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मानवाधिकारहांगकांग

हांगकांग: सिक्यॉरिटी लॉ के सबसे बड़े मुकदमे पर दुनिया की नजर

७ फ़रवरी २०२३

हांगकांग के जाने-माने लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं पर नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के अंतर्गत मुकदमा शुरू हुआ है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह मुकदमा हांगकांग की न्यायिक स्वतंत्रता का लिटमस टेस्ट है.

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लीग ऑफ सोशल डेमोक्रैट्स के सदस्यों ने ट्रायल शुरू होने के पहले अदालत के बाहर प्रदर्शन किया. यह मुकदमा नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत अब तक का सबसे बड़ा ट्रायल है. हांगकांग के कई सबसे जाने-माने लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट्स पर केस चल रहा है.
लीग ऑफ सोशल डेमोक्रैट्स के सदस्यों ने ट्रायल शुरू होने के पहले अदालत के बाहर प्रदर्शन किया. यह मुकदमा नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत अब तक का सबसे बड़ा ट्रायल है. हांगकांग के कई सबसे जाने-माने लोकतंत्र समर्थक एक्टिविस्ट्स पर केस चल रहा है. तस्वीर: Anthony Kwan/AP Photo/picture alliance

हांगकांग के जाने-माने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ चल रही सुनवाई पर दुनियाभर की नजर है. नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत हो रहा अबतक का सबसे बड़ा मुकदमा है. अगर ये कार्यकर्ता दोषी पाए जाते हैं, तो उन्हें उम्रकैद की सजा हो सकती है. इन कार्यकर्ताओं में मशहूर एक्टिविस्ट जोशुआ वांग भी शामिल हैं.

6 फरवरी को शुरु हुए इस मुकदमे का घटनाक्रम 2019-2020 के आंदोलन से जुड़ा है. जुलाई 2020 में लोकतंत्र समर्थक धड़े ने एक अनौपचारिक प्राइमरी का आयोजन किया था. इसका मकसद था, लोकतंत्र समर्थक मजबूत उम्मीदवारों को चुनना, जिनकी लेजिस्लेटिव काउंसिल के चुनाव में जीतने की ज्यादा संभावना हो. ताकि लोकतंत्र के पक्षधरों को काउंसिल में बढ़त मिल सके.

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने की आलोचना

इसमें शामिल कई लोगों को जनवरी 2021 में गिरफ्तार कर लिया गया था. अरेस्ट किए गए लोगों में से 47 पर नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत सत्ता पलट की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाया गया था. इन्हें "हांगकांग 47" कहा जाता है.

47 में से 16 आरोपियों ने खुद को दोषी नहीं माना है. अभी शुरू हुई अदालती कार्रवाई इन्हीं पर केंद्रित है. बाकी 29 एक्टिविस्ट जिन्होंने अपने ऊपर लगाए गए आरोपों को स्वीकार कर लिया है, उन्हें इस मुकदमे के बाद सजा सुनाई जाएगी. यह मुकदमा 90 दिन तक चलने की उम्मीद है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसकी आलोचना कर रहा है. मानवाधिकार संगठन आरोपियों को रिहा किए जाने की मांग कर रहे हैं.

यह तस्वीर लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता माइकल पांग की है. 6 फरवरी को नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत शुरू हुए ट्रायल में जिन लोगों पर मुकदमा चल रहा है, उनमें माइकल भी शामिल हैं.
यह तस्वीर लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता माइकल पांग की है. 6 फरवरी को नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के तहत शुरू हुए ट्रायल में जिन लोगों पर मुकदमा चल रहा है, उनमें माइकल भी शामिल हैं. तस्वीर: Anthony Kwan/AP Photo/picture alliance

हांगकांग का संक्षिप्त इतिहास

1839 से 1842 तक चले पहले अफीम युद्ध में ब्रिटेन के हाथों चीन की हार हुई. अगस्त 1842 में नानकिंग संधि के साथ युद्ध खत्म हुआ. संधि की शर्तों के मुताबिक ना केवल ब्रिटेन को चीन में मुक्त व्यापार का अधिकार मिला, बल्कि उसे हांगकांग द्वीप का नियंत्रण भी मिल गया. 1898 में चीन ने करीब 235 द्वीप 99 साल के लीज पर ब्रिटेन को दिए. लीज की अवधि 1 जुलाई, 1898 से शुरू हुई. इसे 99 साल बाद 1 जुलाई, 1997 को खत्म होना था.

