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ऑस्ट्रेलिया के लिए चुनौती बनी चार साल की बच्ची

१५ जून २०२१

ऑस्ट्रेलिया में जन्मी चार साल की एक तमिल बच्ची ने देश की सरकार और शरणार्थियों को लेकर उसकी नीति पर सवाल खड़े कर रखे हैं.

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Australien Unterstützer der asylsuchenden Biloela Familie in Melbourne
तस्वीर: James Ross/AAP Image/REUTERS

प्रिया मुरुगप्पन, उनके पति और दो बच्चियां दो साल बाद आखिरकार खुली हवा में सांस ले सकेंगे. हालांकि ऐसा ज्यादा समय के लिए नहीं होगा क्योंकि ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इस तमिल परिवार को अस्थायी तौर पर ही हिरासत केंद्र से रिहा करने के आदेश दिए हैं.

मंगलवार को ऑस्ट्रेलिया के आप्रवासन मंत्री आलेक्स हॉक ने मीडिया से बातचीत में कहा कि परिवार को अस्थायी तौर पर रिहा किया गया है और इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि इस परिवार को वीजा मिल जाएगा.

तमिल शरणार्थी मुरुगप्पन परिवार को यह रिहाई तब मिली है जब उनकी छोटी बेटी, चार साल की थारनिका गंभीर रूप से बीमार हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. हालांकि इस फैसले में भी ऑस्ट्रेलिया की सरकार को कई दिन लगे हैं. तीन दिन पहले ही थारनिका ने अपना चौथा जन्मदिन मनाया. हालांकि इस बार वह पर्थ के अस्पताल में भर्ती है और न्यूमोनिया और सेप्सिस से जूझ रही है, जिस कारण मरीज की जान भी जा सकती है.

Australien Unterstützer der asylsuchenden Biloela Familie in Melbourne
तस्वीर: Recep Şakar/AA/picture alliance

थारनिका को पिछले हफ्ते तब क्रिसमस आईलैंड से पर्थ के बाल अस्पताल ले जाया गया, जब उसे बीमार हुए दस दिन हो गए थे. उसके साथ उसकी मां प्रिया भी थीं जबकि पिता और उसकी बड़ी बहन कोपिका हिरासत केंद्र में ही रह रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया के मानवाधिकार कार्यकर्ता परिवार की रिहाई की मांग कर रहे थे. अब सरकार ने उन्हें भी परिवार के पास भेजने का फैसला लिया है.

इमिग्रेशन मंत्री ऐलेक्स हॉक ने कहा, "यह फैसला करते हुए मैं सरकार की मजबूत सीमा सुरक्षा नीति का बच्चों के हिरासत केंद्र में होने की स्थिति में उचित सहानुभूति के साथ संतुलन बना रहा हूं."

क्या है मुरुगप्पन परिवार की कहानी

नादेसलिंगम मुरुगप्पन श्रीलंकाई मूल के तमिल हैं. 2012 में वे श्रीलंका से भागकर नाव से ऑस्ट्रेलिया आ गए थे और यहां उन्होंने शरण मांगी थी. 2018 में नादेसलिंगम ने कोर्ट को बताया कि उन्हें 2001 में श्रीलंका के उग्रवादी संगठन लिट्टे का सदस्य बनने के लिए मजबूर किया गया था और वापस स्वदेश जाने पर उनकी जान को खतरा है.

प्रिया का कहना है कि उनके गांव के कुछ लोगों समेत तत्कालीन मंगेतर को सेना ने जिंदा जला दिया था, जिसके बाद वह देश से भागकर 2013 में ऑस्ट्रेलिया आ गई थीं. उन्होंने भी यहां शरण मांगी थी. हालांकि दोनों की ही शरण की अर्जी को गैरकानूनी मानकर खारिज कर दिया गया. लेकिन उन्हें अस्थायी वीजा दिया गया और वे क्वीन्सलैंड के बिलोला कस्बे में रहने लगे जहां उन्होंने शादी कर ली. 2015 में उनकी पहली बेटी कोपिका का जन्म हुआ. 2017 में छोटी बेटी थारनिका जन्मी.

