मौकों पर कह चुके हैं कि जो भी इस्तांबुल जीतता है, वो तुर्की को जीतता है.

एर्दोवान के लिए यह चुनाव अपनी राजनीतिक विरासत के संदर्भ में भी अहम है. अभी मार्च की शुरुआत में एर्दोवान ने कहा था कि ये स्थानीय चुनाव, आखिरी इलेक्शन होगा जिसमें वो शामिल होंगे. 8 मार्च को इस्तांबुल में एक बैठक के दौरान एर्दोवान ने कहा, "कानून के मुताबिक, यह मेरा आखिरी चुनाव होगा." तुर्की के संविधान में एक इंसान अधिकतम पांच-पांच साल के दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति रह सकता है.

उन्होंने साफ कहा कि स्थानीय चुनाव के नतीजे राजनीतिक उत्तराधिकारी चुनने की उनकी योजना पर खासा असर डालेंगे. उन्होंने रेखांकित किया, "इस चुनाव का जो नतीजा आएगा, वो मेरे बाद आने वाले भाइयों के लिए विरासत का हस्तानांतरण होगा."

इस्तांबुल में लगे एक चुनावी बैनर में एर्दोवान और उनकी एके पार्टी के उम्मीदवारों की तस्वीर.
एर्दोवान ने मूरत कुरूम को इस्तांबुल में मेयर पद का उम्मीदवार बनाया है. वह पूर्व पर्यावरण और शहरीकरण मंत्री हैं. तस्वीर: John Wreford/SOPA Images/ZUMA Press Wire

इस्तांबुल जीतने की आर्थिक अहमियत

इस्तांबुल देश का सबसे बड़ा आर्थिक और पर्यटन केंद्र है. देश के सकल घरेलू उत्पाद में इसकी हिस्सेदारी एक चौथाई से ज्यादा है. देश के 81 शहरों में सबसे ज्यादा बजट इस्तांबुल म्युनिसिपैलिटी के पास है. 2024 में इसका बजट करीब 1,650 करोड़ डॉलर का है. आर्थिक संसाधनों में अंकारा दूसरे नंबर पर है. चुनाव में जीतने वाली पार्टी को इन दोनों शहरों के प्रशासन और बजट पर नियंत्रण मिलता है.

इससे उन्हें योजनाओं के मद में फंड जारी करने, कॉन्ट्रैक्ट देने और रोजगार के अवसर पैदा करने जैसे अहम फैसलों में बढ़त मिलती है. इसके कारण राष्ट्रीय स्तर पर भी उनकी लोकप्रियता बढ़ती है.

किनमें हो रहा है मुकाबला?

एर्दोवान ने मूरत कुरूम को इस्तांबुल में मेयर पद का उम्मीदवार बनाया है. वह पूर्व पर्यावरण और शहरीकरण मंत्री हैं. 2023 में तुर्की में आए भीषण भूकंप के बाद राहत और बचाव कार्यों के संचालन में भी उनकी बड़ी भूमिका बताई जाती है.

कुरूम का मुकाबला देश के मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी (सीएचपी) है. सीएचपी के उम्मीदवार एकरेम इमामोग्लू इस्तांबुल के मौजूदा मेयर हैं. 2019 में उन्होंने सीएचपी और गुड पार्टी (आईवाईआई) के साथ गठबंधन में रहते हुए इस्तांबुल में जीत हासिल कर बड़ा उलटफेर किया था. हालांकि, इस बार सीएचपी और आईवाईआई अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं.

मई 2023 के राष्ट्रपति चुनाव में भी मुख्य विपक्षी प्रतिद्वंद्वी और सीएचपी के नेता कमाल कुरुचदारु को इस्तांबुल में एर्दोवान से ज्यादा वोट मिले. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के जीतने की स्थिति में उपराष्ट्रपति पद के लिए इमामोग्लू के नाम की काफी चर्चा थी.

