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समाज

कोरोना से डर नहीं लगता साहब, ट्रंप से लगता है!

११ सितम्बर २०२०

पिछले 28 साल से जर्मनी की बीमा कंपनी R+V एक दिलचस्प सर्वे कराती रही है जिसमें यह पता किया जाता है कि जर्मन लोगों को किस किस चीज से डर लग रहा है. इस बार के सर्वे के नतीजों से खुद रिसर्चर भी हैरान हैं.

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USA Präsident Donald Trump Wahlkampf 2020
तस्वीर: Reuters/J. Ernst

कुल मिला कर यह पता चला है कि जर्मन लोगों को अब पहले की तुलना में बहुत कम डर लगता है. इस साल का फियर इंडेक्स रहा 37% जो कि अब तक का सबसे कम है. 1992 से यह सर्वे चल रहा है और इतना अच्छा नतीजा इससे पहले नहीं देखा गया. सर्वे करने वालों को लगा था कि कोरोना दौर में ज्यादातर लोग कहेंगे कि उन्हें बीमार होने का डर है. लेकिन यहां लोगों का कहना था कि वे मास्क लगा रहे हैं और जरूरी नियमों का पालन कर रहे हैं, इसलिए उन्हें संक्रमित होने का उतना डर नहीं है.

R+V इंफोसेंटर की प्रमुख ब्रिगिटे रोएमश्टेट ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "जर्मन लोग इस महामारी में बिलकुल भी पैनिक नहीं कर रहे हैं.  लोगों की चिंताएं अब कम होने लगी हैं. उन्हें लगने लगा है कि अब सब काबू में है और हम इसका सामना करने की हालत में हैं." सर्वे के नतीजे दिखाते हैं कि कुछ साल पहले यहां के लोगों में ऐसा आत्मविश्वास नहीं था. युद्ध, अपराध, आतंकवाद और कट्टरपंथ इन लोगों के सबसे बड़े डर रहे हैं.

इस शोध के लिए 14 साल की उम्र से ज्यादा के 2,400 महिला और पुरुषों से सवाल किए गए. जून की शुरुआत और जुलाई के अंत के बीच रिसर्चरों ने लोगों से उनके अलग अलग तरह के डर के बारे में सवाल किए. इसमें राजनीति से जुड़े, अर्थव्यवस्था से जुड़े, पर्यावरण से जुड़े और निजी स्तर के डर भी शामिल थे. कोरोना महामारी के बावजूद इस साल सिर्फ 32 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें किसी गंभीर बीमारी के होने का डर है. जबकि इसी दौरान पिछले साल 35 फीसदी लोगों ने कहा था कि उन्हें गंभीर बीमारी हो जाने का डर सताता है.

नौकरी जाने का डर

जर्मनी में कोरोना के मामले भले ही एक बार फिर बढ़ने लगे हैं लेकिन लोग इतने चिंतित नजर नहीं आ रहे हैं. तीन में से एक व्यक्ति ने ही कहा कि उसे लगता है कि उसकी जान पहचान का कोई व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो सकता है. इसी तरह 42 फीसदी लोगों का कहना था कि वैश्वीकरण के कारण भविष्य में भी इस तरह की महामारियां देखने को मिल सकती हैं.

ब्रिगिटे रोएमश्टेट का इस पर कहना था, "हमें लगा था कि आंकड़े इससे ज्यादा होंगे. हमारे सर्वे के अनुसार लोगों को वायरस के कारण अपनी सेहत से ज्यादा अर्थव्यवस्था के खराब होने का डर सता रहा है." इस साल जर्मनी में जीडीपी के 6 फीसदी गिरने का अनुमान है. यहां मंदी को लेकर भी चर्चा तेज है. ऐसे में लोगों में नौकरी खोने का डर भी है. साथ ही 51 फीसदी लोगों का कहना था कि उन्हें बढ़ती कॉस्ट ऑफ लिविंग का डर है और 40 फीसदी ने नौकरी चले जाने के डर की बात कही है. इस सर्वे में कुल 20 डरों की सूची तैयार की गई है. नौकरी छूट जाना इसमें 13वें नंबर पर है, जबकि कॉस्ट ऑफ लिविंग का बढ़ जाना दूसरे नंबर पर.

नंबर 1 डर - डॉनल्ड ट्रंप

लिस्ट में सबसे ऊपर हैं डॉनल्ड ट्रंप. 3 नवंबर 2020 को अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव होने हैं, जो तय करेंगे कि डॉनल्ड ट्रंप एक बार फिर अमेरिका की कमान संभालेंगे या नहीं. 53 फीसदी जर्मन लोगों को डर सता रहा है कि कहीं वे फिर से राष्ट्रपति ना चुन लिए जाएं. इस सर्वे को तैयार करने में सालों से मदद देते आए प्रोफेसर मानफ्रेड श्मिट का कहना है, "ट्रंप की विदेश नीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई उलझनें खड़ी की हैं." इसमें चीन के साथ व्यापार युद्ध और जर्मनी जैसे मित्र देशों के साथ तनाव शामिल हैं. ऐसा पहली बार नहीं है कि जर्मन लोगों ने ट्रंप की नीतियों पर "डर" व्यक्त किया है. 2018 में हुए सर्वे में भी ट्रंप पहले स्थान पर ही थे. देश में चल रहे अहम मुद्दे जैसे शरणार्थी संकट और समेकन उस वक्त दूसरे और तीसरे स्थान पर थे.

इस बीच शरणार्थियों से जुड़े डर कम हुए हैं. जहां पिछले साल 55 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि देश में शरणार्थियों के आने से समस्याएं बढ़ेंगी, वहीं इस साल यह संख्या 43 प्रतिशत रही, जो कि पिछले पांच साल में सबसे कम है. इसी तरह सरकार देश में आ रहे शरणार्थियों की वजह से पैदा होने वाली चुनौतियों से निपट पाएगी या नहीं, यह डर 56 फीसदी से गिर कर 43 फीसदी लोगों में रह गया है. इस शोध की एक और दिलचस्प बात रही देश की राजनीति में और यहां के नेताओं में लोगों का बढ़ता विश्वास. सिर्फ 40 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें अपने नेताओं पर पूरा भरोसा नहीं है. पिछले 20 साल में नेताओं से जुड़े सवाल पर इस तरह का नतीजा नहीं देखा गया था. शोध करने वालों का मानना है कि इसकी एक बड़ी वजह जर्मन सरकार का कोरोना महामारी को लेकर सही नीतियां बनाना है. जर्मनी की नीतियों की दुनिया भर में तारीफ हुई और इसके बाद से लोगों में सरकार को लेकर भरोसा बढ़ा है.

रिपोर्ट: फॉल्कर विटिंग/आईबी

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