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असम: बाढ़ के कारण हर साल विस्थापन का दर्द झेलते लोग

२३ मई २०२४

ब्रह्मपुत्र नदी में जब बाढ़ आती है तो द्वीपों पर रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ता है. इस बार लोकसभा चुनाव में जनता नेताओं से बाढ़ की समस्या का समाधान करने की मांग कर रही है.

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जलवायु परिवर्तन के कारण असम में बढ़ रही बाढ़ की समस्या (फाइल तस्वीर)
जलवायु परिवर्तन के कारण असम में बढ़ रही बाढ़ की समस्या (फाइल तस्वीर)तस्वीर: David Talukdar/ZUMA Press/picture alliance

याद अली को इस साल फिर बारिश के मौसम के आने का डर सता रहा है. पेशे से किसान 56 साल के याद अली अपनी पत्नी और बेटे साथ ब्रह्मपुत्र नदी के बीच स्थित संदाहखैती द्वीप पर रहते हैं.

नदी पर मौजूद अन्य द्वीपों की तरह इस द्वीप में भी बाढ़ आ जाती है, मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल क्षेत्र में भारी बारिश होती है और हर बार बाढ़ अधिक क्रूर होती जा रही है.

बाढ़ के कारण लोगों को विस्थापन झेलना पड़ता है (फाइल तस्वीर)
बाढ़ के कारण लोगों को विस्थापन झेलना पड़ता है (फाइल तस्वीर)तस्वीर: Dasarath Deka/ZUMA Press/picture alliance

हर साल जब बाढ़ आती है तो अली के परिवार को द्वीप से हटना पड़ता है और जब मौसम सूखा होता है तो उन्हें वापस आना होता है. अली कहते हैं कि क्षेत्र के नेताओं ने उन्हें राहत देने के वादे किए हैं, इस लोकसभा चुनाव में भी नेताओं ने वादे किए हैं. लेकिन उनके परिवार के लिए बहुत कम बदलाव हुआ है.

एक और बाढ़ का खतरा

फिलहाल वे साल के बड़े हिस्से में विस्थापित होने के खतरे से जूझ रहे हैं. अली ने कहा, "हमें किसी प्रकार के स्थायी समाधान की जरूरत है. पिछले कुछ सालों में बाढ़ से हुए नुकसान से उबरने में अब कुछ ही समय बचा है. हमें एक और बाढ़ का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा."

उन्होंने कहा राज्य के सुरक्षित क्षेत्र में जमीन का एक स्थायी टुकड़ा ही उनकी परेशानियों का एकमात्र समाधान हो सकता है. असम की सरकार ने इसको लेकर बात तो की है लेकिन द्वीप पर रहने वाले कुछ ही लोगों को ऐसे भूमि अधिकार की पेशकश की गई है.

जब पिछले साल एसोसिएटेड प्रेस ने अली और उनके परिवार से मुलाकात की थी तो लगातार बारिश के बाद आई बाढ़ के कारण उन्हें सुरक्षित क्षेत्र में भेजा जा रहा था. अभी बारिश नहीं हो रही है और इस दौरान अली और उनका परिवार लाल मिर्च, सब्जी और मक्का उगा रहे हैं.

द्वीप पर रहने वाले अन्य लोग भी खेती करते हैं और मोरीगांव जिले के करीब दो लाख चालीस हजार निवासी मछली पकड़ने और चावल, जूट और सब्जियां जैसी उपज बेचकर अपना गुजारा करते हैं.

अली की पत्नी मुन्नवरा बेगम कहती हैं, "जब बारिश होती है तो परिवार जब तक संभव हो अपनी छोटी सी झोपड़ी के अंदर घुटनों तक पानी में रहता है." कभी-कभी तो कई दिनों तक उन्हें इन्हीं हालात में रहना पड़ता है. लेकिन जब पानी का स्तर बढ़ जाता है तो उन्हें अपना सामान लेकर भागने पर मजबूर होना पड़ता है.

रिलीफ कैंप में जिंदगी

अली ने कहा रिलीफ कैंप अस्वच्छ होते हैं और वहां कभी भी पर्याप्त जगह या भोजन नहीं होता है. उन्होंने कहा, "कभी-कभी हमें कई दिनों तक सिर्फ चावल और नमक मिलता है." जब बारिश का मौसम नहीं होता है तो परिवार वापस उसी द्वीप पर लौट जाता है और खेती कर फसल को बेचकर गुजारा करता है.

दिल्ली स्थित थिंक टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक अधिक तीव्र बारिश और बाढ़ के कारण भारत और विशेष रूप से असम को जलवायु परिवर्तन के प्रति दुनिया के सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक के रूप में देखा जाता है.

अली कहते हैं, "किसी को हमारी समस्याओं की परवाह नहीं है. सभी राजनीतिक दल बाढ़ की समस्या का समाधान करने का वादा करते हैं लेकिन चुनाव के बाद किसी को इसकी परवाह नहीं होती."

एए/वीके (एपी)