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राजनीतिश्रीलंका

कौन समझे श्रीलंकाई युवाओं का दर्द

सुष्मिता रामाकृष्णन
७ जून २०२२

आर्थिक संकट के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे श्रीलंका में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं तो वहीं इसने देश में जातीय और धार्मिक सीमाओं के पार लोगों में एकता को बढ़ावा देना का भी काम किया है.

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तस्वीर: Ishara S. Kadikara/AFP/Getty Images

हाल के दशकों में श्रीलंका में जातीय और धार्मिक आधार पर हिंसा की घटनाएं आम हो चली थीं लेकिन पिछले कुछ हफ्तों में हुए विरोध प्रदर्शनों में वहां बहुत कुछ नया हुआ है. ये विरोध प्रदर्शन सरकार के उस आर्थिक कुप्रबंधन के खिलाफ हो रहे हैं जिसकी वजह से देश को अब तक के सबसे बड़े आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा है.

विरोध प्रदर्शनों की वजह से देश के युवा अपने पारंपरिक राजनीतिक विरोध को छोड़कर एक साथ सड़कों पर उतरे हैं और लंबे समय से जातीय और धार्मिक आधार पर विभाजित लोगों के बीच जबर्दस्त एकता देखने को मिल रही है. श्रीलंका में कुछ युवा प्रदर्शनकारियों ने डीडब्ल्यू को बताया कि वे पारंपरिक राजनीति से ऊब चुके हैं जिसने राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को जातीय और धार्मिक खांचे में बांट दिया.

लेखक और वकील राजिता हेतियार्ची कहते हैं कि पहले शिक्षित मध्यम वर्ग के लोगों के लिए जातीय और धार्मिक आधार पर बनी नीतियां ही चुनावी मुद्दे हुआ करते थे, जबकि समाज के गरीब तबके के लिए आर्थिक स्थिति मुख्य मुद्दा हुआ करती थी. उनके मुताबिक, "मौजूदा विरोध प्रदर्शनों ने इन दोनों वर्गों को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया है. दोनों वर्ग अब इस बात को भली-भांति महसूस कर रहे हैं कि जातीय और धार्मिक आधार पर लोगों को बांटकर राजनीति में जमकर भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया गया.”

आर्थिक उथल-पुथल और राजनीतिक अशांति

भोजन, ईंधन और दवा जैसी मूलभूत वस्तुओं की भीषण कमी और बढ़ती मुद्रा स्फीति के बीच पिछले कुछ महीनों से सरकार के खिलाफ लगातार हो रहे प्रदर्शनों की वजह से श्रीलंका में अशांति बनी हुई है. सरकार गंभीर भुगतान संकट से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है.

देश की आर्थिक स्थिति को तबाह करने में कई चीजों का योगदान रहा जिनमें कोविड-19 महामारी भी शामिल है जिसकी वजह से पर्यटन उद्योग और विदेशी कर्मचारियों का धन तबाह हो गया. राष्ट्रपति गोटाबाया राजबक्षे द्वारा कम समय में करों में कटौती की वजह से सरकारी खजाने को खत्म करना और तेल कीमतों में बढ़ोत्तरी भी इसके पीछे बड़े कारण रहे.

विरोध प्रदर्शनों में ज्यादातर युवा हिस्सा ले रहे हैं और इन लोगों ने सोशल मीडिया पर "गोटा घर जाओ” के संदेश के साथ बड़ा अभियान चला रखा है जो ट्विटर पर खूब ट्रेंड किया. दो हफ्ते पहले सरकार समर्थकों और सरकार विरोधियों के बीच कोलंबो में हुए हिंसक संघर्ष के बाद पूरे देश में अशांति छा गई. इन हिंसक झड़पों में नौ लोगों की मौत हो गई और करीब तीन सौ लोग घायल हो गए. हिंसा की वजह से ही श्रीलंका की बदहाल आर्थिक और राजनीतिक स्थिति ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया.

राष्ट्रपति के बड़े भाई महिंदा राजपक्षे ने इस हिंसा के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया जिसके बाद गोटाबाया ने रानिल विक्रमसिंघे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया. 73 वर्षीय विक्रमसिंघे वरिष्ठ राजनेता हैं और पांच बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की विक्रमसिंघे की तमाम कोशिशों के बावजूद स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है.

लोगों पर भारी आर्थिक और राजनीतिक संकट

कोलंबो में एक सिविल इंजीनिर नुजली हमीम कहते हैं कि वह खाने-पीने की चीजों पर पिछले साल की तुलना में 25 गुना ज्यादा खर्च कर रहे हैं. हमीम डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "मैं अकेले रहता हूं और खुद खाना बनाता हूं. मैं हर दिन 720 श्रीलंकाई रुपये यानी करीब 1.83 यूरो खाने पर खर्च कर रहा था लेकिन अब मैं हर दिन 2,000 रुपये खर्च कर रहा हूं.”

हमीम इस बात से डरे हुए हैं कि यदि अगले कुछ हफ्तों में स्थिति ठीक नहीं हुई तो उनके पास इतना पैसा भी नहीं रह जाएगा कि वो खाने-पीने वाली चीजें खरीद सकें. जैसे-जैसे कीमतें बढ़ रही हैं, उनकी नौकरी जाने की चिंता भी बढ़ती जा रही है.

हमीम बताते हैं, "मैं जिस कंपनी में काम करता हूं उसने कहा है कि अगले महीने से मेरी तनख्वाह आधी हो जाएगी. निर्माण परियोजनाओं में लगी कंपनियां भी इस समय संकट से जूझ रही हैं. सीमेंट की एक बोरी पहले 800 रुपये की मिलती थी, अब 6,000 रुपये की मिल रही है.”

