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समाज

श्रम कानून को लेकर भय में श्रमिक

२४ सितम्बर २०२०

बुधवार को संसद में श्रम कानून को पारित कर दिया गया. सरकार का कहना है कि ऐतिहासिक श्रम कानून कामगारों के साथ साथ कारोबारियों के लिए मददगार साबित होगा.

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तस्वीर: Reuters/Babu Babu

श्रमिक संगठनों को डर है कि मुनाफे के चक्कर में कामगारों के अधिकार छिन जाएंगे. बुधवार, 23 सितंबर को राज्यसभा में श्रम कानून से जुड़े तीन अहम विधेयक पास हो गए. इनमें सामाजिक सुरक्षा बिल 2020, आजीविका सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदशा संहिता बिल 2020 और औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020 शामिल हैं.

जानकारों का कहना है कि कानून का उद्देश्य श्रमिकों को सुरक्षा देना और जटिल नियमों को सरल बनाना है. लेकिन अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसका मकसद हजारों छोटे कारखानों को छूट देना है और श्रमिकों को हड़ताल और अन्य लाभ अधिकारों से रोकना है. औद्योगिक कानून में बदलाव का मकसद 300 कर्मचारियों वाले कारखानों और कंपनियों को बिना किसी सरकारी मंजूरी के कर्मचारियों को काम पर रखने और निकालने की छूट होगी. फिलहाल 100 से कम कर्मचारियों वाले कारखाने या कंपनियों को छंटनी या यूनिट बंद करने से पहले सरकार की मंजूरी नहीं लेनी पड़ती थी.

भारत में करीब 90 फीसदी श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. उन्हें नौकरी की सुरक्षा नहीं मिलती है, वेतन कम मिलता है और बहुत कम या ना के बराबर लाभ मिलता है.

कोविड-19 के कारण लाखों श्रमिक बेरोजगार हो चुके हैं और उन्हें लॉकडाउन के दौरान पैदल ही घर जाना पड़ा था. नए श्रम कानून पर सालों से काम किया गया और उसके इसे संसद से पास किया गया है.

श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने बुधवार को राज्यसभा में बिल पेश करते हुए इसे "ऐतिहासिक" करार दिया और कहा कि "श्रमिक कल्याण में यह मील का पत्थर" साबित होगा. गंगवार ने कहा, "देश की आजादी के 73 साल बाद जटिल श्रम कानून सरल, ज्यादा प्रभावी और पारदर्शी कानून से कानून से बदल दिए जाएंगे."

गंगवार ने आगे कहा, "लेबर कोड श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा और यह उद्योगों को आसानी से चलने में मदद करेगा. कारोबार चलाने के लिए अलग-अलग जगह पंजीकरण और लाइसेंस की जरूरत नहीं होगी." इससे पहले तक देश में 44 श्रम कानून थे जो कि अब चार लेबर कोड में शामिल किए जा चुके हैं. श्रम कानूनों को लेबर कोड में शामिल करने का काम 2014 में शुरू हो गया था.

वेतन से जुड़ा लेबर कोड पिछले साल संसद से पास हो चुका है और इसके तहत न्यूनतम मजदूरी और समय पर वेतन मिलने का कानूनी अधिकार मिला था.

जानकारों का कहना है कि नए सुधारों के कारण देश में अंसगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की संख्या और बढ़ेगी. श्रम अर्थशास्त्री केआर श्यामसुंदर कहते हैं, "नए कानून कारोबार की तरफ काफी हद तक झुके हुए हैं."

एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)

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