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अपराधभारत

जामताड़ा वेब सीरीज वाले पांच साइबर अपराधियों को सजा

मनीष कुमार
२७ जुलाई २०२४

झारखंड की एक अदालत ने जामताड़ा साइबर अपराध मॉड्यूल से जुड़े पांच लोगों को पांच साल जेल की सजा सुनाई है. इनमें गिरोह का सरगना प्रदीप मंडल भी शामिल है. कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि अपराध की गंभीरता के आगे यह सजा काफी नहीं.

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हुडी लगाकर लैपटॉप पर काम कर रहा एक आदमी. सांकेतिक तस्वीर.
जामताड़ा ठगी मॉड्यूल के सरगना प्रदीप मंडल ने तो बैंक कर्मचारी बनकर केवाईसी अपडेट करने या अकाउंट की समस्या को लेकर अपराध शुरू किया था. अब तो मामला बिजली कनेक्शन काटने, सेक्सटॉर्शन और डिजिटल अरेस्ट होते हुए वाहनों के फर्जी जुर्माने व गेमिंग ऐप के जरिए ठगी तक पहुंच गया है.तस्वीर: Tim Goode/empics/picture alliance

साइबर क्राइम और इससे जुड़े अपराधियों पर बनी नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज 'जामताड़ा: सबका नंबर आएगा' एक बार फिर चर्चा में है. जिन पांच साइबर ठगों पर यह सीरीज बनी थी, उन्हें झारखंड की एक अदालत ने पांच-पांच साल के कारावास की सजा सुनाई है. इसके अलावा कोर्ट ने पांचों पर ढाई-ढाई लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है.

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इस वेब सीरीज के केंद्र में रहा प्रदीप मंडल झारखंड के नारायणपुर थाना क्षेत्र में अपने छोटे से गांव मिरगा में बैठकर लोगों के बैंक खाते से पैसे उड़ा लेता था. इस खेल में उसका पूरा परिवार शामिल था.

देखते-देखते नजदीकी गांवों के कई युवा अपराध के इस मैदान में उतर आए. शायद ही देश के किसी जिले की पुलिस ने यहां दबिश ना दी हो.

लैपटॉप के कीबोर्ड पर काम कर रही एक महिला. सांकेतिक तस्वीर.
भारत में साइबर क्राइम से जुड़े मामलों में फिलहाल अधिकतम सात साल तक की सजा का ही प्रावधान है. जानकार इसमें बदलाव कर सख्त प्रावधान लाने की जरूरत पर जोर देते हैं. तस्वीर: Dominic Lipinski/PA/dpa/picture alliance

ईडी ने दर्ज किया था मनी लॉन्ड्रिंग का मामला

अगस्त 2018 में ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) ने पहली बार इन्हीं पांच साइबर ठगों गणेश मंडल, उसके पुत्र प्रदीप कुमार मंडल एवं संतोष मंडल व संतोष के बेटे पिंटू मंडल के अलावा अंकुश कुमार मंडल के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज किया था.

सभी ठगों के ऊपर फर्जी पते पर सिम कार्ड लेने तथा बैंक अधिकारी बनकर विभिन्न तरीके से साइबर अपराध करने का आरोप था. जांच के बाद 2019 में सभी के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई. ईडी ने जब इनके बैंक खातों की जांच की, तो अधिकारियों के होश उड़ गए. दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र समेत कई अन्य राज्यों में पैसे रखे हुए थे.

इन लोगों ने ठगी की राशि को इधर-उधर करने के लिए 33 ई-वॉलेटों का उपयोग किया था. इनमें से कई को बाद में गृह मंत्रालय ने ब्लैक लिस्ट कर दिया. इस मामले में ईडी द्वारा 85 लाख रुपये की चल-अचल संपत्ति जब्त की गई है.