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1941 में जापान ने हांगकांग पर कब्जा कर लिया. साम्राज्यवादी जापान की हार के बाद हांगकांग दोबारा ब्रिटेन के नियंत्रण में आ गया. यहां एक सरकार का गठन किया गया. आने वाले दशकों में हांगकांग बड़ा औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र बनकर उभरा.

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वन कंट्री, टू सिस्टम्स 

चूंकि द्वीप पर ब्रिटेन को मिले लीज की अवधि खत्म होने की ओर बढ़ रही थी, ऐसे में 1982 में ब्रिटेन और चीन के बीच हांगकांग के भविष्य को लेकर वार्ता शुरू हुई. 1984 में दोनों पक्षों ने एक साझे मसौदे पर दस्तखत किए. तय हुआ कि 1997 में हांगकांग वापस चीन को मिल जाएगा.

चीन ने हांगकांग को "विशेष प्रशासनिक क्षेत्र" का दर्जा दिया. इसके तहत चीन का हिस्सा होते हुए भी हांगकांग को अलग सिस्टम मिला. इस विशेष संबंध की पॉलिसी है- वन कंट्री, टू सिस्टम्स. यानी एक देश दो व्यवस्थाएं. इसी के तहत हांगकांग को काफी स्वायत्तता मिली. यहां का कानूनी सिस्टम अलग था. प्रेस की आजादी थी. नागरिकों के अपेक्षाकृत मजबूत अधिकार थे. उसे ये आजादी "बेसिक लॉ" नाम की एक संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत मिली. हालांकि इस कानून की मियाद केवल 50 साल है, जो 2047 में खत्म हो जाएगी.

लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता हेलेना वोंग पिक-वान मैजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर बढ़ते हुए. हेलेना भी उन एक्टिविस्ट्स में हैं, जिनपर मुकदमा चल रहा है. इस मुकदमे को चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा विरोध और आलोचना को कुचलने की कार्रवाई बताया जा रहा है.
लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता हेलेना वोंग पिक-वान मैजिस्ट्रेट कोर्ट की ओर बढ़ते हुए. हेलेना भी उन एक्टिविस्ट्स में हैं, जिनपर मुकदमा चल रहा है. इस मुकदमे को चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा विरोध और आलोचना को कुचलने की कार्रवाई बताया जा रहा है. तस्वीर: Anthony Kwan/AP Photo/picture alliance

हांगकांग के विरोध प्रदर्शन

1997 में चीन को दोबारा नियंत्रण मिलने के बाद हांगकांग में कई बार बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए. साल 2003 में नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ के खिलाफ लोग सड़कों पर आए. इसी तरह 2012 में भी छात्रों ने बड़ा आंदोलन किया. ये दोनों विरोध प्रदर्शन अपने मकसद में काफी हद तक सफल रहे थे. लेकिन 2014 में जब हांगकांग में लोग निष्पक्ष चुनाव की मांग में सड़कों पर उतरे, तब स्थितियां अलग थीं.

हांगकांग का प्रशासन एक लेजिस्लेटिव काउंसिल देखती है. लोगों का आरोप था कि इसका नियंत्रण चीन समर्थक समूहों के हाथ में है. इसी पृष्ठभूमि में 2014 में "अम्ब्रैला मूवमेंट" शुरू हुआ. लोग ज्यादा लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग कर रहे थे. उनका कहना था कि उन्हें निष्पक्ष लोकतांत्रिक तरीके से स्थानीय नेता चुनने की आजादी दी जाए.

प्रदर्शनकारी पुलिस द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पेपर स्प्रे और आंसू गैस से बचने के लिए छाता लेकर आने लगे. इसी वजह से इस आंदोलन को "अम्ब्रैला मूवमेंट" कहा जाने लगा. प्रशासन ने आंदोलनकारियों पर सख्ती दिखाई. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए. कई पर मुकदमे भी चले. कई जानकारों की राय है कि इसी समय से हांगकांग पर चीन का रुख कड़ा होता गया. 

2019-20 के विरोध प्रदर्शन

हांगकांग पर चीन के बढ़ते नियंत्रण के बीच अप्रैल 2019 में प्रशासन ने एक प्रत्यर्पण नीति का प्रस्ताव रखा. इसके तहत आपराधिक मामलों में आरोपियों को मुकदमा चलाने के लिए चीन ले जाया जा सकता था. आलोचकों का कहना था कि इससे ट्रायल की निष्पक्षता प्रभावित होगी. आलोचकों, विपक्षियों और पत्रकारों को निशाना बनाना आसान हो जाएगा. न्यायिक स्वतंत्रता कम होगी और चीन का दखल बढ़ेगा. जून 2019 में इस प्रस्तावित प्रत्यर्पण नीति के विरोध में बड़े स्तर पर प्रदर्शन शुरू हुए.