सीएचपी के उम्मीदवार एकरेम इमामोग्लू इस्तांबुल के मौजूदा मेयर हैं.
एर्दोवान के मुकाबले एकरेम इमामोग्लू विपक्ष का मुख्य विकल्प बनकर उभरे हैं. तस्वीर: Anka

एर्दोवान का विकल्प कौन

एर्दोवान के मुकाबले इमामोग्लू विपक्ष का मुख्य विकल्प बनकर उभरे हैं. माना जा रहा है कि अगर इस बार भी इमामोग्लू चुनाव जीत जाते हैं, तो वह 2028 के राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हो सकते हैं. यह जीत उनकी संभावनाएं बढ़ा देगी, लेकिन अगर वह हारते हैं, तो ये ना केवल उनके राजनीतिक भविष्य बल्कि विपक्ष की संभावनाओं को भी बड़ा झटका दे सकता है.

कई जानकार इस चुनाव में हार-जीत से तय होने वाले एक और गंभीर पक्ष की ओर ध्यान दिला रहे हैं. आशंका जताई जा रही है कि जीत की स्थिति में एर्दोवान नया संविधान लाने या संवैधानिक संशोधन के सहारे राष्ट्रपति पद के अधिकतम कार्यकाल की सीमा खत्म करने की कोशिश कर सकते हैं. कुछ-कुछ उसी तरह, जैसा पुतिन ने रूस में किया.

जन संपर्क कंपनी टेनेओ के उपाध्यक्ष वोल्फांगो पिक्कोली ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "राष्ट्रपति पद के अधिकतम कार्यकालों की सीमा को खत्म करने और न्यायिक स्वतंत्रता के बचे हुए पक्षों को हटाने के मद्देनजर एर्दोवान के नया संविधान लाने या संवैधानिक संशोधन करने के लक्ष्य के लिए भी यह चुनावी परीक्षा बहुत महत्वपूर्ण है."

100 साल में कहां से कहां पहुंचा तुर्की

मतों की गिनती में चुनौतियों की आशंका

मतों की गिनती में गड़बड़ी ना हो और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए जा सकें, इसके लिए हजारों स्वयंसेवकों को निगरानी रखने का प्रशिक्षण दिया गया है. ज्यादातर स्वयंसेवकों की नियुक्ति स्वतंत्र समूह करते हैं. वोट और बियॉन्ड जैसे कुछ समूह करीब एक दशक से चुनावों की निगरानी करते आ रहे हैं.

हर स्वयंसेवक को किसी एक पार्टी के हितों की देखरेख का जिम्मा सौंपा जाता है, लेकिन अक्सर ही ये स्वयंसेवक पार्टी के सदस्य नहीं होते. 62 साल की रिटायर हो चुकीं टीचर तूफान कलिस्कान ऐसी ही एक स्वयंसेवक हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एपी को बताया कि चुनाव निष्पक्ष और सुरक्षित तरीके से हों, यह सुनिश्चित करने की दिशा में वह वॉलंटियर कर रही हैं. उन्होंने कहा, "मैं लोकतांत्रिक प्रक्रिया में योगदान देना चाहती हूं."

माना जा रहा है कि इस्तांबुल और अन्य बड़े शहरों में चुनावी मुकाबला करीबी रहेगा. ऐसे में कई पर्यवेक्षकों ने आशंका जताई है कि कुछ पार्टियों नतीजों से छेड़छाड़ की कोशिश कर सकती हैं और हारने वाले दल चुनावी गड़बड़ी के आरोप लगाकर नतीजों के प्रति संदेह पैदा कर सकते हैं.

बेर्क एसेन, इस्तांबुल की सबांजे यूनिवर्सिटी में असोसिएट प्रोफेसर हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एपी से बातचीत में आशंका जताई, "हर एक वोट की गिनती अहम होने वाली है. मतों को गिनने की प्रक्रिया में कई चुनौतियां आएंगी, खासकर इस्तांबुल में एकेपी के मजबूत इलाकों में. अगर सीएचपी के पास पर्याप्त संख्या में वॉलंटीयर्स नहीं हुए, तो कई सारी दिक्कतें देखनी पड़ सकती हैं."