बिलोएला से हिरासत तक

4 मार्च 2018 को इस परिवार का अस्थायी वीजा खत्म हो गया और सीमा बल के अधिकारियों ने उन्हें उनके घर से हिरासत में ले लिया. तब उन्हें मेलबर्न के एक हिरासत केंद्र में रखा गया. इस कदम का बिलोएला के लोगों ने खासा विरोध किया और एक अभियान भी शुरू किया जिसमें इस परिवार को घर वापस लाने की अपील की गई थी.

मेलबर्न से इस परिवार को श्रीलंका निर्वासित किया जाना था जिसके खिलाफ उन्होंने फेडरल सर्किट कोर्ट में अपील की. जून 2018 में अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी. कोर्ट ने सरकार की इस परिवार को रिफ्यूजी का दर्जा ना देने की वजहों को जायज माना था. इनमें एक कारण यह भी था कि नादेसलिंगम ऑस्ट्रेलिया आने के बाद तीन बार श्रीलंका की यात्रा कर चुके थे जिससे उनका यह दावा प्रभावित हुआ कि उन्हें श्रीलंका के अधिकारियों से खतरा है.

परिवार ने इस फैसले के खिलाफ अपील की और इसकी सुनवाई तक वे हिरासत केंद्र में ही रहते रहे. ऊपरी अदालत से भी उनकी अपील खारिज होने के बाद 29 अगस्त 2019 को इस परिवार को हिरासत केंद्र से निकाल कर निर्वासन के लिए मेलबर्न हवाई अड्डे पर लाया गया. तब उनके समर्थन में बहुत से लोग भी हवाई अड्डे पर पहुंच गए थे. लेकिन अधिकारियों ने उन्हें विमान में बिठाया और विमान डार्विन की ओर उड़ चला, जहां से उन्हें श्रीलंका भेजा जाना था. हालांकि उसी वक्त कोर्ट ने एक अपील के आधार पर उन्हें देश से निकाले जाने के फैसले पर रोक लगा दी. विमान लौट आया और मुरुगप्पन परिवार को क्रिसमस आईलैंड स्थित हिरासत केंद्र में भेज दिया गया. हालांकि उसी साल जुलाई में इस हिरासत केंद्र को बंद कर दिया गया था इसलिए तब से वहां इस परिवार के अलावा और कोई नहीं है.

मौजूदा अपील

इस तमिल परिवार की अपील है कि छोटी बेटी थारनिका को शरणार्थी वीजा की अपील का हक मिलना चाहिए. कोर्ट इस अपील पर सुनवाई कर रहा है इसलिए फिलहाल यह परिवार देश में ही हैं. लेकिन ऑस्ट्रेलिया की सरकार का कहना है कि इस परिवार को वीजा देने से ऐसे लोगों को हौसला मिलेगा, जो अवैध तरीके से ऑस्ट्रेलिया में आते हैं और शरणार्थी वीजा चाहते हैं. मौजूदा प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने पिछली सरकार में इमिग्रेशन मंत्री रहते हुए ‘नौकाओं को ना' की नीति बनाई थी जिसके तहत नाव से ऑस्ट्रेलिया आने वाले लोगों को शरण न देने की सख्ती बरतने का फैसला किया गया था.

लेकिन कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया की नीति अमानवीय है. रिफ्यूजी एक्शन कोएलिशन के इयान रितौल कहते हैं कि मुरुगप्पन परिवार की कहानी ऑस्ट्रेलिया की अमानवीय नीति की ही मिसाल है. डीडब्ल्यू से बातचीत में इयान ने कहा, "यह पूरा मामला इस बात का प्रतीक है कि ऑस्ट्रेलिया सरकार की नीति अमानवीय है. दो बच्चे जो यहां जन्मे हैं, यहां रहने का हक नहीं पा सकते. पूरा कस्बा इस परिवार को घर लाने के लिए अपील कर रहा है लेकिन सरकार वीजा देने को तैयार नहीं है. ऐसी नीति और किसी देश की नहीं है.”

मौजूदा मामले के बाद फिर से लोगों ने इस परिवार को वीजा देने की अपील की है.

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