Sri-Lanka I Premierminister Ranil Wickremesinghe
प्रधानमंत्री के तौर पर विक्रमासिंघे की तमाम कोशिशें अर्थव्यवस्था को पटरी पर नहीं रख पाईंतस्वीर: Eranga Jayawardena/AP Photo/picture alliance

एक टेक स्टार्ट अप कंपनी में जूनियर प्रोजेक्ट मैनेजर के तौर पर काम कर रहे माहीन (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि उन्हें इस बात का जरा भी भरोसा नहीं है कि आने वाले दिनों में उनकी नौकरी बनी रहेगी. डीडब्ल्यू से बातचीत में वह कहते हैं कि 21 मई को उन्हें अपनी कार में ईंधन भराने के लिए 21 घंटे तक लाइन में खड़े रहना पड़ा. इसके बावजूद उन्हें सिर्फ 15 लीटर पेट्रोल ही मिल पाया जबकि उनकी कार की टंकी 33 लीटर में फुल होती है. माहीन कहते हैं, "उबर टैक्सी बुक करने में एक घंटे से भी ज्यादा समय लगता है और इस समय कोई टुक-टुक ड्राइवर ढूंढ़ना तो लगभग असंभव है. उनमें से ज्यादातर ईंधन की इतनी ज्यादा कीमत की वजह से ही अपना धंधा छोड़ चुके हैं.”

पिछले कुछ हफ्तों में ऐसी खबरें भी आई हैं कि आर्थिक संकट के चलते तमाम युवा श्रीलंका से पलायन कर रहे हैं.

श्रीलंका में पर्यटन राजस्व का सबसे अहम स्रोत है लेकिन आर्थिक संकट के चलते पर्यटन उद्योग बुरी तरह से तबाह हो चुका है, बावजूद इसके श्रीलंका के लोकप्रिय मॉडल और ट्रेवेलर शेनेल रोड्रिगो जैसे कुछ युवा इस नेरेटिव को बदलने की कोशिश में लगे हैं. रोड्रिगो इस अभियान को गति देने में लगे हैं कि श्रीलंका एक सुरक्षित पर्यटन स्थल है. इस अभियान में लगे रोड्रिगो जैसे युवाओं को उम्मीद है कि इससे विदेशी पर्यटकों का आना बढ़ेगा और विदेशी मुद्रा की वजह से देश आर्थिक संकट से निबटने में कामयाब हो सकेगा.

राजनीतिक दलों से मोहभंग

हेतियार्ची कहते हैं कि श्रीलंका के तमाम नागरिकों का, खासकर युवाओं का राजनीतिक दलों से मोहभंग होता जा रहा है. न सिर्फ सत्तारूढ़ दल बल्कि विपक्षी पार्टियों से भी मोहभंग हो रहा है. वो कहते हैं, "न तो सरकार ने और न ही विपक्ष ने ऐसी कोई ठोस आर्थिक योजना पेश की है जिस पर हम लोग भरोसा कर सकें. यहां तक कि छोटी पार्टियां भी सरकार की आलोचना तो खूब कर रही हैं लेकिन उनके पास भी समस्या के हल की कोई योजना नहीं है.”

हेतियार्ची कहते हैं कि लगातार हो रहे विरोध प्रदर्शनों की वजह से श्रीलंकाई नागरिक जाति और धर्म की सीमाओं को तोड़कर एकता के सूत्र में बंधे हैं और सभी ने मिलकर राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे सरकार पर दबाव बनाया. एक प्रदर्शन स्थल पर उन्होंने कहा, "एक लड़की ने हिजाब पहनकर सिंहला और तमिल दोनों भाषाओं में एकता पर जोर देते हुए बेहतरीन भाषण दिया. मुस्लिम युवक उसके भाषण पर ताली बजा रहे थे और वीडियो बना रहे थे. यह एक जबर्दस्त मौका था और लोगों में एकता स्थापित करने में काफी मददगार साबित हुआ.”

मदद की तत्काल जरूरत

हेतियार्ची को लगता है कि जब तक अर्थव्यवस्था पटरी पर नहीं लौट आती और जरूरी राजनीतिक सुधार नहीं हो जाते, तब तक विरोध प्रदर्शन खत्म नहीं होंगे. राजनीतिक सुधारों की बात करें तो इसका मतलब है कि राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों को कम किया जाए.

हाल ही में विश्व बैंक ने कहा कि जब तक श्रीलंका एक ठोस आर्थिक नीति का ढांचा तैयार करके नहीं देता, तब तक उसे किसी तरह के वित्तीय मदद देने की उसकी कोई योजना नहीं है. श्रीलंका सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लगातार बातचीत कर रही है. आईएमएफ की मैनेजिंग डायरेक्टर क्रिस्टालिना जॉर्जिवा ने हाल ही में कहा था कि आईएमएफ श्रीलंका में तकनीकी स्तर पर लगातार काम कर रहा था.

हेतियार्ची कहते हैं कि यदि श्रीलंका आईएमएफ के साथ कोई सौदा करने में कामयाब भी हो जाता है तो भी उसे अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने में कुछ महीने लग जाएंगे. हेतियार्ची इस बात पर जोर देते हैं कि सरकार को ठोस रणनीति के साथ आगे आना होगा ताकि दो साल बाद होने वाले चुनाव तक उनकी चुनावी संभावनाओं में कुछ सुधार हो सके.

वह कहते हैं, "यह समय किसी नई पार्टी के गठन के लिए भी उपयुक्त होगा.”