जांच के दौरान पांचों अपराधी ईडी को कमाई का कोई वैध स्रोत नहीं बता सके. ईडी ने इस मामले में 24 गवाहों को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया. 23 जुलाई को रांची स्थित प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (पीएमएलए) की एक अदालत ने पांचों साइबर ठगों को सजा सुनाई. अंकुश मंडल के अलावा अन्य चारों जमानत पर थे.

साइबर क्राइम के लिए कुख्यात रहे झारखंड के जामताड़ा में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए दो अपराधी.
नेटफ्लिक्स पर आई जामताड़ा वेब सीरीज के केंद्र में रहा प्रदीप मंडल झारखंड के नारायणपुर थाना क्षेत्र में अपने छोटे से गांव मिरगा में बैठकर लोगों के बैंक खाते से पैसे उड़ा लेता था. इस खेल में उसका पूरा परिवार शामिल था. अदालत ने प्रदीप मंडल समेत इस गिरोह के पांच सदस्यों को सजा सुनाई है. तस्वीर: Manish Kumar/DW

सख्त सजा का प्रावधान नहीं

प्रदीप मंडल और उसके साथियों को सजा तो मिली है, लेकिन यह बहस भी तेज हो गई है कि लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ाने वाले इन अपराधियों के लिए क्या इतनी सजा पर्याप्त है. वह भी तब, जब विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हो रही प्रगति के बीच साइबर अपराधी भी ठगी के नए-नए तरीके तलाश कर रहे हैं.

साइबर क्राइम से जुड़े मामलों में फिलहाल अधिकतम सात साल तक की सजा का ही प्रावधान है. अधिवक्ता राजेश के. सिंह कहते हैं, "साइबर अपराधियों के लिए कानून में सख्त सजा का प्रावधान नहीं है. जिस मामले की चर्चा हो रही, उसमें ही चार जमानत पर थे, एक किसी अन्य मामले में देवघर जेल में है. मुजरिम को इन मामलों में जमानत मिल जाती है, इसलिए उनमें खौफ नहीं रहता है. निरक्षर से लेकर पढ़े-लिखे लोग भी इस अपराध में संलिप्त हो रहे हैं."

यूट्यूब वीडियो लाइक के नाम पर ठगे जा रहे लोग

राजेश सिंह कहते हैं जैसे ही अपराधी जमानत पर बाहर आता है, वह साक्ष्यों को मिटाने या कमजोर करने लगता है. इससे पुलिस की राह कठिन हो जाती है. ऐसे में जरूरी है कि कानून में सख्त सजा का प्रावधान किया जाए.

वहीं, हाईकोर्ट के अधिवक्ता संजीव कहते हैं, "इस तरह के अपराध कंपाउंड क्राइम की श्रेणी में आते हैं. ऐसा अपराध, जिसमें शिकायतकर्ता और अपराधी समझौता कर सकते हैं. फिर पैसा वापसी का भरोसा नहीं होने के कारण पीड़ित कोर्ट में पेश नहीं होता है. इससे आरोपी को जमानत मिलने की संभावना बढ़ जाती है. फिर, किसी भी वजह से 90 दिनों के अंदर चार्जशीट पेश नहीं किए जाने का फायदा भी उन्हें मिल जाता है. स्थिति को देखते हुए कड़े कानूनी प्रावधान की जरूरत तो है ही."

झारखंड के जामताड़ा जिले के एक गांव में पक्का घर. ठगी के इस कुख्यात मॉडल से इलाके के कई युवाओं ने काफी पैसा बनाया.
पुलिस अधिकारियों के अनुसार, फ्रॉड के बाद जितनी जल्दी हो सके नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल या हेल्पलाइन नंबर 1930 पर सूचना देनी चाहिए. शिकायत करने में तेजी दिखाने पर ठगी की राशि को होल्ड कराने की संभावना बढ़ जाती है.तस्वीर: Manish Kumar/DW

आसानी से नहीं आते गिरफ्त में

ऐसे मामलों में कार्रवाई करते हुए भारत में पुलिस महकमे के आगे कैसी चुनौतियां आती हैं, इसपर बात करते हुए एक पुलिस अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया, "जब केस दर्ज होता है तो यह पता नहीं होता कि अपराधी कौन है और कहां है. अगर उसे ट्रेस कर भी लिया जाता है तो वहां पहुंचना और गिरफ्त में लेना कम कठिन नहीं है. कई बार तो हमारे पहुंचने के पहले अपराधी को मुखबिर सूचित कर देता है."

