मध्य और दक्षिण एशिया के बीच स्थित अफगानिस्तान में कई संस्कृतियां और रिवाज हैं, जैसा कि सिर को ढकने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टोपियों में देखा जाता है. इस क्षेत्र में टोपी या पगड़ी की शैली पहनने वाले की स्थिति को दर्शाती है. इससे यह भी पता चलता है कि वे देश के किस हिस्से से ताल्लुक रखते हैं या किस जातीय समूह से जुड़ाव रखते हैं.
उदाहरण के लिए उज्बेक टोपी आमतौर पर सपाट और गोल होती है और दिखने में ढीली होती है. इसे रंगीन ऊन की कढ़ाई से सजाया जाता है. यह उत्तरी अफगानिस्तान में अफगानों द्वारा बड़े पैमाने पर पहनी जाती है, जैसे मजार-ए-शरीफ, फरयाब और जावजान में.
पश्तून जनजाति, जिसे अफगानिस्तान में सबसे बड़ी जनजाति माना जाता है और अधिकांश तालिबान एक ही जनजाति के हैं, आमतौर पर काली पगड़ी पहनते हैं. एक लंबा काला कपड़ा जो टोपी के ऊपर लपेटा जाता है और उसका एक छोर लटकता रहता है. अफगानिस्तान के ग्रामीण इलाकों के लोगों का मानना है कि पगड़ी पहनना पश्तून लड़कों की मर्दानगी की निशानी है.
कुछ इलाकों में महिलाएं भी चादर के नीच टोपी पहनती हैं
वहीं दक्षिणी कंधार में युवा गोल, मुलायम टोपी पहनते हैं जो माथे के ऊपर कटी होती है. बुजुर्ग खास तौर से किसान, पगड़ी के साथ कंधे पर चौकोर स्कार्फ पहनना पसंद करते हैं.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
हवा, मरयम, आएशा (2019)
अफगान निदेशक सहरा करीमी की यह फिल्म वेनिस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई गई थी. इसमें काबुल में रहने वाली तीन महिलाओं की कहानी है, जो अपने-अपने तरीकों से गर्भावस्था के हालात से जूझती हैं. सहरा करीमी ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक खुले खत में दुनियाभर से उनके देश की मदद का आग्रह किया था.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
ओसामा (2003)
1996-2003 के दौरान अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था. ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाओं के काम करने पर पाबंदी थी. ऐसे में जिन परिवारों के मर्द मारे जाते, उनके सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जातीं. ओसामा ऐसी किशोरी की कहानी है जो अपने परिवार की मदद के लिए लड़का बनकर काम करती है. 1996 के बाद यह पहली ऐसी फिल्म थी जिसे पूरी तरह अफगानिस्तान में फिल्माया गया.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
द ब्रैडविनर (2017)
आयरलैंड के स्टूडियो कार्टून सलून ने ‘ओसामा’ से मिलती जुलती कहानी पर एनिमेशन फिल्म बनाई थी. यह डेब्रा एलिस के मशहूर उपन्यास पर आधारित थी. फिल्म को ऑस्कर में नामांकन मिला था.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
द काइटरनर (2007)
खालिद हुसैनी के उपन्यास पर जर्मन-स्विस फिल्मकार मार्क फोरस्टर ने यह फिल्म बनाई थी जो अफगानिस्तानी जीवन के बहुत से पहलुओं का संवेदनशील चित्रण है.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
कंदहार (कंधार) (2001)
ईरान के महान फिल्मकारों में शुमार मोहसिन मखमलबाफ की यह फिल्म कनाडा में रहने वालीं एक ऐसी अफगान महिला की कहानी है जो अपनी बहन को खुदकुशी से रोकने के लिए घर लौटती है. फिल्म का प्रीमियर कान फिल्म महोत्सव में हुआ था.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
एट फाइव इन द आफ्टरनून (2003)
मोहसिन मखमलबाफ की बेटी समीरा ने अफगान महिलाओं पर यह फिल्म बनाई जिसमें देश का राष्ट्रपति बनने का ख्वाब देखती एक अफगान महिला की कहानी है.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
इन दिस वर्ल्ड (2002)
यह फिल्म एक अफगान शरणार्थी की पाकिस्तान होते हुए लंदन पहुंचने की अवैध यात्रा की कहानी कहती है. माइकल विंटरबॉटम ने इस फिल्म को डॉक्युमेंट्री के अंदाज में फिल्माया था. फिल्म ने बर्लिन में गोल्डन बेयर और BAFTA का सर्वश्रेष्ठ गैर-अंग्रेजी भाषी फिल्म का पुरस्कार जीता था.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
लोन सर्वाइवर (2013)
यह फिल्म अमेरिकी नेवी सील मार्कस लटरेल की किताब पर आधारित है जिसमें 2005 में कुनार प्रांत में हुए ‘ऑपरेशन रेड विंग्स’ की कहानी बयान की गई है. उस अभियान में लटरेल के तीन साथी मारे गए थे और वह अकेले लौट पाए थे.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
रैंबो lll (1988)
सिल्वेस्टर स्टैलन की मशहूर सीरीज रैंबो की तीसरी फिल्म में नायक रैंबो अपने पूर्व कमांडर को बचाने के लिए अफगानिस्तान जाता है.
