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मेंढकों से बात करते हैं प्रोफेसर माइकल माहोनी

२४ जून २०२१

70 साल के जीव विज्ञानी प्रोफेसर माहोनी को मेढकों की जबान पर महारत हासिल है. वह कई प्रजातियों की खोज भी कर चुके हैं.

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Australien Professor Michael Mahony
तस्वीर: James Redmayne/REUTERS

ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर चांदनी रात में एक तालाब किनारे मेंढकों से बात करते हुए माइकल माहोनी खुद को बच्चे जैसा महसूस करते हैं. 70 साल के जीव विज्ञानी प्रोफेसर माहोनी को मेढकों की जबान पर महारत हासिल है. न्यू कासल यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर माहोनी कहते हैं, "कई बार तो आप काम करना भी भूल जाते हैं क्योंकि आप बस मेढकों से बात करते रहना चाहते हैं. इसमें बहुत मजा आता है.”

प्रोफेसर माहोनी जब मेढकों की आवाजें निकालते हैं तो उन्हें जवाब भी मिलता है. और तब उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. लेकिन प्रोफेसर मोहानी की एक चिंता भी है. उन्हें डर है कि मेढकों की आवाज लगातार कम हो रही है.

खतरे में मेंढक

ऑस्ट्रेलिया में 240 प्रजातियों के मेंढक पाए जाते हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण उनमें से लगभग 30 प्रतिशत पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. ऐसा जल प्रदूषण और घटते तालाब और अन्य जल स्रोतों के कारण है. माहोनी बताते हैं कि रीढ़ वाले जीवों में मेंढक धरती पर सबसे ज्यादा खतरे में हैं. बतौर जीवविज्ञानी अपनी कार्यकाल में माहोनी ने 15 नई प्रजातियां खोजी हैं. उन्होंने कुछ को विलुप्त होते भी देखा है.

वह बताते हैं, "मेरे करियर की सबसे उदास कहानी शायद ये है कि जब मैं युवा था, तब मैंने एक मेंढक खोजा था. और मेरी खोज के सिर्फ दो साल के भीतर वह प्रजाति विलुप्त हो गई. तो अपने करियर की शुरुआत में ही मुझे अहसास हो गया कि कुछ मेंढक कितने खतरे में हो सकते हैं. हमें अपने प्रकृतिक निवास की ओर देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम क्या गलत कर रहे हैं.”



इन जीवों के ठौर-ठिकानों को बचाने के अलावा माहोनी ने काइरोप्रेजरवेशन की तकनीक विकसित करने में भी मदद की है. इस तकनीक के जरिए विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके जीवों के जेनेटिक मटिरियल को संरक्षित करके हमेशा के लिए खत्म होने से बचाया जा सकता है. वह कहते हैं, "प्रजातियों के पूरी तरह खत्म हो जाने के खतरे के चलते हमने एक ऑस्ट्रेलिया के मेंढकों के लिए एक जीनोम बैंक स्थापित किया है.”

ज्ञान के वारिस तैयार

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के लिए प्रोफेसर माहोनी ने एक शोध में भी हिस्सा लिया था, जिसमें पता चला कि 2019 और 2020 में लगी जंगल की आग में ऑस्ट्रेलिया के लगभग तीन अरब जानवर मारे गए थे या विस्थापित हुए थे. इनमें पांच करोड़ से ज्यादा मेंढक भी थे. प्रोफेसर माहोनी ने अपने ज्ञान की विरासत अपने छात्रों को सौंपी है, जिस कारण उनके छात्र भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं.

उनकी एक छात्रा सिमोन क्लूलो ने 2106 में मेंढक की एक प्रजाति खोजी थी, जिसे अपने शिक्षक सम्मान ने उसने ‘माहोनीज टोडलेट' नाम दिया था.  कुछ छात्रों ने उनसे मेंढकों से बात करने की तकनीक भी सीखी है. न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहीं समांथा वॉलेस कहती हैं, "उनके बारे में जानने के लिए उन पर चिल्लाना तो मुझे अच्छा नहीं लगता. लेकिन यह तकनीक काम तो करती है. और इसका फायदा भी होता है, खासकर तब जबकि आप ऐसी किसी प्रजाति को खोज रहे हों, जो बहुत अंदर घुसकर रहती है.”
वीके/सीके (रॉयटर्स)

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