यह पुलिस अधिकारी आगे बताते हैं, "स्थानीय पुलिस का सहयोग रहा और अगर दो-तीन बार छापा मारने पर वह पकड़ में आ भी गया, तो उसे लाने में काफी समस्या होती है. कई बार पूछताछ में भी भाषाई समस्या होती है. फिर इतना वर्क फोर्स होना चाहिए, जिससे तेजी से किसी मामले में जांच-पड़ताल हो सके. वह है नहीं. विलंब होता है, तो कोर्ट में भी परेशानी का सामना करना पड़ता है."

साइबर विशेषज्ञ प्रतीक शुक्ला कहते हैं, "साइबर क्राइम का स्तर इतना व्यापक है और इसके इतने कारक हैं कि आसानी से इसपर काबू नहीं पाया जा सकता है. फर्जी सिम और बैंक खातों का जाल फैला हुआ है. डेटा लीक वैसे ही एक बड़ी समस्या है. अगर कोई विदेश से फ्रॉड कर रहा है, तो उसका डिजिटल फुटप्रिंट आसानी से नहीं मिल पाता है, तब तक पैसा बाहर चला जाता है. जब हर चीज फोन पर है, तो हर पल सतर्क-सजग रहना ही होगा."

एक युवा महिला कंप्यूटर पर कोडिंग करती हुई. इंटरनेट और नेटवर्क सुरक्षा से जुड़ी सांकेतिक तस्वीर.
रांची की अदालत ने अभी जिन पांच दोषियों को सजा सुनाई, उनपर फर्जी पते पर सिम कार्ड लेने तथा बैंक कर्मचारी बनकर विभिन्न तरीके से साइबर अपराध करने का आरोप था. जांच के बाद 2019 में सभी के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई और मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मुकदमा चला. तस्वीर: Przemek Klos/Zoonar/picture alliance

रोज-रोज बदल रहा है मॉड्यूल

प्रदीप मंडल ने तो बैंक अधिकारी बनकर केवाईसी अपडेट करने या अकाउंट की समस्या को लेकर अपने खेल की शुरुआत की थी. अब तो मामला बिजली कनेक्शन काटने, सेक्सटॉर्शन और डिजिटल अरेस्ट होते हुए वाहनों के फर्जी जुर्माने व गेमिंग ऐप के जरिए ठगी तक पहुंच गया है.

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ठगी के रोज बदलते मॉड्यूल में उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मुंबई, पंजाब और दिल्ली समेत कई राज्यों में हजारों लोगों से उन महिलाओं को गर्भवती करने के नाम पर फ्रॉड किया गया, जिन्हें बच्चा नहीं हो रहा था. 'ऑल इंडिया प्रेग्नेंट जॉब बर्थ सर्विस' के नाम से लोगों को फोन से ट्रैप कर ठगा गया.

डिजिटल अरेस्ट का पहला मामला उत्तर प्रदेश के नोएडा में सामने आया, जिसमें एक व्यक्ति को मनगढ़ंत मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में फंसाया गया था. इस तरह की ठगी में अपराधी, पुलिस की वर्दी में वॉट्सऐप या वीडियो कॉल कर नकली पुलिस स्टेशन या सरकारी कार्यालय दिखाकर गिरफ्तारी का भय दिखाते हैं. एक कमरे में कैमरे के सामने रखकर पीड़ित की निगरानी करते हैं. ऐप डाउनलोड करवा कर डिजिटल फॉर्म भरवाते हैं और फिर पैसे ट्रांसफर करवाते हैं. नोएडा प्रकरण में सीबीआई अधिकारी बनकर 11 लाख रुपये की ठगी की गई थी.