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अफगानिस्तान पर 10 बेहतरीन फिल्में
चार्ली विल्सन्स वॉर (2007)
यह फिल्म तब की कहानी है जब अमेरिका ने रूस के खिलाफ मुजाहिद्दीन की मदद की थी, जिन्होंने बाद में तालिबान और अल कायदा जैसे संगठन बनाए. टॉम हैंक्स अभिनीत यह फिल्म माइक निकोलस ने निर्देशित की और अपने समय की बेहतरीन फिल्मों में गिनी गई.
पश्चिमी प्रांत हेरात के ग्रामीण इलाकों में अफगान महिलाएं कशीदाकारी टोपी भी पहनती हैं जो चादर के भीतर छिपी रहती है. दूसरी ओर देश के निवासी ताजिक पकूल पहनते हैं, जो भेड़ के ऊन के नरम, मोटे गोले से बना होता है. यह ठंड के मौसम में सिर को गर्म रखने में मदद करता है.
पकूल को एक जमाने में तालिबान विरोधी कमांडर अहमद शाह मसूद भी पहनते थे. पंजशीर घाटी में उनका पहनावा एक प्रतीक बन गया था.
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ऐसे होते हैं अफगान
मजार-ए-शरीफ के चेहरे
ये बुजुर्ग उन 100 से ज्यादा अफगान लोगों में से एक हैं जिन्हें जर्मन फोटोग्राफर येंस उमबाख ने मजार-ए-शरीफ शहर के हालिया दौरे में अपने कैमरे में कैद किया है.
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ऐसे होते हैं अफगान
असली चेहरे
उमबाख ऐसे चेहरों को सामने लाना चाहते थे जो अकसर सुर्खियों के पीछे छिप जाते हैं. वो कहते हैं, “जैसे कि ये लड़की जिसने अपनी सारी जिंदगी विदेशी फौजों की मौजूदगी में गुजारी है.”
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ऐसे होते हैं अफगान
नजारे
उमबाख 2010 में पहली बार अफगानिस्तान गए और तभी से उन्हें इस देश से लगाव हो गया. उन्हें शिकायत है कि मीडिया सिर्फ अफगानिस्तान का कुरूप चेहरा ही दिखाता है.
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ऐसे होते हैं अफगान
मेहमानवाजी
अफगान लोग उमबाख के साथ बहुत प्यार और दोस्ताना तरीके से पेश आए. वो कहते हैं, “हमें अकसर दावतों, संगीत कार्यक्रमों और राष्ट्रीय खेल बुजकाशी के मुकाबलों में बुलाया जाता था.”
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ऐसे होते हैं अफगान
सुरक्षा
अफगानिस्तान में लोगों की फोटो लेना आसान काम नहीं था. हर जगह सुरक्षा होती थी. उमबाख को उनके स्थानीय सहायक ने बताया कि कहां जाना है और कहां नहीं.
