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समाज

ऑस्ट्रेलिया के नए उप प्रधानमंत्री से पर्यावरण प्रेमी चिंतित

२१ जून २०२१

दक्षिणपंथी नैशनल पार्टी के नेता बार्नबी जॉइस ऑस्ट्रेलिया में उप प्रधानमंत्री पद पर लौट आए हैं. अपनी पार्टी में तख्तापलट को अंजाम देकर जॉइस ने तीन साल बाद पद पर वापसी की है, जिससे पर्यावरण प्रेमियों में चिंता है.

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तस्वीर: Reuters/AAP/L. Coch

सोमवार सुबह नैशनल पार्टी में बगावत हो गई और मैकॉरकम व जॉइस के बीच वोटिंग की नौबत आ गई. मामूली अंतर से जॉइस ने मैकॉरमक को हराकर पार्टी के नेता का पद पा लिया. सत्तारूढ़ गठबंधन में उप प्रधानमंत्री पद इस पार्टी के नेता का है, लिहाजा वह फिर से पद संभालने जा रहे हैं. बार्नबी जॉइस पिछली सरकार में भी उप प्रधानमंत्री थे लेकिन वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया राज्य का जाना-माना नाम रहीं कैथरीन मैरियट ने उन पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. हालांकि उन्होंने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया था. नैशनल पार्टी ने इस बारे में एक जांच भी की थी, जिसका कोई परिणाम नहीं आया.

लेकिन जॉइस के पद छोड़ने की वजह सिर्फ इतनी ही नहीं थी. उनके बारे में यह बात भी सामने आ गई थी कि उनके अपने दफ्तर में काम करने वाली महिला के साथ यौन संबंध थे. साथ ही, दोहरी नागरिकता के चलते उनकी संसद सदस्य बने रहने की योग्यता भी खत्म हो गई. इस सबके चलते 2018 में बार्नबी जॉइस को पद छोड़ना पड़ा. तब नैशनल पार्टी के नेता बने माइकल मैकॉरमक उप प्रधानमंत्री बन गए थे और 2019 में नई सरकार में भी उन्हें यह पद मिला था.

बार्नबी जॉइस के पार्टी नेता बनने के बाद सरकार में कुछ और बदलाव देखने को मिल सकते हैं. अगर वह पार्टी में कुछ लोगों की जिम्मेदारियां बदलते हैं तो उनके दल की ओर से सरकार में मंत्रीपद पाए लोगों में भी बदलाव हो सकता है.

पर्यावरण प्रेमी क्यों हैं चिंतित

ऑस्ट्रेलिया की कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भरता हमेशा विवादों के घेरे में रही है क्योंकि इसके कारण प्रति-व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की सूची में ऑस्ट्रेलिया सबसे ऊपरी देशों में है.

हाल के दिनों में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने कोयले पर निर्भरता घटाने और 2050 तक कार्बन उत्सर्जन घटाने के अपने लक्ष्यों को हासिल करने को लेकर रुख में नरमी दिखाई है. उन्होंने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया जल्द से जल्द, और हो सके तो 2050 तक शून्य उत्सर्जन पर पहुंचना चाहता है, लेकिन उसका रास्ता तकनीकी होना चाहिए न कि राजनीतिक.

जॉइस जिस पार्टी के नेता हैं, उसका खनन उद्योग और उससे जुड़े लोगों में काफी दबदबा है. इसलिए वह कोयला खनन के समर्थक रहे हैं. जलवायु परिवर्तन को लेकर भी उनका रुख सकारात्मक नहीं है. उनका कहना है कि वह ऐसी ऊर्जा नीति का ही समर्थन करेंगे जो ग्रामीण इलाकों में सरकार का समर्थन बढ़ाए. लेकिन ग्रामीण इलाके खनन पर बहुत ज्यादा निर्भर हैं.

समझौते की गुंजाइश नहीं

सोमवार को राजधानी कैनबरा में उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा, "मैं यह सुनिश्चित करना चाहता हूं कि हम क्वीन्सलैंड जैसे राज्यों में जाएं और अगला चुनाव जीतने की अपनी संभावनाएं मजबूत करें.” क्वीन्सलैंड खनन पर निर्भर राज्य है. यहीं भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी की कोयला खान भी है, जिसे लेकर ऑस्ट्रेलिया में खासा विवाद रहा है.

साउथ ऑस्ट्रेलिया राज्य की फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफेसर हेडन मैनिंग कहते हैं, "बार्नबी जॉइस ने यह बात साफ कर दी है कि वह नैशनल पार्टी को स्वतंत्र देखना चाहते हैं और 2050 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन हासिल करने को लेकर कोई समझौता नहीं करेंगे.”

पहले भी, जॉइस कह चुके हैं कि वह ऐसे किसी भी सरकारी कानून के खिलाफ वोट करेंगे, जो बेहतर जलवायु स्तर के नाम पर लोगों की नौकरी खतरे में डालेगा.

वीके/एए (रॉयटर्स)

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