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समाज

सालों में जो बनाया उसे बेचकर अफगानिस्तान से भाग रहे लोग

१४ सितम्बर २०२१

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद जनता अपना असबाब औने पौने दाम में बेचकर देश से भागना चाहती है. लोग रोजमर्रा की चीजों और भोजन के लिए बाजारों में घरेलू सामान बेच रहे हैं.

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तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP

जब से तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली है, देश से भागने की कोशिश कर रहे अफगानों की निराशा और हताशा बढ़ती जा रही है. युद्धग्रस्त देश में कट्टर तालिबान के डर से अफगान हर कीमत पर देश से भागने की कोशिश कर रहे हैं.

तालिबान के आने के साथ ही जनता को गंभीर आर्थिक और सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में राजधानी काबुल के बाजारों में लोग सालों से जोड़े सामान को कम कीमत पर बेच रहे हैं. वह बस इससे कुछ पैसे कमाने की उम्मीद लगा रहे हैं ताकि देश से भागने में उन्हें मदद मिल सके या फिर वे अपना और अपने परिवार के सदस्यों के लिए भोजन खरीद पाए.

गंभीर आर्थिक समस्या    

15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के साथ ही तालिबान ने पूरे अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया था. तालिबान के आने के साथ ही अफगान समाज में गंभीर अराजकता फैल गई है. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार नहीं है या रोजगार के अवसर सिकुड़ रहे हैं. अफगान वर्तमान में अपने बैंक खाते से प्रति सप्ताह 200 डॉलर से अधिक नहीं निकाल सकते हैं. इसका मतलब है कि अफगानिस्तान में नकदी की भारी कमी है.

Afghanistan Kabul | Flohmärkte mit Habseligkeiten von Flüchtlingen
पुराने सामान बेचकर कुछ पैसे पाने की उम्मीद.तस्वीर: WAKIL KOHSAR/AFP

काबुल के एक पहाड़ी कस्बे के रहने वाले मोहम्मद अहसान काबुल के बाजार में अपने घर से दो कंबल बेचने आए हैं. वे कहते हैं, "हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है. हम बहुत गरीब हैं, इन चीजों को बेचने को मजबूर हैं." अहसान कहते हैं कि अमीर लोग काबुल में रहते थे, लेकिन अब सभी देश से भाग गए हैं.

अहसान निर्माण क्षेत्र में काम करते थे, लेकिन बिल्डिंग निर्माण का काम निलंबित है या फिर ठप्प पड़ गया है.

काबुल के इस बाजार में अस्थायी टेबलों पर प्लेट, गिलास, शीशे के बर्तन, रसोई के बर्तन और अन्य सामान बिखरे पड़े हैं. पुरानी सिलाई मशीन, कालीन और अन्य सामान भी लोग गाड़ी या फिर अपने कंधों पर लादकर यहां बेचने के लिए ला रहे हैं.

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तालिबान पर भरोसा नहीं करते आम अफगान

मोहम्मद अहसान उन अनगिनत अफगानों में से एक हैं जिन्होंने अपने देश में एक के बाद एक कई बदलाव देखे हैं और कठिनाइयों का सामना किया है. अहसान और अन्य अफगान तालिबान के शांति और समृद्धि के दावों से सतर्क हैं. 1996 से 2001 तक पिछले तालिबान शासन के दौरान इस तरह के दावे अधिक बार किए गए थे. अहसान कहते हैं, "आप उनमें से किसी पर भी भरोसा नहीं कर सकते हैं."

एक अन्य कारोबारी मुस्तफा का कहना है कि वे अपने 'शिपिंग कंटेनर' का इस्तेमाल एक दुकान के रूप में कर रहा हैं. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि जिन लोगों से उन्होंने सामान खरीदा है उनमें से कई देश छोड़ने की उम्मीद में सीमा की तरफ जा रहे थे. मुस्तफा कहते हैं, "पहले हम एक सप्ताह में एक या दो घरों से सामान खरीदते थे, अगर आपके पास सामान रखने की जगह है तो एक बार में आप 30 घरों के सामान खरीद सकते हैं. लोग असहाय और गरीब हैं."

मुस्तफा कहते हैं कि लोग 6 हजार डॉलर के दाम वाले माल दो हजार डॉलर में बेचने को मजबूर हो रहे हैं.

अफगानिस्तान पहले से ही सूखा और भोजन की कमी से जूझ रहा है और कोविड-19 महामारी ने लोगों की मुश्किलें और बढ़ाई हैं. कोरोना के कारण देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति और भी भयावह हो गई है.

एए/सीके (एएफपी)

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