क्यों अलग हैं जर्मनी में बढ़ रहे नए इमाम
२३ जनवरी २०२४ओस्मान सोयर धार्मिक मामलों से जुड़े अधिकारी हैं. इसी महीने उन्होंने बर्लिन के नॉयकोल्न इलाके की सेहितलिक मस्जिद में पद की शपथ ली.
सोयर उन 28 युवाओं में हैं, जिन्हें जर्मनी के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन इंस्टिट्यूट ऑफ रिलीजन (डीआईटीआईबी) ने "धार्मिक प्रतिनिधि" बनने का प्रशिक्षण दिया है. ये युवा इमाम समेत कई तरह की धार्मिक भूमिकाएं निभाएंगे.
पश्चिमी जर्मनी के बॉन शहर के नजदीक आल्फटर नाम की जगह है. पिछले कुछ महीने से सोयर यहीं पर बतौर इस्लामिक धार्मिक प्रतिनिधि काम कर रहे हैं.
वह बताते हैं कि समुदाय के लोगों तक पहुंचना उनकी सबसे बड़ी वरीयता है. अपनी जिम्मेदारियों के बारे में सोयर बताते हैं, "मैं छात्रों को पढ़ाता हूं. नमाज का नेतृत्व करता हूं. धर्म उपदेशक और इमाम हूं. हम शादियों में भी जाते हैं. मैं अंत्येष्टि भी कराता हूं."
सोयर के माता-पिता 1972 में तुर्की से जर्मनी आए थे. उनके पिता माइंस शहर के नजदीक एक कार बनाने के कारखाने में काम करते थे. उस वक्त के कई प्रवासियों के लिए यह आम जिंदगी थी.
बर्लिन में पद की शपथ लेने से जुड़ा कार्यक्रम इस अतीत को दिखाता है. तुर्की-इस्लामिक यूनियन में करीब 900 मस्जिद समितियां हैं. यह डीआईटीआईबी का हिस्सा है. अनुमान है कि पूरे जर्मनी में करीब 3,000 मस्जिदें और मुसलमानों के प्रार्थना गृह हैं.
लंबे वक्त तक तुर्की-इस्लामिक यूनियन को दिआनेट तुर्किश स्टेट रिलीजियस अथॉरिटी से ही फंड मिलता था. यूनियन के इमाम तुर्की से जर्मनी भेजे जाते थे. वो तुर्की भाषा में ही धर्म उपदेश देते थे. दिआनेट, धार्मिक मामलों से जुड़ा तुर्की सरकार का विभाग है.
सामाजिक एकजुटता बनाना
एयूब कालयॉन, डीआईटीआईबी के महासचिव हैं. उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रम को बेहद अहम बताते हुए डीडब्ल्यू से कहा कि उनका संगठन जर्मनी में रह रहे मुसलमानों की जरूरतों पर काम करता है. धार्मिक समुदाय के तौर पर वह व्यक्तिगत और वित्तीय, दोनों तरह का समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है. सााथ ही, संगठन ने जर्मनी में इमामों के प्रशिक्षण में "सामाजिक एकजुटता" के नजरिये को भी शामिल किया है.
कालयॉन बताते हैं कि भविष्य में जर्मन भाषा "तस्वीर का ज्यादा बड़ा हिस्सा होगी." वह कहते हैं, "यह ऐसी भाषा होगी, जो हमें आपस में जोड़ेगी. खासतौर पर मुसलमान समाज को साथ लाएगी. इसीलिए हमारे प्रशिक्षण की भाषा भी जर्मन है." कालयॉन यह भी जोड़ते हैं कि तुर्की भाषा में सेवा बरकरार रखना समुदाय के बुजुर्गों के लिहाज से जरूरी होगा.