झारखंड के जामताड़ा जिले के एक गांव में तलाशी के लिए पहुंची पुलिस की एक टीम, एक घर के सामने पुलिस की गाड़ी खड़ी है.
जामताड़ा के फोन पर गुमराह कर लोगों को ठगने के तरीके ने बड़ी संख्या में लोगों को अपना शिकार बनाया. इसके बाद बैंक, सरकार और पुलिस-प्रशासन की ओर से बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया गया. अब तेजी से साइबर अपराध और ठगी के नए-नए तरीके सामने आ रहे हैं. इनके खिलाफ भी बड़े स्तर पर लोगों को जागरूक किए जाने की जरूरत है. तस्वीर: Manish Kumar/DW

पटना के चिकित्सक राहुल कुमार अपने साथ हुए ऐसे ही एक अपराध की आपबीती बताते हैं, "मुझे खुद पर हैरानी हुई कि मैं कैसे ठगा गया. जिस तरह उन लोगों ने पुलिस अधिकारी होने का भरोसा दिलाया और जितनी जल्दी फर्जी कागजात मेरे वॉट्सऐप पर भेजे कि मैं उनके झांसे में फंसता चला गया और डेढ़ लाख रुपये गंवा बैठा. एक चूक ही काफी भारी पड़ जाती है."

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनआईए ने बीते 27 मई को बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के हिंगुलाहार गांव के एक निवासी नबी आलम को पकड़ा. वह अच्छी नौकरी के नाम पर लोगों को विदेश भेज रहा था. इस संबंध में इसी जिले के नरकटियागंज से सैफुल्लाह नाम के व्यक्ति ने एनआईए से ऑनलाइन शिकायत की थी.

कंबोडिया में फंसे हजारों भारतीयों को वापस लाने की कोशिश

सैफुल्लाह ने हैरान करने वाली जानकारी दी. उन्होंने बताया कि लाखों रुपये लेकर नबी ने उन्हें कंबोडिया भेजा, जहां चीनी कंपनी में डेटा एंट्री के नाम पर साइबर फ्रॉड की ट्रेनिंग दी गई. उसके बाद हर दिन 150 भारतीयों को कॉल कर फंसाने का टारगेट दिया जाता था. दो महीने काम करने के बाद सैफुल्लाह किसी तरह से भागने में सफल हुए. एजेंसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंबोडिया में नौकरी के नाम पर साइबर अपराध के जाल में फंसाए गए 14 लोगों को बचाया गया है.

साइबर क्राइम का गढ़ बना मेवात

बिहार पुलिस ने वापस कराए ठगी के 1.20 करोड़

बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) ने केवल जून महीने में साइबर फ्रॉड की 8.65 करोड़ की राशि होल्ड कराई है. वहीं, मई में करीब सवा करोड़ की रकम पीड़ितों के खाते में वापस करवाए गए हैं.

ईओयू के अधिकारियों के अनुसार, फ्रॉड के बाद जितनी जल्दी नेशनल साइबर क्राइम पोर्टल या हेल्पलाइन नंबर 1930 पर सूचना दी जाएगी, उतनी जल्दी ठगी की राशि को होल्ड कराने की संभावना बढ़ जाती है. अभी राज्य के 38 जिलों में 44 साइबर थाने काम कर रहे हैं.

पत्रकार अमित पांडेय कहते हैं, "जितनी तेजी से साइबर क्राइम अपने पांव पसार रहा है और पढ़े-लिखे लोग इस अपराध को अंजाम देने में आगे आ रहे, वह चिंताजनक है. स्कूलों में हो रही कंप्यूटर की पढ़ाई की तरह साइबर क्राइम और इससे निपटने के तरीके के बारे में भी पढ़ाया जाना चाहिए. इंटरनेट ने दूरियां तो मिटा दीं, लेकिन इसके साथ डेंजर जोन का दायरा भी बढ़ा दिया है."