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क्या जर्मन रूस के साथ युद्ध को लेकर चिंतित हैं?

क्रिस्टॉफ हाजेलबाख
२४ मई २०२४

जर्मन नेता और सैन्य अधिकारी रूसी हमले के खतरे की चेतावनी दे रहे हैं, लेकिन यहां के आम नागरिक इस मामले को अलग नजरिए से देखते हैं. एक सर्वे के मुताबिक युद्ध होने की स्थिति में जर्मनी के सिर्फ कुछ ही लोग लड़ने को तैयार हैं.

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जर्मन सेना
जर्मन सेनातस्वीर: Christoph Hardt/Panama Pictures/IMAGO

यूरोपीय चुनाव को लेकर जर्मनी में प्रचार अभियान जारी है. राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के पोस्टर अलग-अलग जगहों पर नजर आ रहे हैं. इन पोस्टर में इस बार एक खास बात यह दिख रही है कि "बाहरी खतरों" को मुद्दा बनाया गया है. हर गली-मोहल्ले में "सुरक्षा" और "ताकत" जैसे शब्दों के साथ उम्मीदवारों की गंभीर मुद्रा वाली तस्वीर नजर आ रही है.

दरअसल, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से जर्मन राजनेता आम लोगों को खतरनाक समय के लिए तैयार कर रहे हैं. इसकी वजह यह है कि जर्मन सेना यानी बुंडेसवेयर को सुरक्षा कार्य के लिए सक्षम नहीं माना जाता है. जर्मन सेना के बड़े अधिकारियों का कहना है कि जर्मनी की फौज न तो नाटो की जिम्मेदारियों को पूरा कर पाएगी और न ही खुद जर्मनी की रक्षा कर सकेगी.

चांसलर ने खर्च पर लगाई रोक

यही वजह है कि जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस बुंडेसवेयर के लिए अधिक धन की मांग कर रहे हैं. 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के ठीक बाद, चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने सशस्त्र बलों को सशक्त बनाने के लिए 100 अरब यूरो के "विशेष फंड" की घोषणा की थी. यह फंड जर्मन सेना को आधुनिक बनाने के लिए लिया गया एक विशेष कर्ज है. वहीं, पिस्टोरियस चाहते हैं कि 2025 के सैन्य बजट में अतिरिक्त 6.5 अरब यूरो दिया जाए.

जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस बुंडेसवेयर के लिए अधिक धन की मांग कर रहे हैं
जर्मन रक्षा मंत्री बोरिस पिस्टोरियस बुंडेसवेयर के लिए अधिक धन की मांग कर रहे हैंतस्वीर: Maja Hitij/Getty Images

उन्होंने जोर देकर कहा कि इस अतिरिक्त खर्च को जर्मन संविधान में मौजूद "डेट ब्रेक (कर्ज लेने की सीमा)" प्रावधान के तहत शामिल नहीं किया जाना चाहिए. दरअसल, सरकारी कर्जे पर लगाम लगाने के लिए, 2009 में जर्मन बेसिक लॉ में "डेट ब्रेक" को लाया गया था. इस कदम को वित्तीय संकट के बाद उठाया गया, ताकि वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए सरकारी कर्ज पर कड़ी सीमा लगा दी जाए. हालांकि, अप्रत्याशित स्थिति में इस लगाम को हटाया जा सकता है, जैसा कोविड महामारी के समय किया गया.

रक्षा मंत्री को उनके इस तर्क के लिए उनके ही मंत्रालय द्वारा प्रकाशित कानूनी राय का समर्थन मिला है. इस राय में कहा गया है कि जर्मनी की खुद को बचाने की क्षमता, सरकारी कर्ज कम करने की नीति (डेट ब्रेक) से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है.

म्यूनिख में बुंडेसवेयर यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सुरक्षा विषय के प्रोफेसर फ्रैंक सॉयर का मानना है कि 100 अरब यूरो की मदद के बाद भी बुंडेसवेयर को अभी कम धन मिल रहा है. उनका तर्क है कि अगर 2026 तक और अधिक धन नहीं मिलता है, तो जर्मन सेना "बहुत मुश्किल से मौजूदा कार्यों को जारी रख पाएगी" और उससे आगे कुछ नहीं कर सकेगी.

हालांकि, जर्मनी के वित्त मंत्री क्रिस्टियान लिंडनर ने फिलहाल अतिरिक्त धन देने से इनकार कर दिया है और चांसलर शॉल्त्स भी उनका समर्थन कर रहे हैं. ऐसे में रक्षा खर्च को लेकर चल रहा उच्च-स्तरीय विवाद काफी ज्यादा बढ़ सकता है.

अगर ट्रंप जीत गए, तो क्या होगा?

स्थिति कितनी गंभीर है, इस पर अभी साफ तौर पर कुछ भी कहना मुश्किल है. हालांकि, फरवरी में आयोजित म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन के प्रमुख क्रिस्टोफ होएसगेन ने कहा था कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का लक्ष्य पूर्व सोवियत संघ की सीमाओं के भीतर एक महान रूस को फिर से स्थापित करना है. होएसगेन का मानना है कि अगर पुतिन यूक्रेन युद्ध में नहीं हारते हैं, तो वे मोल्दोवा या बाल्टिक देशों के साथ युद्ध जारी रखेंगे. 