इमामों को जर्मनी में ही प्रशिक्षित किया जाना लंबे समय से यहां एकीकरण और धार्मिक नीति से जुड़ी बहसों का हिस्सा रहा है. 2006 में गठित जर्मन इस्लामिक कॉन्फ्रेंस (डीआईके) भी इमामों के जर्मन भाषा को अच्छी तरह ना जानने-समझने का मुद्दा रेखांकित करता रहा है. काफी अरसे तक केवल अहमदिया समुदाय ही जर्मनी में इमामों को प्रशिक्षित करने का इकलौता कार्यक्रम चलाता रहा. साल 2020 में डीआईटीआईबी ने पश्चिमी जर्मनी के सुदूर आइफेल इलाके के डालेम में युवाओं के एक पुराने हॉस्टल को प्रशिक्षण केंद्र में बदला.
फिर 2021 में ओस्नाब्रूक यूनिवर्सिटी के इस्लामिक विशेषज्ञों और बोस्नियन मूल से ताल्लुक रखने वाले जर्मन मुसलमानों ने मिलकर इस्लामिक कॉलेज ऑफ जर्मनी (आईकेडी) बनाया. जर्मनी के तत्कालीन आंतरिक मामलों के मंत्री हॉर्स्ट जेहोफर ने तब आईकेडी की स्थापना को जर्मनी के मुसलमानों के लिए अच्छी खबर बताते हुए कहा था कि यह "जर्मनी में रह रहे मुसलमानों के जीवन की सच्चाई" को मिली स्वीकृति है.
आंतरिक मंत्रालय का जोर
डीआईटीआईबी और ओस्नाब्रूक का इस्लामिक कॉलेज, दोनों से ही अब तक कई दर्जन ग्रैजुएट पढ़ाई पूरी कर बाहर निकले हैं. दोनों ही संस्थानों से पढ़े इमाम देशभर में कई जगहों पर प्रार्थनाओं का नेतृत्व करते हैं और शुक्रवार की नमाज की भी अगुवाई करते हैं. फिर दिसंबर 2023 में आंतरिक मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जो कई लोगों के लिए हैरान करने वाला था.
केंद्रीय आंतरिक मामलों की मंत्री नैंसी फेजर ने कहा कि दिआनेट और डीआईटीआईबी से हुई लंबी बातचीत के बाद मंत्रालय इस बात के लिए सहमत हुआ है कि अब तुर्की की सरकार द्वारा प्रायोजित धार्मिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति को धीरे-धीरे कम किया जाएगा. फेजर ने कहा, "जर्मनी में मुसलमान समुदायों की भागीदारी और एकजुटता की दिशा में यह बड़ा पड़ाव है." बताया गया कि जर्मनी में हर साल 100 इमामों को प्रशिक्षित किया जाएगा.
इस मामले में जर्मनी, फ्रांस की राह पर चल रहा है. इस साल की शुरुआत से ही फ्रांस बाहर से प्रशिक्षित होकर आए किसी नए इमाम को काम करने की अनुमति नहीं दे रहा है. इसकी जगह, फ्रांस के विश्वविद्यालयों में ही इमामों का प्रशिक्षण होगा. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने साल 2020 में इस बदलाव की शुरुआत की थी. इस पर अमल 2024 से शुरू हुआ है. अब तक ज्यादातर मोरक्को, ट्यूनीशिया और अल्जीरिया से ही इमाम फ्रांस आते थे.
ओस्मान सोयर और एयूप कालयॉन, दोनों जर्मनी में इमामों की नई पीढ़ी का हिस्सा हैं. कई सालों की बहस और देरी के बाद अब जर्मनी में मुसलमान धार्मिक अधिकारियों का प्रशिक्षण बदल रहा है.
लेकिन अब भी कई सवाल हैं. इस सवाल का जवाब अभी भी नहीं मिला है कि तुर्की की मदद के बिना डीआईटीआईबी के इमामों को फंड कहां से मिलेगा. हालांकि योजना के अगले चरणों पर अब धीमे-धीमे बहस तेज हो रही है.