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समाज

बचपन को श्रम से कौन बचाएगा?

आमिर अंसारी
१२ जून २०२०

कोविड-19 के बीच बाल मजदूरी जैसे गंभीर मुद्दे को दुनिया को नहीं भूलना चाहिए. महामारी के इस दौर में परिवार पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है और वे बच्चों से श्रम कराने को मजबूर होते दिख रहे हैं.

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तस्वीर: Anti-Slavery International

दुनिया में इस वक्त कोरोना वायरस महामारी की चर्चा है, हर रोज मरने वालों और संक्रमितों के नए-नए आंकड़े सामने आ रहे हैं लेकिन इस बीच कई ऐसे मुद्दे भी हैं जो हमें नहीं भूलने चाहिए. उनमें से सबसे गंभीर मुद्दा बाल श्रम या बच्चों द्वारा मजदूरी का है. भारत ही नहीं दुनिया के ऐसे तमाम देशों के लिए बाल श्रम बड़ी समस्या है जहां इसके खिलाफ कानून तो है लेकिन फिर भी बाल मजदूरी धड़ल्ले से हो रही है. मानव तस्कर हो या फिर आपराधिक गुट बच्चों को बाल श्रम में धकेल रहे हैं. भारत में बाल श्रम विरोधी सख्त कानून है लेकिन आपको ईंट भट्टों, निर्माण कार्यों जैसे कामों में बच्चे काम करते मिल जाएंगे. हालांकि यह शहरी इलाकों में तो नहीं मिलेंगे लेकिन देश में ग्रामीण इलाकों में बच्चों द्वारा अब भी काम कराया जाता है.

भारत में सरकारी और सामाजिक स्तर पर बाल श्रम के खिलाफ जागरुकता फैलाने का काम हो रहा है लेकिन इस पर अब तक अंकुश नहीं लग पाया है. बाल मजदूरी पर अंकुश नहीं लग पाना अपने आप में गंभीर सवाल पैदा करता है. क्या सिस्टम में कोई गड़बड़ी है या फिर कानून का पालन कराने वाले इस विषय पर गंभीर सोच नहीं रखते हैं. भारत समेत ज्यादातर देशों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध है लेकिन खुलेआम बच्चों से मजदूरी कराई जाती है.

देश की राजधानी दिल्ली में ही आपको चाय की छोटी दुकान हो या फिर मोटर वर्कशॉप हो, वहां आपको एक छोटा बच्चा हेल्पर के तौर पर दिख जाएगा. लोग भी इसे "नॉर्मल" मानते हैं कि वह बच्चा सिर्फ सहायता कर रहा है. लेकिन वह सहायता नहीं कर रहा है बल्कि 9 से लेकर 10 घंटे तक मजदूरी कर रहा है. 12 जून, अंतरराष्ट्रीय बाल श्रम विरोधी दिवस पर देश के नेता और अधिकारी अब तो ट्वीट के जरिए संदेश देते हैं लेकिन वह सिर्फ संदेश भर रह जाता है. अगले दिन किसी और विषय पर उन्हीं नेताओं और अधिकारियों का ट्वीट आ जाता है.

भारत जैसे विकासशील देशों में बाल श्रम के खिलाफ स्पष्ट नीति बननी चाहिए ताकि कोई भी बच्चा मजदूरी के लिए मजबूर ना हो. बाल मजदूरी को 2025 तक खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है लेकिन 2020 के छह महीने तो कोरोना वायरस से जूझते हुए बीत गए. भविष्य की गोद में कोरोना वायरस को लेकर क्या छिपा है कोई नहीं जानता है. यह महामारी सिर्फ स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से जुड़ा संकट नहीं है बल्कि यह बच्चों के भविष्य का भी संकट है.

भारत में बाल मजदूरी 

सरकार और गैर लाभकारी संगठनों के हालिया प्रयासों से हजारों बच्चे बाल मजदूरी के चक्रव्यूह से मुक्त हो पाए हैं लेकिन हालात संतोषजनक नहीं है. हाल के सालों में भारत ने बाल मजदूरी के खिलाफ कई अभियान चलाए. अभियान के तहत ऐसे कारखानों पर कार्रवाई की गई जहां चूड़ियां, जूते की सिलाई और कपड़ों पर सितारे लगाने का काम किया जाता था. सतर्कता ने इस काम को सिर्फ भूमिगत किया है. बाल अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि कार्रवाई के कारण बच्चों को बड़े पैमाने पर काम पर लगाने वाले उन्हें छोड़ देते हैं जिस वजह से वे अवैध कामों में फंस जाते हैं.

भारतीय श्रम कानून के मुताबिक 15 साल से कम उम्र के बच्चों से श्रम कराना गैर कानूनी है. लेकिन स्कूल के बाद वे परिवार के व्यवसाय में हाथ बंटा सकते हैं. इस प्रावधान का नियोक्ता और मानव तस्कर व्यापक रूप से शोषण करते हैं. बिहार जैसे राज्यों में जहां साढ़े चार लाख बच्चे मजदूरी करते हैं, वहां ऐसे तंत्र तैयार किए जा रहे हैं जिससे बाल श्रम को मैप किया जा सके. पूरे देश में 5 से 14 साल तक की उम्र वाले कामकाजी बच्चों की संख्या करीब 44 लाख है.

दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि कोरोना वायरस महामारी के बीच लाखों बच्चों पर कम उम्र में मजदूरी का खतरा मंडरा रहा है. यूएन के मुताबिक दो दशक पहले इस विषय पर की गई मेहनत बेकार जा सकती है. साल 2000 के बाद यह पहला मौका होगा जब बाल श्रम का संकट दोबारा खड़ा हो सकता है. महामारी के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो चुकी है जिस कारण लाखों लोग गरीबी में गिरते जा रहे हैं.

यूएन के मुताबिक परिवार के ऊपर दबाव हो सकता है कि बच्चों को काम पर लगाया जाए जिससे आमदनी हो सके. अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संगठन के मुताबिक दुनियाभर में बाल श्रमिकों की संख्या उल्लेखनीय ढंग से 24.6 करोड़ (साल 2000) से घटकर 15.2 करोड़ हो चुकी है. यूनिसेफ के मुताबिक, "जैसे-जैसे गरीबी बढ़ेगी, स्कूल बंद होंगे और सामाजिक सेवाएं कम होती जाएंगी और अधिक संख्या में बच्चों को बाल श्रम में धकेल दिया जाएगा."

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