वहीं, युद्ध के हालात की गंभीरता को लेकर अलग-अलग राय है. हाल ही में एक अखबार को दिए साक्षात्कार में पिस्टोरियस ने कहा कि जर्मनी की सेना के पास मजबूत होने के लिए पांच से आठ साल का वक्त है. दूसरी ओर, नॉर्वे स्थित ओस्लो यूनिवर्सिटी में परमाणु रणनीति के शोधकर्ता फाबियान हॉफमैन ने इस साल की शुरुआत में सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर और भी डरावनी भविष्यवाणी की थी. उन्होंने कहा था, "हमारे पास रूसी हमले से सुरक्षा करने में सक्षम होने के लिए ज्यादा से ज्यादा दो से तीन साल का समय है."

वहीं, बुंडेसवेयर यूनिवर्सिटी के सॉयर को अब तक नाटो के सदस्य देश के तौर पर जर्मनी के लिए कोई गंभीर खतरा नहीं दिखता है, लेकिन उन्हें लगता है कि अगर डॉनल्ड ट्रंप आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव जीत जाते हैं, तो हालात और भी खतरनाक हो सकते हैं. अपने मौजूदा चुनावी अभियान में ट्रंप ने कई बार कहा है कि जिन यूरोपीय देशों ने सुरक्षा के लिए अपना "बिल" नहीं चुकाया है उन्हें अब सुरक्षा नहीं मिलेगी.

सॉयर का तर्क है कि अमेरिका अब तक जिन खास सैन्य कार्यों को अंजाम देता आया है उन्हें संभालना यूरोपीय देशों के लिए मुश्किल है. वहीं, पश्चिमी देशों के समर्थन की कमी के कारण यूक्रेन एक छोटा सा देश बन सकता है. ऐसे में रूस के लिए यह युद्ध जीतने जैसा होगा.

सॉयर अपने अनुमान के हिसाब से कहते हैं, "पुतिन 80 वर्ष के होने वाले हैं. वह अपने जीवन के उद्देश्य को पूरा करना चाहते हैं और एक महान रूस की स्थापना करना चाहते हैं. वह तमाम संभावित नतीजों का अनुमान लगाने के बाद एक या उससे ज्यादा बाल्टिक देशों पर हमला भी कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में अमेरिका भी कह सकता है कि यह हमारी समस्या नहीं है. आपने वैसे भी आपने बिल का भुगतान नहीं किया है और हम चीन के साथ उलझे हुए हैं." सुरक्षा विशेषज्ञ सॉयर का यह भी मानना है कि जरूरी नहीं कि अगले पांच वर्षों में ऐसी स्थिति आ ही जाएगी, लेकिन आ भी सकती है.

काफी कम जर्मन को खतरे का डर

जिस तरह से जर्मनी के नेता और अधिकारी चिंतित हैं उस तरीके से यहां के आम लोग चिंतित नहीं हैं. हाल ही में किए गए YouGov सर्वे के अनुसार, करीब 36 फीसदी यानी सिर्फ एक तिहाई जर्मन मानते हैं कि 2030 तक रूस नाटो की सीमा में हमला कर सकता है. वहीं, 48 फीसदी लोग इसे असंभव या कुछ हद तक असंभव मानते हैं.

जबकि, 23 फीसदी लोग कुछ हद तक या पूरी तरह इस बात की संभावना जताते हैं कि इस दशक के आखिर तक रूस जर्मनी पर हमला कर सकता है. 61 फीसदी लोग इसे असंभव या कुछ हद तक असंभव मानते हैं.

इसके अलावा, सिर्फ 2 फीसदी लोग ही आश्वस्त हैं कि बुंडेसवेयर देश की रक्षा करने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में है. जबकि, 12 फीसदी लोग सेना को ‘काफी अच्छी' स्थिति में देखते हैं. 39 फीसदी लोगों का मानना है कि जर्मन सेना की स्थिति काफी ज्यादा खराब है.

मार्च में सिवे इंस्टीट्यूट ने एक अन्य सर्वे किया. इसके नतीजे देश की सुरक्षा और सेना के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. इस सर्वे में पाया गया कि सिर्फ 30 फीसदी जर्मन ही देश पर हमले की स्थिति में लड़ने के लिए तैयार होंगे. वहीं, 50 फीसदी से ज्यादा लोग लड़ाई में शामिल नहीं होंगे.

सॉयर कहते हैं, "हमारी दुनिया ऐतिहासिक उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है, लेकिन जर्मनी के लोग अब तक इसे समझ नहीं पा रहे हैं. हमारी मानसिकता को बदलने में थोड़ा समय लगता है. हम इसे बल पूर्वक, कुछ भाषणों से या खबरों की कुछ सुर्खियों से नहीं बदल सकते."

सॉयर समझते हैं कि जर्मन सेना को मजबूत बनाने के लिए पैसे जुटाने में राजनेताओं को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. वह कहते हैं, "मैं पवन चक्कियां लगाना, घरों पर सौर पैनल लगाना और किंडरगार्टन बनाना ज्यादा पसंद करूंगा, लेकिन दुर्भाग्य से हमें इसके बजाय बख्तरबंद तोप, क्रूज मिसाइल और लड़ाकू ड्रोन बनाने पड़ रहे हैं." आखिरकार, सॉयर का मानना है कि धन जुटाने का तरीका भले ही कुछ भी हो, लेकिन चीजें अब जैसी हैं वैसे नहीं चल सकतीं.