भारी विरोध के बीच सितंबर 2019 में प्रस्ताव वापस ले लिया गया, मगर आंदोलन जारी रहा. आंदोलनकारियों को डर था कि प्रस्तावित बिल वापस लाया जा सकता है. ऐसे में अब वो हांगकांग को पूरी तरह लोकतांत्रिक बनाने की मांग करने लगे. साथ ही, प्रदर्शनकारियों पर की गई पुलिस कार्रवाई की जांच भी बड़ा मुद्दा थी. प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की सख्ती बढ़ती गई. हिंसक झड़पों की नियमितता बढ़ गई.

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नवंबर 2014 की इस तस्वीर में एक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ता पीला छाता थामे पुलिस के आगे नारा लगा रहा है. तस्वीर: Jerome Favre/dpa/picture-alliance

जिला काउंसिल के चुनाव

इसी माहौल में नवंबर 2019 में स्थानीय जिला काउंसिल चुनाव हुए. इसमें लोकतंत्र समर्थकों को बड़ी जीत मिली. 18 में से 17 काउंसिल में उन्हें जीत मिली. राजनैतिक अधिकारों के लिहाज से जिला काउंसलर्स के पास बहुत ताकत नहीं थी. मगर उनकी अहम भूमिका चीफ एक्जिक्यूटिव के चुनाव से जुड़ी थी.

यह चुनाव सितंबर 2020 में होना था. चीफ एक्जिक्यूटिव को चुनने के लिए 1,200 सदस्यों की एक समिति वोट डालती है. इनमें जिला काउंसलर्स भी होते हैं. ऐसे में इन काउंसिलों के भीतर लोकतांत्रिक धड़े की बढ़त से चीफ एक्जिक्यूटिव, यानी हांगकांग के अगले लीडर के चुनाव पर भी असर पड़ने की उम्मीद थी.

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कब आया नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ?

साल 2020 में ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग सौंपे जाने की 23वीं सालगिरह थी. इससे ठीक पहले 30 जून, 2020 को रात के तकरीबन 11 बजे चीन ने हांगकांग में एक विशेष कानून लागू किया. इसे नेशनल सिक्यॉरिटी लॉ कहते हैं. इसके तहत कई विशेष कानून लागू किए गए. मसलन, विदेशी शक्तियों के साथ "मिलीभगत" साबित होने पर उम्रकैद का प्रावधान. सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना, आतंकवादी गतिविधि मानी जाएगी.

इन कानूनों को लागू करने के लिए हांगकांग एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग का गठन करेगा, जिसमें चीन द्वारा नियुक्त किया गया एक सलाहकार भी होगा. साथ ही, हांगकांग के चीफ एक्जिक्यूटिव के पास राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए जजों की नियुक्ति का अधिकार होगा. मुकदमों की सुनवाई बंद दरवाजों के पीछे भी हो सकेगी. इसके अलावा चीन के पास कानून की विवेचना का भी अधिकार होगा.

लोगों का आरोप था कि इन नए कानूनों के तहत ना केवलहांगकांगकी स्वायत्तता घटाई जा रही है, बल्कि नागरिक और लोकतांत्रिक अधिकारों का भी दमन किया जा रहा है. आलोचकों का कहना था कि इन नए कानूनों की मदद से मनमाने आरोप लगाकर और यथोचित प्रक्रिया का पालन किए बिना, निष्पक्ष ट्रायल के बिना विरोधियों को निशाना बनाना आसान हो जाएगा.

इन कानूनों के खिलाफ हांगकांग में प्रदर्शन जोर पकड़ता गया. प्रशासन ने प्रदर्शनों को दबाने में काफी सख्ती दिखाई. बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया. बड़ी संख्या में एक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दिया गया. कई एक्टिविस्ट देश छोड़कर चले गए. सख्तियों के चलते धीरे-धीरे प्रदर्शन भी कमोबेश खत्म होता गया.

हांगकांग में लोकतांत्रिक प्रक्रिया और प्रबंधित हो गई. कोरोना का खतरा बताकर लेजिस्लेटिव चुनाव रोक दिए गए. बाद के महीनों में चुनावी व्यवस्था का पुनर्गठन किया गया. जानकारों का कहना है कि इस व्यवस्था ने चीन की शक्ति बढ़ा दी है. हांगकांग की स्थानीय सरकार में कौन चुना जाएगा, इसपर चीन का नियंत्रण पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गया है.

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एसएम/एडी (रॉयटर्स, एपी, डीपीए)