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ऐसे होते हैं अफगान
नेता और उग्रवादी
उमबाख ने अता मोहम्मद नूर जैसे प्रभावशाली राजनेताओं की तस्वीरें भी लीं. बाल्ख प्रांत के गवर्नर मोहम्मद नूर जर्मनों के एक साझीदार है. उन्होंने कुछ उग्रवादियों को भी अपने कैमरे में कैद किया.
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ऐसे होते हैं अफगान
जर्मनी में प्रदर्शनी
उमबाख ने अपनी इन तस्वीरों की जर्मनी में एक प्रदर्शनी भी आयोजित की. कोलोन में लगने वाले दुनिया के सबसे बड़े फोटोग्राफी मेले फोटोकीना में भी उनके फोटो पेश किए गए.
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ऐसे होते हैं अफगान
फोटो बुक
येंस उमबाख अपनी तस्वीरों को किताब की शक्ल देना चाहते हैं. इसके लिए वो चंदा जमा कर रहे हैं. वो कहते हैं कि किताब की शक्ल में ये तस्वीरें हमेशा एक दस्तावेज के तौर पर बनी रहेंगी.
अफगानिस्तान में पुरुषों के लिए खुशी या शादी के अवसरों पर भी अपना सिर ढकने का रिवाज है. वे अपने सिर को ढकने के लिए एक विशेष प्रकार के कपड़े का इस्तेमाल रते हैं, जैसे गिलगित और पाकिस्तान में आसपास के इलाकों में दूल्हे गिलगित टोपी पहनते हैं.
एए/सीके (एएफपी)
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
अफगान दंगल
हर सप्ताह के अंत में अफगानिस्तान के लड़ाके राजधानी काबुल में एक सार्वजनिक मैदान पर इकट्ठा होते हैं और वहां जूडो और कुश्ती के मिश्रण वाले खेल में एक-दूसरे के खिलाफ अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं.
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
जो जीता वही सिकंदर
कुश्ती को देखने के लिए राजधानी काबुल के चमन-ए-हजूरी मैदान में बड़ी भीड़ जुटती है. प्रशंसक अपने पसंदीदा या फिर अपने गृह जिले के किसी पहलवान के लिए ताली बजाते हैं और उन्हें उत्साहित करते हैं.
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
लोकप्रिय है कुश्ती
उत्तरी अफगानिस्तान के समांगन प्रांत के गठीले 31 वर्षीय मोहम्मद आतिफ कहते हैं, "मैं 17 साल से लड़ रहा हूं." उन्होंने एक मैच में अपने प्रतिद्वंद्वी को एक विशेष दांव से पटखनी दी है. वे कहते हैं, "कुश्ती समांगन, कुंदुज, बगलान में बहुत लोकप्रिय है और शेबरघन में भी कई प्रसिद्ध पहलवान हैं."
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
गांव के गौरव
जूडो और कुश्ती उत्तर में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं. गांवों और जिलों में स्थानीय चैंपियन बनने के बाद खिलाड़ी क्षेत्रीय प्रतियोगिताओं और यहां तक कि राष्ट्रीय खेलों के लिए आगे बढ़ते हैं.
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
अनुशासन के साथ दंगल
अफगान पहलवान मैदान पर अनुशासन का पालन करते हैं. मुकाबले के दौरान रेफरी यह सुनिश्चित करने के लिए होता कि नियमों का सख्ती से पालन हो और विजेता घोषित किया जाए. एक मुकाबला शायद ही कभी एक या दो मिनट से अधिक समय तक चलता है. मैच के बाद पहलवान एक दूसरे को गले लगा लेते हैं.
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
सट्टा मत लगाना
विजेता के लिए एक छोटा सा इनाम होता है. हालांकि तालिबान द्वारा सट्टे पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन कुछ पुराने सट्टेबाज हैं जो चोरी से सट्टा लगाते हैं.
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तमाम मुसीबत एक तरफ, अफगान कुश्ती एक तरफ
मनोरंजन का सहारा
इस तरह के आयोजन स्थानीय लोग और कुछ स्पॉन्सर मिलकर करते हैं. लोगों का कहना है कि तालिबान इस तरह के आयोजन में आने से बचता है. रिपोर्ट: (एए/सीके)