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ग्रीनलैंड के हिमखंडों में मिला बहुत ज्यादा पारा

२३ जून २०२१

वैज्ञानिकों को ग्रीनलैंड के हिमखंडों में भारी मात्रा में मर्करी के अंश मिले हैं, जो एक खतरनाक संकेत है. यह पारा मानव शरीर में पहुंचकर भारी नुकसान कर सकता है.

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Global Ideas | Grönland Bergbau
तस्वीर: Roberto Coletti

2012 में जब ब्रिटेन के जियोकेमिस्ट जॉन हॉकिंग्स पहली बार ग्रीनलैंड गए थे तो काफी प्रभावित हुए थे. वह कहते हैं, "झकझोर देने वाला था. दूर-सुदूर तक बस बर्फ ही बर्फ. 150-200 किलोमीटर दूर तक.” हॉकिंग्स अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक समूह के साथ ग्रीनलैंड गए थे जिनका मकसद था यह जांचना कि हिमखंडों के पिघलने से जो पानी समुद्र में मिलता है, उसका समुद्री तटों के जीवन पर क्या असर हो रहा है. लेकिन उनके शोध ने तब एक बड़ा मोड़ लिया जब उन्होंने ग्लेशियर की नदियों और झीलों के पानी में पारे की मौजूदगी देखी.

इन्सानी बस्तियों से दूर होने के बावजूद, उद्योगों या किसी अन्य प्रदूषक से दूर होने के बावजूद दक्षिण पश्चिम ग्रीन लैंड के तीन हिमखंडों के पानी में पारा मौजूद था और इसकी मात्रा किसी औद्योगिक क्षेत्र के पानी से कहीं ज्यादा थी. जॉन हॉकिंग्स के नेतृत्व में हुए एक अध्ययन के नतीजे नेचर जियोसाइंस पत्रिका में छपे हैं. हॉकिंग्स बताते हैं, "इतना अधिक पारा तो आमतौर पर बहुत ज्यादा प्रदूषित जगहों पर ही मिलता है. हमने चीन की प्रदूषित नदियों से तुलना की क्योंकि वहीं इतनी अधिक मात्रा में प्रदूषक मिले थे.”

कैसे हुआ खुलासा?

नदियों के पानी में आमतौर पर पारे की मात्रा एक से 10 नैनोग्राम प्रति लिटर तक होती है. हॉकिंग्स के मुताबिक यह ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल में रेत के एक कण जितनी है. लेकिन दक्षिण पश्चिम ग्रीनलैंड के जल में शोधकर्ताओं को 150 नैनोग्राम प्रति लिटर तक पारा मिला है. और प्रमाणों का इशारा इस बात की ओर है कि यह पारा प्रकृतिक भूगर्भीय स्रोतों से पैदा हो रहा है.

हॉकिंग्स बताते हैं कि 2012 में उन्होंने ग्रीनलैंड से हिमखंडों के पानी के नमूने यूं ही ले लिए थे. तब पारे की मात्रा अधिक मिली थी लेकिन यह आंकड़े सीमित थे. 2015 में यह समूह फिर से ग्रीनलैंड गया और इस बार उन्होंने विस्तार से अध्ययन करने का फैसला किया. नतीजे फिर वैसे ही मिले. 2018 में जब तीसरी बार नमूनों की जांच की गई और वही नतीजे आए तो वैज्ञानिकों को यकीन हो गया.

हॉकिंग्स कहते हैं, "मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ था क्योंकि मात्रा बहुत ज्यादा था. यह एकदम अनपेक्षित था. वैज्ञानिक होने के नाते मैं उत्साहित भी हो रहा था कि कुछ नया मिला है, जो पहले किसी ने नहीं खोजा था लेकिन चिंता भी हो रही थी.”

चिंता क्यों?

मर्करी या पारा एक जहरीली धातु है. यह कुदरती तौर पर हवा, पानी और मिट्टी में मिलता है. ज्वालामुखियों आदि से यह हवा-पानी में मिल जाता है. हालांकि प्रदूषण ने इसकी मात्रा बढ़ाई है. कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्र और सोने का खनन आदि ऐसी गतिविधियां हैं जिन्होंने वातावरण में पारे की मात्रा बढ़ाई है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मर्करी को 10 ऐसे रसायनों में रखा है, जो इन्सानी सेहत के लिए खतरनाक हैं. बहुत कम मात्रा में भी इनका मानव शरीर पर बहुत बुरा असर होता है. यह स्नायुतंत्र, पाचन तंत्र और फेफड़ों, गुर्दों त्वचा व आंखों पर सीधा प्रभाव डालता है.

इसलिए वैज्ञानिक चिंतित हैं कि यदि इतनी अधिक मात्रा में पारा जल में मिल रहा है, तो उस जल से भोजन के जरिए यह मानव शरीर में पहुंचकर भारी नुकसान कर सकता है.

- इजाबेल मार्टेल


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